पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-63

गतांश से आगे...
अध्याय चौदह मुख्यद्वार विचार-सातवाँ भाग

इन्हीं बातों को मुहूर्तचिन्तामणि के वास्तुप्रकरण में श्री रामदैवज्ञ ने भी दर्शाया है- ध्वजादिकाः सर्वदिशि ध्वजे मुखं कार्यं हरौ पूर्वयमोत्तरे तथा।
   प्राच्यां वृषे प्राग्यमयोर्गजेऽथवा पश्चादुदक्पूर्वयमे द्विजादितः।।
   अर्थात् ब्राह्मणों के ध्वज आय,क्षत्रियों के लिए सिंह आय,वैश्यों के लिए वृष आय,एवं शूद्रों के लिए गज आय उत्तम होता है।
  अब राशि और मास के अनुसार मुख्यद्वार-दिशा-निर्धारण-सूत्र पर एक नजर डाल लें-कर्किनक्रहरिकुम्भगतेऽर्के पूर्वपश्चिममुखानि गृहाणि।
      तौलिमेषवृषवृश्चिकयाते दक्षिणोत्तरमुखानि च कुर्यात्।।
     अन्यथा यदि करोति दुर्मतिर्व्याधिशोकधननाशमश्नुते।
     मीनचापमिथुनाङ्गनागते कारयेन्न गृहमेव भास्करे।।                                               (वास्तुरत्नाकर८-८,९)
अर्थात् कर्क(श्रावण),नक्र(मकर)(माघ),सिंह और कुम्भ राशि के सूर्य रहने पर गृहारम्भ करे तो पूर्व वा पश्चिम मुख का भवन बनाना चाहिए।तुला,मेष,वृष,और वृश्चिक राशि के सूर्य रहने पर गृहारम्भ करे तो दक्षिण और उत्तरमुख का मकान बनाना उत्तम होता है।इससे विपरीत जो दुरात्मा मकान का द्वार बनाता है वह व्याधि,शोक,धननाश का भागी होता है।मीन,धनु,मिथुन और कन्या के सूर्य रहने पर भवन कदापि नहीं बनाना चाहिए।
तथाच- कुम्भेर्के फाल्गुने मासि श्रावणे सिंहकर्कयोः।
      पौषे नक्रे गृहं कुर्यात् पूर्वपश्चिमदिङ्मुखम्।।
     मार्गे तुलाऽलिगे भानौ वैशाखे वृषभाजयोः।
     दक्षिणे दिङमुखं श्रेष्ठं मन्दिरं नेष्टमन्यथा।।
            (मुहूर्तगणपति १८-५४,५५,वास्तुरत्नाकर८-१०,११)
अर्थात् फाल्गुन महीना और कुम्भ राशि के सूर्य में,श्रावण महीना और कर्क वा सिंह राशि के सूर्य में,पौष महीना और मकर राशि के सूर्य में गेहारम्भ हो तो पूर्व या पश्चिम मुख्यद्वार रखना उत्तम है।इसी भांति मार्गशीर्ष(अगहन)महीना और तुला या वृश्चिक के सूर्य में,वैशाख महीना और वृष या मेष के सूर्य में दक्षिण मुख द्वार बनाना श्रेष्ठ है।इससे विपरीत नेष्ट(न इष्ट) है।
गृहारम्भराशि
मास
द्वार-दिशा
कुम्भ
फाल्गुन
पूर्व,पश्चिम
कर्क/सिंह
श्रावण
पूर्व,पश्चिम
मकर
पौष
पूर्व,पश्चिम
तुला/वृश्चिक
अगहन
दक्षिण
मेष/वृष
वैशाख
दक्षिण
इन निर्देशों से एक महत्त्वपूर्ण बात का संकेत है कि यदि लाचारी वश किसी खास दिशा में ही मुख्यद्वार रखना पड़े तो वैसी स्थिति में तदनुकूल सूर्य-स्थिति की प्रतीक्षा करके ही गृहारम्भ करे।इस प्रकार स्वार्थ भी सिद्ध हो जाय और शास्त्रमर्यादा का उलंघन भी न हो।तदर्थ नीचे के चक्र का अवलोकन करे-

गृहारम्भराशि
द्वार-दिशा
कर्क,मकर,सिंह,कुम्भ
पूर्व,पश्चिम
तुला,मेष,वृष,वृश्चिक
दक्षिण,उत्तर
मीन,धनु,मिथुन,कन्या
कदापि नहीं

यहाँ ध्यानदेने योग्य है कि-

(क) इससे पहले राशि और दिशा का जो निर्देश हुआ है वह गृहस्वामी के नामराशि के अनुसार है,और यहाँ जो राशि-दिशा निर्देश है वह गृह के शिलान्यास से सम्बन्धित है।अतः इस विषय में कदापि भ्रमित नहीं होना चाहिए।
(ख)दूसरे चक्र में राशि के साथ महीने का भी समावेश है,अभिप्राय ये है कि
उक्त राशि के साथ उक्त महीने का होना भी आवश्यक है।

क्रमशः...

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