पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-52

गतांश से आगे...
अध्याय १३.वास्तु मण्डल-(ख)अन्तःवाह्य संरचना(कहां क्या?)आठवां भाग

११.दीवारें- वास्तुमंडल की प्रत्येक दीवारों की समानता का विशेष महत्त्व है। दीवारों की असमानता अपने स्थान(क्षेत्र) के अनुसार शुभाशुभ फलदायी होंगी। यथा दक्षिण-पश्चिम की दीवारें पूर्व-उत्तर की तुलना में पतली हैं तो भवन पर मंगल,यम,राहु,नैऋति,वरुण और शनि का दुष्प्रभाव पड़ेगा।इसी भांति कमरे की भीतरी दीवारों की असमान मोटाई, दिशा के अनुसार ग्रह और तत् देवों को कमजोर या विकृत करेगा।अतः यथासम्भव समानता आवश्यक है।
१२.दरवाजे,खिड़कियाँ,गवाक्ष(रोशनदान)-भवन के मुख्य द्वार के सम्बन्ध में तो स्वतन्त्र अध्याय में चर्चा होगी,शेष दरवाजों के विषय में यहां कुछ जानकारी दी जा रही है।किसी भी कमरे में कोने में दरवाजा बनाना व्यावहारिक रुप से सुविधाजनक होता है,क्यों कि इससे अनावश्यक, स्थान की बरबादी नहीं होती। फिर भी प्रयास हो कि किसी कमरे के नैऋत्यकोण से बचा जाय।क्षेत्र का विभाजन कमरे में भी उसी तरह होगा जैसे कि वास्तुमंडल में करते हैं।मान लिया कमरे का आकार १५×११ का है तो इसे ही नौभागों में बांट कर क्षेत्र और क्षेत्रेश का निर्णय करेंगे।जहाँ तक सम्भव हो अशुभ क्षेत्रेश से बचने का प्रयास करें।हाँ,मंडल में प्रायः चारों ओर से कमरे बनते हैं,ऐसी स्थिति में कमरे का द्वार भी चारो दिशाओं में होगा ही,किन्तु यहां भीतरी दरवाजों के लिए दक्षिणी प्रवेश या निकास  को अशुभ नहीं मानेंगे।मकान के सभी दरवाजे (मुख्यद्वार को छोड़कर) समान आकार वाले होने चाहिए।यही नियम खिड़की और रोशनदान के लिए भी है।तीन दरवाजे आमने-सामने न हों,कम या अधिक हो सकते हैं।खास कर सूर्यवेध वाले भवन में तो ऊर्जा-प्रवाह को विशेष गति देने के लिए एक सीध में (पूरब-पश्चिम)कई दरवाजे लगाये जा सकते हैं।चारो दिशाओं में ऊर्जा-प्रवाह को गत्यमान रखने के लिए यथासम्भव आमने-सामने दरवाजे या खिड़कियाँ बनायी जानी चाहिए(तीन छोड़कर)।दरवाजे-खिड़कियों को प्रातःकाल में नियमित रुप से खोलना और रात्रि में सोते समय बन्द करना आवश्यक है। बहुमंजिल भवन में एक दरवाजे के ठीक ऊपर-नीचे दूसरा द्वार न हो तो अच्छा है। दरवाजे, खिड़कियाँ सभी कमरे में भीतर की ओर खुलनी चाहिए।लाचारी में खिड़कियों को बाह्यमुखी रख सकते हैं,किन्तु दरवाजे को नहीं।आजकल फैशन,कंजूसी,या नासमझी में दरवाजे का निचला चौखट गायब होता जा रहा है। यह परम्परा वास्तुसम्मत नहीं है।खास कर प्रवेशद्वार तो निचले चौखट के बिना बिलकुल विकलांग है,और एक विकलांग रक्षक आपकी कितनी रक्षा कर सकता है – समझने वाली बात है।खिड़कियाँ और रोशनदान भी दरवाजे के सहयोगी अंग है,अतः इनके लिए भी स्थान का चुनाव नौखण्ड-विधि से ही करना उत्तम है।निषिद्ध वास्तुपद में इन्हें न बनाया जाय।

द्वार के सम्बन्ध में कुछ और बातें मुख्यद्वारविवेचन,एवं द्वारवेध प्रसंग में देखा जा सकता है।


क्रमशः...

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