पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-75

गतांश से आगे....अध्याय सोलह भाग तीन

अब तैयार ईंटों को भट्ठे से निकालकर कार्य-प्रयोग हेतु कहते हैः-
त्रिकं पञ्च त्रिकं सप्त पञ्चवेदमितैश्च भैः।शुभाशुभं क्रमेणैवमिष्टिनिःसारणे बुधात्।।
ध्यातव्य है कि यहाँ सत्ताईस नक्षत्रों को ही लिया गया है, और गणना मंगल के वजाय बुध के नक्षत्र से करना है,जिसका फल निम्न सारणी से स्पष्ट है -
२७नक्षत्र
शुभाशुभफल
शुभ
अशुभ
शुभ
अशुभ
शुभ
अशुभ

अब वास्तु कार्य के लिए शिलाच्छेदन (पत्थर तोड़ने- ईँट,रोड़ी आदि बनाने)का मुहूर्त कहते हैं- 
कृष्णाष्टम्यां च सप्तम्यां रौद्रभे यस्य कस्य चित्।
राशौ लग्ने कुजांशे वा शिलाभेदः प्रशस्यते।।
अर्थात् कृष्णपक्ष की अष्टमी और सप्तमी तिथि को रौद्र संज्ञक नक्षत्रों(भरणी,मघा, पूर्वाफाल्गुनी,पूर्वाषाढ़,पूर्वाभाद्रपद)में,मंगल की राशि वा लग्न में(मेष,वृश्चिक),या इन्हीं के नवांश में शिलाभेदन प्रशस्त है।

  ध्यातव्य है कि सभी ग्रह-नक्षत्रों के अपने-अपने गुण,स्वभाव और कार्य हैं। उसके अनुसार ही चयन होना चाहिए।कूआँ खोदने और स्तम्भ-स्थापन के लिए समान ग्रह-नक्षत्र कदापि नहीं हो सकते।
क्रमशः....

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