पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-78

गतांश से आगे....
अध्याय सोलह-गृहनिर्माणःसामग्री-विचार भाग छः
(घ) भवन-निर्माण-सामग्री सम्बन्धी कुछ अन्य बातें-
§  युगानुसार, पूर्णरुप से शास्त्रीय नियमों पर खरा उतरना तो वाजार व्यवस्था में असम्भव है,फिर भी लकड़ी की जाति और गुणवत्ता का विचार यथासम्भव करना ही चाहिए।
§  बहु प्रकार भेद से भी बचना चाहिए।
§  निषिद्ध लकड़ियों का प्रयोग कदापि न करें।
§  कच्ची और पक्की दोनों तरह की ईंटों का प्रयोग करना हो तो उन्हें एक तान में न करके,क्रमिक विभाजन से करे-अर्थात पहले थोड़ी ऊँचाई तक पक्की ईंटों को जोड़ ले,फिर कच्ची ईंटों को जोड़ें.पुनः पक्की ईंटों को।
§  पत्थर के ईंटों का पूर्णतः प्रयोग करना हो तो कोई बात नहीं,किन्तु साथ में मिट्टी के पक्के ईंटों को भी लगाना हो तो पहले जहाँ तक सम्भव हो पत्थर का प्रयोग कर लें,फिर मिट्टी के ईंटो का प्रयोग करें।
§  गोलाकार स्तम्भादि बनाने के लिए,तथा कूपबन्धन के लिए विशेष प्रकार के सूर्यमुखी और अर्द्धवृत्ताकार ईंटों का प्रयोग करना चाहिए।(हालांकि आजकल आकार सम्बन्धी सारे कार्य कंकरीट और छड़ के सहयोग से किये जाते हैं,जो युगानुरुप सरल है।)
§  पत्थर के बेडौल टुकड़ों का प्रयोग करने से परहेज करें।वास्तुभूमि के विविध आकारों के शुभाशुभ प्रभाव की तरह ही इनके भी प्रभाव हैं।जहाँ तक हो सके सुन्दर,सुडौल टुकड़े काम में लाये जाँय।
§  संगमर्मर,ग्रेनाइड आदि पत्थरों का प्रयोग रंग और आकार का विचार करते हुए ही करें।
§  रंगों का चुनाव पूर्व अध्याय में वर्णित मित्रामित्र सारणी के अनुसार विचार करके ही करना चाहिए।
§  आजकल भवन निर्माण में लोहे और पत्थर(कंकरीट) का प्रयोग सर्वाधिक हो रहा है।इनकी गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना जरुरी है।
§  सुन्दरता और टिकाऊपन के लिए कृत्रिम एडेसिव,और रसायनों का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है,जिसका प्रायः अशुभ प्रभाव पड़ता है।अतः इनका प्रयोग सोच-समझकर करना चाहिए।
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क्रमशः....अध्याय सत्रह...

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