गतांश से आगे....अध्याय १७.गृह-समीप-(क) वृक्षादि विचार भाग तीन
अन्तःकक्षीय(Indoor
Plants) का आजकल काफी चलन है,इसे सोच-विचार कर ही लगाना चाहिए।छोटे मकानों
में इन पौधों को रखना उचित नहीं है। विशेषकर ऐसे भवन में जिसके तल की ऊँचाई
पन्द्रह फीट से कम न हो,यानी आकाश तत्व प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो,
इन्डोरप्लान्ट्स रखे जा सकते हैं- बरामदे,बालकनी,हॉल आदि में;किन्तु उनमें भी कैक्टस
आदि कांटेदार प्लान्टों से परहेज करना चाहिए।
थूहर(सीज) नामक नागफनी की
एक प्रजाति को प्रायः लोग दरवाजे के आसपास लगा देते हैं,यह उचित नहीं है।इसे
नैऋत्य कोण में लगाया जा सकता है।
गेंदा,गुलाब,गुलदावदी,डहेलिया,आदि विभिन्न प्रकार के सुन्दर-सुगन्धित
पुष्पों को उत्तर-पूर्व भाग में लगाना उत्तम है।ओड़हुल(जवा,जपा),चम्पा और
रजनीगन्धा की दूरी अपेक्षाकृत अधिक होनी चाहिए,अन्य पुष्प-पादपों से।कटहली चम्पा
वृक्षाकार होता है,तदनुसार इसकी दूरी और अधिक हो।केवड़ा वर्जित पुष्पों में
है।इसका प्रयोग किसी भी देवपूजन में नहीं होता।भले ही काफी मोहक होता है। इसमें
औषधीय गुण हैं। इसे वास्तुमंडल से दस-पन्द्रह हाथ दूर ही रखना उचित है। इसमें सर्प
को आहूत करने की अद्भुत क्षमता है।अतः केवड़े के समीप नागदमनी भी अवश्य लगायें।
नारियल,सुपारी,अशोक,पुन्नाग(नागकेसर),बकुल(मौलश्री),कटहल,कदम्ब,शमी,हर-श्रृंगार,श्वेत
वा रक्त मन्दार आदि विशिष्ट दोषनिवारक पौधे हैं।इन्हें किसी अन्य दोषपूर्ण पौधे के
मध्य क्षेत्र में,उनके दोषनिवारण हेतु लगाना चाहिए। साथ ही स्वतन्त्र रुप से भी इन
पवित्र पौधों को यथोचित स्थान पर लगाना चाहिए। नारियल और सुपारी पर्याप्त दूरी
रखते हुए मुख्यद्वार के ईर्द-गिर्द लगाना उत्तम है,किन्तु ठीक सामने होने पर
द्वारवेध पैदा करेंगे।
क्रमशः....
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