पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-55

गतांश से आगे...
अध्याय १३.वास्तु मण्डल(क) अन्तःवाह्य संरचना(कहां क्या?)ग्यारहवां भाग

v  तुलसी का पौधा आँगन में यथोचित स्थान पर(पवित्रता का ध्यान रखते हुए) लगाया जाना चाहिए।यही एक मात्र पौधा है जिसे आँगन में स्थान मिला है,शेष कुछ भी नहीं। आँगन में सम्भव न हो तो पूरब,उत्तर,वायु,ईशान आदि में भी यथोचित स्थान दे सकते हैं- तुलसी को।
v मालती की लता प्रायः लोग मुख्य द्वार पर,या छत की रेलिंग पर चढ़ा देते हैं,यह भी उचित नहीं है।मालती भगवान विष्णु को अति प्रिय है,किन्तु इसके उद्भव की गाथा कहती है कि यह लक्ष्मी को उतना ही अप्रिय है।मुख्य द्वार पर लगाने का अर्थ है- आती हुयी लक्ष्मी का रास्ता रोक देना।अतः इसे अगल-बगल कहीं अनुकूल स्थान पर लगाया जाय।
v मुख्यद्वार पर सजावट के लिए चमेली,जूही,शतावरी आदि लगाये जा सकते हैं।
v आजकल एक और फैशन चल पड़ा है- किसी अनाड़ी वास्तुज्ञाता के सौजन्य से- हर घर में सीज(थूहर)(कैक्टस की एक प्रजाति)लगाने की।धारणा यह है कि इससे बाहरी बाधाओं की रक्षा होगी,जो कि अधूरा सत्य है।मुख्य द्वार पर तो इसे हरगिज न लगाया जाय- इससे सन्तान हानि होती है,अकारण शत्रुओं को निमंत्रण मिलता है।हाँ, परिसर में नैऋत्यकोण पर इसे लगाया जा सकता है।पुराने समय में इसकी डाल प्रसूतीगृह के द्वार पर रक्षार्थ रखा जाता था,और दसवें या बारहवें दिन विधिवत विसर्जित किया जाता था,जिसे आज हम भूल गये हैं।
v फौब्बारा,जलयन्त्र आदि भवन के उत्तर या पूरब में बनाने चाहिए।
v हरी घास का मैदान(लॉन)भी इसी दिशा में शोभायमान होना चाहिए।
v परिसर में प्रेंषादोला(झूला)लगाना हो यदि तो इसका स्थान वायुकोण प्रसस्त है।
v परिसर बहुत बड़ा हो तो फल-वाटिका भी यथोचित विचार करके लगाया जा सकता है।
v आम बहुत ही पवित्र पौधा है,किन्तु घर के अति समीप रहना सन्तान पक्ष के लिए हानिकारक है।आजकल छोटे आकार के कृत्रिम पौधे उपलब्ध हैं,इन्हें थोड़ी दूरी बनाकर(कम से कम नौ फीट)पर लगाया जा सकता है।
v नारियल,सुपारी अति शुभद हैं।इन्हें मुख्यद्वार पर दोनों ओर(चाहे कोई दिशा हो) लगाया जा सकता है।
v अमरुद,अनार,नीम्बू,श्रीफल(बेल),सीताफल(शरीफा)आदि मध्यम आकार के पौधे यथास्थान लगाये जाने चाहिए।
    पौधों के सम्बन्ध में आगे सतरहवें अध्याय में पुनः विशेष विचार किया गया है।                     ----000----        

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