गतांश से आगे...अध्याय १७.गृह-समीप-(क) वृक्षादि विचार -2
केले का पौधा- केला वृहस्पति का पौधा है।आजकल इसे भी
प्रायः घर-घर के गमलों में स्थान मिल गया है।ज्ञातव्य है कि इसे गृहवाटिका में ही
लगाना उचित है,और स्वयं न लगावे- यह भी आवश्यक शर्त है,जिसे बहुत कम लोग ही जानते
हैं।नियम है कि लगाने वाले को छेदन नहीं करना चाहिए,और केले का विकास छेदन करने से
ही होता है।स्वयं लगाये गये पौधे का छेदन करने से सन्तान पक्ष की हानि होती
है।मंडल के बाहर ईशान क्षेत्र में अनुकूल जगह पर लगाना चाहिए।विष्णु या वृहस्पति
के निमित्त पूजा करनी हो तो वहीं जाकर करें।
मालती,शतावरी,चमेली,बेली,जूही
आदि वल्लरियाँ भवन के सजावट के लिए लगायी जा सकती हैं-इस सम्बन्ध में परिसर की
साज-सज्जा के प्रसंग में विशेष रुप से कहा जा चुका है।(अतः वहीं देखें)किंचित मत
से मालती को परिसरीय वल्लरी नहीं माना गया है।
एक
सामान्य नियम है कि निर्मित वास्तु मंडल से तीन या पांच हाथ हट कर ही पादप (लघु
आकार के पौधे) लगाये जायें।
मुख्यद्वार के
दायें-बायें नागदमनी का पौधा लगाया जा सकता है।
क्रमशः.....
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