पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-57

                              अध्याय १४.मुख्य द्वार-विशेष विचार
  वास्तु-द्वार रहस्यः- जैसा कि पूर्व अध्यायों के अध्ययन से स्पष्ट है कि वास्तु मंडल के चारों दिशाओं के प्रथम पंक्ति में कुल मिलाकर बत्तीस देवताओं का वास है।किस देवता के वास-स्थान में मुख्यद्वार बनाने का क्या फल होता है- आगे की पंक्तियों में स्पष्ट किया जा रहा है।यथा-
पूरब दिशाः-
१)शिखी-इस स्थान पर द्वार बनानेसे दुःख,हानि,भय और रोग होता है।
२)पर्जन्य- इस स्थान पर द्वार बनानेसे परिवार में कन्याओं की वृद्धि,धनहानि और शोक होता है।
३)जयन्त- इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन की प्राप्ति होती है।
४)इन्द्र- इस स्थान पर द्वार बनानेसे राज-सम्मान की प्राप्ति होती है।
५)सूर्य- इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन प्राप्त होता है।(मतान्तर से इस स्थान पर द्वार बनानेसे क्रोध की वृद्धि होती है।उचित है कि इस स्थान से बचा जाय।
६)सत्य- इस स्थान पर द्वार बनानेसे चोरी का भय,कन्याओं की बहुलता,झूठ बोलने की प्रवृत्ति आदि का सामना करना पड़ता है।
७)भृश- इस स्थान पर द्वार बनानेसे क्रोध,क्रूरता,और पुत्र हानि होती है।
८)अन्तरिक्ष- इस स्थान पर द्वार बनानेसे चोरी का भय और धन की हानि होती है।
दक्षिण दिशाः-
९)अनिल- इस स्थान पर द्वार बनानेसे सन्तान हानि होती है।
१०)पूषा- इस स्थान पर द्वार बनानेसे गुलामी और बन्धन का सामना करना पड़ता है।
११)वितथ- इस स्थान पर द्वार बनानेसे नीच बुद्धि(नीचत्व) होती है।
१२)बृहत्क्षत- इस स्थान पर द्वार बनानेसे धनागम और पुत्र लाभ होता है।
१३)यम- इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन की बृद्धि तो हो सकती है,किन्तु अकारण भय,दुःस्वप्न आदि का सामना करना पड़ सकता है।अतः इस स्थान से यथासम्भव बचना ही चाहिए।
१४)गन्धर्व- इस स्थान पर द्वार बनानेसे अभय और यश की प्राप्ति होती है।
१५)भृंगराज- इस स्थान पर द्वार बनानेसे निर्धनता,तथा व्याधि और चोर का भय होता है।
१६)मृग- इस स्थान पर द्वार बनानेसे अकारण-अचानक बलहानि और रोग होता है।
पश्चिम दिशाः-
१७)पिता- इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन-पुत्र की हानि,और शत्रुओं की बृद्धि होती है।
१८)दौवारिक- इस स्थान पर द्वार बनानेसे स्त्री कष्ट-वियोग और शत्रु बृद्धि होती है।
१९)सुग्रीव- इस स्थान पर द्वार बनानेसे श्री-समृद्धि आती है।
२०)पुष्पदन्त- इस स्थान पर द्वार बनानेसे पुत्र और धन लाभ होता है।
२१)वरुण- इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन और सौभाग्य की बृद्धि होती है।
२२)असुर- इस स्थान पर द्वार बनाकर राजभय और दुर्भाग्य को निमंत्रित करना है।
२३)शोष- इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन हानि होती है।
२४)पापयक्ष्मा- इस स्थान पर द्वार बनानेसे रोग-शोक की बृद्धि होती है।
उत्तर दिशाः-
२५)रोग- इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन और स्त्री की हानि,गुलामी और बन्धन,शत्रु बृद्धि,यहाँ तक कि मृत्यु भी हो सकती है।
२६)नाग- इस स्थान पर द्वार बनानेसे रोग-शोक-शत्रु की बृद्धि,धन,बल और स्त्री की हानि होती है।
२७)मुख्य- इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन-पुत्रादि का लाभ होता है।(मतान्तर से हानि का भी संकेत है।)
२८)भल्लाट- इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन-पुत्रादि का लाभ होता है।
२९)सोम- इस स्थान पर द्वार बनानेसे धन-सुख-समृद्धि-पुत्रादि का लाभ होता है।
३०)भुजग- इस स्थान पर द्वार बनानेसे धनकी हानि,पुत्रों से मनमुटाव,और दुःख का आगमन होता है।
३१)अदिति- इस स्थान पर द्वार बनानेसे स्त्री वर्ग का चारित्रिक पतन,शत्रु-बाधा, भय और शोक की आशंका होती है।
३२)दिति-इस स्थान पर द्वार बनानेसे निर्धनता,रोग-शोक,दुःखःसंताप,बहु विघ्न-बाधायें झेलनी पड़ती हैं।

इन्हीं तथ्यों को नीचे की सारणी में दर्शाया जा रहा है,जो ऊपर दिये गये फलविमर्श से आंशिक भिन्न हैः-

क्रमांक
दिशा
देवता(पदेश)
द्वार-फल
.
ईशान
शिखि(ईश)
अग्निभय
.
पूर्व
पर्जन्य
स्त्रीपीड़ा
.
पूर्व
जयन्त
धनलाभ
.
पूर्व
इन्द्र
विजय
.
पूर्व
सूर्य
मनस्ताप
.
पूर्व
सत्य
पुत्रीकष्ट
.
पूर्व
भृश
शत्रुभय
८.
पूर्व
आकाश
चौरभय
.
आग्नेय
अग्नि
पुत्रकष्ट
१०.
दक्षिण
पूषा
परिवारिककष्ट
११.
दक्षिण
वितथ
कल्याण
१२.
दक्षिण
गृहक्षत
पुत्रलाभ
१३.
दक्षिण
यम
मृत्यु
१४
दक्षिण
गन्धर्व
अपमान
१५
दक्षिण
भृंगराज
हानि
१६
दक्षिण
मृग
पुत्रकष्ट
१७
नैऋत्य
पितृ
पुत्रनाश
१८
पश्चिम
दौवारिक
कर्णरोग
१९
पश्चिम
सुग्रीव
अर्थकष्ट
२०
पश्चिम
पुष्पदन्त
मनःतुष्टि
२१
पश्चिम
वरुण
शान्तिआरोग्य
२२
पश्चिम
असुर
हानि
२३
पश्चिम
शोष
धनहानि
२४
पश्चिम
राजयक्ष्मा
रोग
२५
वायु
वायु
मृत्यु
२६
उत्तर
नाग
शत्रुवर्द्धन
२७
उत्तर
मुख्य
सन्ततिलाभ
२८
उत्तर
भल्लाट
धनवृद्धि
२९
उत्तर
कुबेर
ऐश्वर्यलाभ
३०
उत्तर
शैल
परिजनविरोध
३१
उत्तर
अदिति
स्त्रीकष्ट
३२
उत्तर
दिति
कार्यवाधा

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