गतांश से आगे...
अध्याय १४.मुख्य द्वार-विशेष विचार- भाग चार
परिसर-प्रवेशः-अब अगली सारणी में विभिन्न कोणों में
परिसर-प्रवेश की चर्चा करते हैं। ध्यान देने योग्य है कि भवन-प्रवेश और
परिसर-प्रवेश में पर्याप्त भिन्नता है।साथ ही एक और बात गौर करने वाली है कि
भवन प्रवेश में कोणों के दोनों स्थितियों को समान फलदायी कहा गया है(ऊपर की सारिणी
में),जबकि नीचे की सारणी में कोणों की दो स्थितियों का प्रवेश-फल भिन्न है।नीचे की
सारणी देखेः-
कोण(विदिशा)
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शुभाशुभ
फल
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उत्तरी ईशान
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सम्पन्नता,स्वास्थ्य
वर्द्धक
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पूर्वी ईशान
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प्रतिष्ठा और
सम्मान
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दक्षिणी आग्नेय
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ज्ञान वर्धक(यदि
उ.वा पू.ईशान में एक और द्वार हो,अन्यथा हानि)
|
पश्चिमी वायव्य
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स्त्रीसुख,लक्ष्मीप्राप्ति
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पूर्वी आग्नेय
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कार्यवाधा
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उत्तरी वायव्य
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वैचारिक और
व्यापारिक अस्थिरता
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दक्षिणी नैऋत्य
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विपन्नता,स्त्रियों
के लिए कष्टकर,मनःताप
|
पश्चिमी नैऋत्य
|
धन,मान,प्रतिष्ठा
की हानि
|
क्रमशः....
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