अध्याय १४.मुख्य द्वार-विशेष विचार
वास्तु-द्वार रहस्यः- जैसा कि पूर्व अध्यायों के अध्ययन से
स्पष्ट है कि वास्तु मंडल के चारों दिशाओं के प्रथम पंक्ति में कुल मिलाकर बत्तीस
देवताओं का वास है।किस देवता के वास-स्थान में मुख्यद्वार बनाने का क्या फल होता
है- आगे की पंक्तियों में स्पष्ट किया जा रहा है।यथा-
पूरब
दिशाः-
१)शिखी-इस
स्थान पर द्वार बनानेसे दुःख,हानि,भय और रोग होता है।
२)पर्जन्य-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे परिवार में कन्याओं की वृद्धि,धनहानि और शोक होता है।
३)जयन्त-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन की प्राप्ति होती है।
४)इन्द्र-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे राज-सम्मान की प्राप्ति होती है।
५)सूर्य-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन प्राप्त होता है।(मतान्तर से इस स्थान पर द्वार
बनानेसे क्रोध की वृद्धि होती है।उचित है कि इस स्थान से बचा जाय।
६)सत्य-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे चोरी का भय,कन्याओं की बहुलता,झूठ बोलने की प्रवृत्ति
आदि का सामना करना पड़ता है।
७)भृश-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे क्रोध,क्रूरता,और पुत्र हानि होती है।
८)अन्तरिक्ष-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे चोरी का भय और धन की हानि होती है।
दक्षिण
दिशाः-
९)अनिल-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे सन्तान हानि होती है।
१०)पूषा-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे गुलामी और बन्धन का सामना करना पड़ता है।
११)वितथ-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे नीच बुद्धि(नीचत्व) होती है।
१२)बृहत्क्षत-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे धनागम और पुत्र लाभ होता है।
१३)यम-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन की बृद्धि तो हो सकती है,किन्तु अकारण भय,दुःस्वप्न
आदि का सामना करना पड़ सकता है।अतः इस स्थान से यथासम्भव बचना ही चाहिए।
१४)गन्धर्व-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे अभय और यश की प्राप्ति होती है।
१५)भृंगराज-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे निर्धनता,तथा व्याधि और चोर का भय होता है।
१६)मृग-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे अकारण-अचानक बलहानि और रोग होता है।
पश्चिम
दिशाः-
१७)पिता-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन-पुत्र की हानि,और शत्रुओं की बृद्धि होती है।
१८)दौवारिक-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे स्त्री कष्ट-वियोग और शत्रु बृद्धि होती है।
१९)सुग्रीव-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे श्री-समृद्धि आती है।
२०)पुष्पदन्त-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे पुत्र और धन लाभ होता है।
२१)वरुण-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन और सौभाग्य की बृद्धि होती है।
२२)असुर-
इस स्थान पर द्वार बनाकर राजभय और दुर्भाग्य को निमंत्रित करना है।
२३)शोष-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन हानि होती है।
२४)पापयक्ष्मा-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे रोग-शोक की बृद्धि होती है।
उत्तर
दिशाः-
२५)रोग-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन और स्त्री की हानि,गुलामी और बन्धन,शत्रु
बृद्धि,यहाँ तक कि मृत्यु भी हो सकती है।
२६)नाग-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे रोग-शोक-शत्रु की बृद्धि,धन,बल और स्त्री की हानि होती
है।
२७)मुख्य-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन-पुत्रादि का लाभ होता है।(मतान्तर से हानि का भी
संकेत है।)
२८)भल्लाट-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन-पुत्रादि का लाभ होता है।
२९)सोम-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन-सुख-समृद्धि-पुत्रादि का लाभ होता है।
३०)भुजग-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे धनकी हानि,पुत्रों से मनमुटाव,और दुःख का आगमन होता है।
३१)अदिति-
इस स्थान पर द्वार बनानेसे स्त्री वर्ग का चारित्रिक पतन,शत्रु-बाधा, भय और शोक की
आशंका होती है।
३२)दिति-इस
स्थान पर द्वार बनानेसे निर्धनता,रोग-शोक,दुःखःसंताप,बहु विघ्न-बाधायें झेलनी
पड़ती हैं।
इन्हीं
तथ्यों को नीचे की सारणी में दर्शाया जा रहा है,जो ऊपर दिये गये फलविमर्श
से आंशिक भिन्न हैः-
क्रमांक
|
दिशा
|
देवता(पदेश)
|
द्वार-फल
|
१.
|
ईशान
|
शिखि(ईश)
|
अग्निभय
|
२.
|
पूर्व
|
पर्जन्य
|
स्त्रीपीड़ा
|
३.
|
पूर्व
|
जयन्त
|
धनलाभ
|
४.
|
पूर्व
|
इन्द्र
|
विजय
|
५.
|
पूर्व
|
सूर्य
|
मनस्ताप
|
६.
|
पूर्व
|
सत्य
|
पुत्रीकष्ट
|
७.
|
पूर्व
|
भृश
|
शत्रुभय
|
८.
|
पूर्व
|
आकाश
|
चौरभय
|
९.
|
आग्नेय
|
अग्नि
|
पुत्रकष्ट
|
१०.
|
दक्षिण
|
पूषा
|
परिवारिककष्ट
|
११.
|
दक्षिण
|
वितथ
|
कल्याण
|
१२.
|
दक्षिण
|
गृहक्षत
|
पुत्रलाभ
|
१३.
|
दक्षिण
|
यम
|
मृत्यु
|
१४
|
दक्षिण
|
गन्धर्व
|
अपमान
|
१५
|
दक्षिण
|
भृंगराज
|
हानि
|
१६
|
दक्षिण
|
मृग
|
पुत्रकष्ट
|
१७
|
नैऋत्य
|
पितृ
|
पुत्रनाश
|
१८
|
पश्चिम
|
दौवारिक
|
कर्णरोग
|
१९
|
पश्चिम
|
सुग्रीव
|
अर्थकष्ट
|
२०
|
पश्चिम
|
पुष्पदन्त
|
मनःतुष्टि
|
२१
|
पश्चिम
|
वरुण
|
शान्तिआरोग्य
|
२२
|
पश्चिम
|
असुर
|
हानि
|
२३
|
पश्चिम
|
शोष
|
धनहानि
|
२४
|
पश्चिम
|
राजयक्ष्मा
|
रोग
|
२५
|
वायु
|
वायु
|
मृत्यु
|
२६
|
उत्तर
|
नाग
|
शत्रुवर्द्धन
|
२७
|
उत्तर
|
मुख्य
|
सन्ततिलाभ
|
२८
|
उत्तर
|
भल्लाट
|
धनवृद्धि
|
२९
|
उत्तर
|
कुबेर
|
ऐश्वर्यलाभ
|
३०
|
उत्तर
|
शैल
|
परिजनविरोध
|
३१
|
उत्तर
|
अदिति
|
स्त्रीकष्ट
|
३२
|
उत्तर
|
दिति
|
कार्यवाधा
|
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