गतांश से आगे...
अध्याय १४.मुख्य द्वार-विशेष विचार- भाग पांच
अध्याय १४.मुख्य द्वार-विशेष विचार- भाग पांच
प्रसंगवस
कुछ और आवश्यक संकेतः-
Ø पूर्वमुखी भूखण्ड में भवन की चारदीवारी के
पूर्वी आग्नेय में प्रवेश-द्वार बनाना उचित है।
Ø दक्षिणमुखी भूखण्ड में भवन की चारदीवारी
के दक्षिणी आग्नेय में प्रवेश-द्वार बनाना उचित है।
Ø पश्चिममुखी भूखण्ड में भवन की चारदीवारी
के पश्चिमी वायव्य में प्रवेश-द्वार बनाना उचित है।
Ø उत्तरमुखी भूखण्ड में भवन की चारदीवारी के
उत्तरी ईशान में प्रवेश-द्वार बनाना उचित है।
परिसर-प्रवेश के प्रसंग में मार्गों के
आधार पर भी प्रवेश-दिशा का शुभत्व-निर्देश है।इसे नीचे की सारणी से स्पष्ट किया जा
रहा हैः-
क्रमांक
|
मार्ग
की दिशा
|
शुभप्रवेश
|
१
|
पूरब
|
पूर्वी ईशान
|
२
|
दक्षिण
|
दक्षिणीआग्नेय
|
३
|
पश्चिम
|
पश्चिमी वायव्य
|
४
|
उत्तर
|
उत्तरी ईशान
|
५
|
पूरब-दक्षिण
|
पूर्वी ईशान
|
६
|
उत्तर-पश्चिम
|
पश्चिमी वायव्य
|
७
|
पश्चिम-दक्षिण
|
पश्चिमी वायव्य
|
८
|
पूरब-पश्चिम
|
पूर्वी ईशान
|
९
|
उत्तर-दक्षिण
|
उत्तरी ईशान
|
१०
|
उत्तर,पूरब,पश्चिम
|
उत्तरी ईशान
|
११
|
उत्तर,पूरब,दक्षिण
|
पूर्वी ईशान
|
१२
|
पूरब,पश्चिम,दक्षिण
|
दक्षिणी आग्नेय
|
१३
|
उत्तर,पश्चिम,दक्षिण
|
पश्चिमी वायव्य
|
१४
|
चारों दिशा में
मार्ग
|
पूर्वी ईशान
|
क्रमशः....
Comments
Post a Comment