गतांश से आगे.....अध्याय सत्रह- गृहसमीप वृक्षादि विचार- भाग सात
अब
आगे वास्तुराजवल्लभ के कुछ श्लोकों की चर्चा करते हैं-
वृक्षा
दुग्धसकण्टकाश्च फलिनस्त्याज्या गृहाद्दूरतः,
शस्ते
चम्पकपाटले च कदली जाती तथा केतकी।
यामादूर्ध्वमशेषवृक्षसुरजा
छाया न शस्ता गृहे,
पार्श्वे
कस्य हरेरवीशपुरतो जैनानु चण्ड्याः क्वचित्।।२८।।
अर्थात्
दुग्धवाले,कांटेवाले और फूलवाले वृक्ष(पादप नहीं) किसी भी भवन के समीप अच्छे नहीं
होते।पुनः कहते हैं- चम्पा,गुलाब,केला,जाती(चमेली),केतकी के पौधे समीप में अच्छे
होते हैं।प्रसंगवश छाया विचार पर भी प्रकाश डालते हैं- एक पहर दिन के बाद किसी
वृक्ष की छाया गृह पर पड़ना अच्छा नहीं होता। पुनःएक और नियम का संकेत देते हैं कि
ब्रह्मा के मन्दिर के बगल में, विष्णु,शिव,और सूर्य मन्दिर के सामने,जैन मन्दिर के
पीछे और देवी मन्दिर के किसी भी दिशा में गृहवास अशुभ है।(इसकी चर्चा पहले भी
प्रसंगवश की जा चुकी है)।
अब
निषिद्ध वृक्षों के दुष्परिणाम को दर्शाते हैं-
सदुग्धवृक्षा
द्रविणस्य नाशं कुर्वन्ति ते कण्टकिनोऽरिभीतिम्।
प्रजाविनाशं
फलिनः समीपे गृहस्य वर्ज्याः कलधौतपुष्पाः।।(वास्तुराज.१-२९)
अर्थात्
दुग्धवाले वृक्ष धननाश,कांटेवाले वृक्ष शत्रुभय,और फूलवाले वृक्ष सन्तति नाश करते
हैं।विशेष कर पीत पुष्प गृहसमीप शुभ नहीं है।(ध्यातव्य है कि यहाँ वृक्ष की बात
कही जा रही है,पादप(छोटे पौधे)की नहीं।इसे यों समझे कि चम्पा शुभ है,परन्तु कटहली
चम्पा अशुभ है।चम्पा लघुकाय होता है,जबकि कटहली चम्पा विशाल वृक्ष होता है।इस नियम
के अनुसार गुलैची आदि भी अशुभ ही कहे जायेंगे।
वास्तुराजवल्लभ १-३०,एवं वास्तुरत्नाकर ६-४२ में
अन्य बातों के साथ-साथ वृक्ष
छेदन
निषेध का निर्देश करते हैं।यथा-
दुष्टोभूतनिषेवितोऽपि
विटपी नोच्छिद्यते शक्तित-
स्तद्वद्विल्वशमी
त्वशोकवकुलौ पुन्नागसच्चम्पकौ।
द्राक्षापुष्पकमण्डपं
च तिलकान्कृष्णां वपेद्दाडिमीं
सौम्यादेः
शुभदः कपित्थकवटावौदुम्बराश्वत्थकौ।।
अर्थात्
दुष्ट(निषिद्ध) एवं भूत-प्रेतादि आश्रित वृक्षों को धड़ल्ले से काट देना भी उचित
नहीं है।(अभिप्राय है कि सम्यक् बलिविधान से ही छेदन करे,तथा आश्रित भूतादि को
अन्यत्र(दूरस्थ)स्थान देदे)।पुनः कहते हैं- बेल,शमी,अशोक,वकुल,चम्पा, पुन्नाग,चन्दन,अनार,कृष्णा(पिप्पली),द्राक्षा(अंगूर),अन्य
पुष्पलतायें आदि लगाना अतिशुभ है।घर से उत्तर में कैथ,पूरब में वट,पश्चिम में
पीपल,दक्षिण में उदुम्बर (गूलर)लगाना शुभ है।
अग्निपुराण २४२-१,२ में धन्वन्तरि-सुश्रुत
संवाद में आम के अतिरिक्त अन्य कांटेदार वृक्ष भी दक्षिण दिशा में शुभ कहे गये
हैं।वहीं आगे इनके रोपण का काल,मुहूर्त आदि भी वर्णित है।
ऊपर के प्रसंग में शुभाशुभ वृक्षों के सम्बन्ध
में विशेष विचार किया गया।
ध्यान
देने योग्य है कि एक ही विषय को अलग-अलग प्रसंगों में पुनरावृत भी किया गया है।ऋषिमतान्तर
के कारण विधि और निषेध में भी यतकिंचित भेद मिल रहा है।पाठकों को इससे भ्रमित नहीं
होना चाहिए।अपने विवेक से किसी एक मत का आश्रय श्रेयष्कर है।अस्तु।
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क्रमशः....
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