पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-61

गतांश से आगे...
अध्याय १४.मुख्य द्वार-विशेष विचार- भाग पांच
 प्रसंगवस कुछ और आवश्यक संकेतः-
Ø पूर्वमुखी भूखण्ड में भवन की चारदीवारी के पूर्वी आग्नेय में प्रवेश-द्वार बनाना उचित है।
Ø दक्षिणमुखी भूखण्ड में भवन की चारदीवारी के दक्षिणी आग्नेय में प्रवेश-द्वार बनाना उचित है।
Ø पश्चिममुखी भूखण्ड में भवन की चारदीवारी के पश्चिमी वायव्य में प्रवेश-द्वार बनाना उचित है।
Ø उत्तरमुखी भूखण्ड में भवन की चारदीवारी के उत्तरी ईशान में प्रवेश-द्वार बनाना उचित है।
परिसर-प्रवेश के प्रसंग में मार्गों के आधार पर भी प्रवेश-दिशा का शुभत्व-निर्देश है।इसे नीचे की सारणी से स्पष्ट किया जा रहा हैः-


क्रमांक
मार्ग की दिशा
शुभप्रवेश
पूरब
पूर्वी ईशान
दक्षिण
दक्षिणीआग्नेय
पश्चिम
पश्चिमी वायव्य
उत्तर
उत्तरी ईशान
पूरब-दक्षिण
पूर्वी ईशान
उत्तर-पश्चिम
पश्चिमी वायव्य
पश्चिम-दक्षिण
पश्चिमी वायव्य
पूरब-पश्चिम
पूर्वी ईशान
उत्तर-दक्षिण
उत्तरी ईशान
१०
उत्तर,पूरब,पश्चिम
उत्तरी ईशान
११
उत्तर,पूरब,दक्षिण
पूर्वी ईशान
१२
पूरब,पश्चिम,दक्षिण
दक्षिणी आग्नेय
१३
उत्तर,पश्चिम,दक्षिण
पश्चिमी वायव्य
१४
चारों दिशा में मार्ग
पूर्वी ईशान

क्रमशः....

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