पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-79

         अध्याय १७.गृह-समीप-(क) वृक्षादि विचार 
    
पूर्व के विविध प्रसंगों में वृक्ष-पादप-क्षुप-वल्लरी आदि के सम्बन्ध में यत्र-तत्र थोड़ी चर्चा हुयी है। अब यहाँ उनके गुण-दोषों की विशेष रुप से चर्चा की जा रही है।
तुलसी का पौधा- यही एक अपवाद पादप है,जिसे वास्तुमंडल के मध्य में भी स्थापित किया जा सकता है।हिन्दु-घरों की पहचान है- यह पवित्र पौधा। शायद ही किसी हिन्दु का घर हो,जहां तुलसी का पौधा न लगा हो।इसे सुन्दर गमले(चौरा) में आंगन में लगाने से विभिन्न प्रकार के वास्तु-दोषों का निवारण होता है। इसके अतिरिक्त कोई भी पौधा(छोटा या बड़ा) वास्तुमंडल के अन्दर नहीं होना चाहिए।
    ब्रह्मवैवर्तपुराण,श्रीकृष्ण खण्ड १०३/६२-६३ में कहा गया है कि घर के भीतर लगायी हुई तुलसी अति कल्याणकारी है।धन-पुत्र-यश-पुण्यादि प्रदान करती है। नित्य प्रातः तुलसी का दर्शन मात्र भी सुवर्ण-दान-तुल्य फलदायी है।
    भविष्यपुराण में कहा गया है कि यमदूतों से त्राणपानाहै,उन्हें दूर भगाना है, तो तुलसी को घर में लगायें, और नित्य पूजन-सेवन करें;और यदि उन्हें आहूत करना है, तो इस पवित्र पादप को वास्तुमंडल के दक्षिण दिशा में लगा दें।अर्थात् दक्षिण दिशा में इसे कदापि न लगायें।
          
शमी का पौधा- तन्त्र,ज्योति,वास्तु के बाजारीकरण के विकट दौर में शनि को विशेष रुप से व्याख्यायित करके समाज में भ्रामक भय पैदा कर दिया गया है,जिसके परिणाम स्वरुप एक ओर शनि के मन्दिरों की संख्या बढ़ी है,तो दूसरी ओर घर-घर में तुलसी से भी अधिक महत्त्वपूर्ण शमी हो गया है।नर्सरी वाले इसकी मनमानी कीमत वसूल कर रहे हैं।ज्योतिषशास्त्र ने शनि को क्रूरग्रह (पापग्रह) की सूची में रखा है।वस्तुतः शनि एक कठोर न्यायाधीश हैं,और मनुष्य के पापों को क्षरित कर(दण्ड देकर)जीवन में नूतन आलोक जगा देते हैं। पथभ्रष्ट को सही दिशा में ला खड़ा करते हैं।
लोग समझते हैं कि शमी का पौधा घर में लगाने से शनि का कोपभाजन नहीं बनेंगे।जबकि यह बिलकुल ही बचकानी बात है।जज का खुशामद करके कोई अपराधी बच नहीं जाता,कर्मानुसार उसे दण्डित होना ही है।
    शमी का उपयोग शनि-शान्ति एवं प्रसन्नता हेतु संविधा के रुप में किया जाना चाहिए। इसकी पत्तियाँ और फूल भी शनि की अर्चना में प्रयुक्त होते हैं, साथ ही शिव को भी अतिप्रिय है।शमीपुष्प और पत्तियाँ प्रायः हर देवों को अर्पित की जाती है।इसके प्रयोग से पापों का क्षय होता है।अमंगल का नाश होता है।दुःस्वप्न के प्रभाव को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता शमी में है।शास्त्र के वचन हैं कि रात्रि में बुरे स्वप्न यदि देखते हों तो प्रातः उठ कर शमी का दर्शन करें,तथा शमीपुष्प और पत्तियाँ भगवान शिव को अर्पित करें।ऐसा कुछ दिनों तक करने से निरंतर देखे जाने वाले बुरे सपनों का नाश होता है।यथा-
शमी शमय में पापं शमी लोहितकंटका।
धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी।।
अमङ्गलानां शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च।
दुःस्वप्न नाशिनीं धन्यां प्रपद्येऽहं शमीं शुभाम्।।
    वस्तुतः शमी का पंचांग अनमोल है।इसके मूल को पंचोपचार पूजित और शनिमंत्र से अभिमंत्रित करके धारण करने से शनिदेव अति प्रसन्न होते हैं। पूजित अभिमंत्रित मूल को तिजोरी,पर्स,गल्ले आदि में रखने से स्थिर लक्ष्मी का वास होता है।अज्ञात कारणों से हो रहे धनक्षय का शमन होता है।
उपयोगिता की दृष्टि से इसे गृहवाटिका में लगाना चाहिए,न कि घर के भीतर या मुख्यद्वार पर।वास्तुमंडल के पश्चिम दिशा में,जहाँ शनि का क्षेत्र है, मंडल से तीन या पांच हाथ की दूरी पर लगाना सर्वाधिक श्रेष्ठ है।अन्य दिशाओं में नहीं लगाना चाहिए।पूर्वाभिमुख भवन के मुख्यद्वार के आसपास लगा देना सर्वाधिक अशुभ है।इसका प्रभाव वासकर्ता के तेज,शौर्य,प्रतिष्ठा,पिता,सन्तान आदि पर सदा प्रतिकूल पड़ेगा।छोटे आकार के शहरी मकानों में जहाँ भूतल पर स्थान न हो, तो ऊपरी छत पर भी मध्य पश्चिम दिशा में गमले में लगा सकते हैं, किन्तु यह वैकल्पिक व्यवस्था है।ध्यातव्य है कि शमी पादप नहीं,वृक्ष है;और किसी भी वृक्ष को गमले में कैद करना वानस्पतिक अपराध है।अतः वनस्पति तन्त्र इसकी आज्ञा नहीं देता।इससे एक ओर चन्दमा कुपित होते हैं,तो दूसरी ओर जिनसे सम्बन्धित वह पौधा है।
क्रमशः...

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