गतांश से आगे...
अध्याय १४.मुख्य द्वार-विशेष विचार - भाग बारह
मुख्यद्वारशाखा(चौखट) स्थापनः-
ध्यातव्य है कि शुभमुहूर्त में शिलान्यास करके
भवन-निर्माण-कार्य आरम्भ किया जाता है,और फिर नियमित रुप से जारी कार्यों के लिए
कुछ भी मुहूर्त-विचार करने की आवश्यकता नहीं होती;किन्तु मुख्यद्वार का कार्य करने
के लिए पुनः मुहूर्तविचार की आवश्यकता है।क्योंकि मुख्य द्वारशाखा(चौखट) स्थापन
प्रसस्त तिथियों में ही करनी चाहिए,अन्यथा दुष्परिणाम होंगे।हालांकि आजकल इसके
औचित्य और महत्त्व को बिलकुल ही नजरअन्दाज कर दिया जा रहा है।जबकि इसका पालन
अत्यावश्यक है।
यूँ तो
मुहुर्त सम्बन्धी सभी बातों की चर्चा अन्य अध्यायों में की जायेगी, किन्तु विशेष
कारणवश द्वारशाखा-स्थापन-मुहूर्त की सभी बातों को यहीं स्पष्ट कर दिया जा रहा है।
अश्विनी चोत्तरा हस्तपष्यश्रुतिमृगेषु च।
रोहिण्यां स्वातिभेऽन्त्ये
च द्वारशाखां प्ररोपयेत्।।(पीयूषधारा)(वास्तुरत्नावली८-६५)
अर्थात् अश्विनी,तीनों उत्तरा,हस्ता,पुष्य,श्रवण,मृगशिरा,रोहिणी,स्वाती,और
रेवती- इन ग्यारह नक्षत्रों में ही द्वारशाखा(चौखट)बैठाना चाहिए।
इस सम्बन्ध में मुहूर्तमुक्तावली में कुछ विशेष
रुप से कहा गया है,तथा वास्तुरत्नावली में भी उद्धृत है-
भवेत्पूषणी
मैत्रपुष्ये च शाक्रे,करे दस्रचित्राऽनिले चादितौ च।
गुरुश्चन्द्रशुक्रार्कसौम्ये,च वारे,तिथौनन्दपूर्णाजयाद्वारशाखा।। (वास्तुरत्नावली८-६६)
अर्थात्
रेवती,अनुराधा,पुष्य,ज्येष्ठा,हस्ता,अश्विनी,स्वाती,पुनर्वसु- इन नौ नक्षत्रों
में,वृहस्पति,चन्द्र,शुक्र,सूर्य,बुधवारोंमेंनन्दा(प्रतिपदा,षष्ठी,एकादशी)पूर्णा(पंचमी, दशमी,पूर्णिमा),और,जया(तृतीया,अष्टमी,त्रयोदशी)तिथियों में द्वारशाखा(चौखट)का स्थापन करना अति उत्तम
कहा गया है।वहीं पुनः कहते हैं-
पंचमी धनदा नित्यं मुनिनन्दवसौ शुभम्।
प्रतिपत्सु न कर्तव्यं कृते
दुःखमवाप्नुयात्।।
द्वितीयायां द्रव्यहानिः
पशुपुत्रविनाशनम्।
तृतीया रोगदा ज्ञेया चतुर्थी भङ्गकारिणी।।
कुलक्षयस्तथा षष्ठ्यां दशमी धननाशिनी।
विरोधकृदमा पूर्णा न स्याच्छाखावरोपणम्।।(वास्तुरत्नाकर८/६७-६९)
तिथियों का शुभाशुभफल उक्त श्लोक और निम्न
सारणी में स्पष्ट किया गया है—
तिथियाँ
|
दुष्परिणाम
|
प्रतिपदा
|
दुःखप्राप्ति
|
द्वितीया
|
पुत्र,पशु,धननाश
|
तृतीया
|
रोग-व्याधि
|
चतुर्थी
|
विघ्न-विनाश
|
षष्ठी
|
कुलनाश
|
दशमी
|
धननाश
|
पूर्णिमा
|
अकारण बैर,शत्रुता
|
आमावश्या
|
अकारण बैर,शत्रुता
|
तिथियाँ
|
सुपरिणाम
|
पंचमी
|
धनदायक
|
सप्तमी
|
शुभदायक
|
अष्टमी
|
शुभदायक
|
नवमी
|
शुभदायक
|
अर्थात् मुख्य द्वार का चौखट पंचमी,सप्तमी,
अष्टमी,और नवमी तिथियों में ही लगाना चाहिये,अन्य का परिणाम सुखद नहीं है।
क्रमशः...
क्रमशः...
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