गतांश से आगे.....
अध्याय १८-(भाग एक) विविध गृह-प्रकार
भवन निर्माण के सम्बन्ध में गत प्रसंगों
में काफी कुछ कहा जा चुका है, किन्तु एक आवश्यक बात पर ध्यान दिलाना शेष रह गया
है। वैसे तो भवन भवन होता है,चाहे
वह जैसा भी हो- अपेक्षित-समुचित भूमि का
चयन कर वास्तु-सम्मत सभी नियमों का यथासम्भव पालन करते हुए भवन का निर्माण कर लिया
जाता है।हर व्यक्ति अपनी स्थिति और आवश्यकता के अनुसार छोटे-बड़े वास्तुसंरचना का
चुनाव करता है;किन्तु उपयोगिता(प्रयोग) की दृष्टि से विचार करने पर हम पाते हैं कि
सभी भवन की मूलभूत बातें (नियम) समान होते हुए भी काफी भेद है,यानी भवन के
प्रकार(प्रायोगिक उपयोग)पर भी वास्तु के नियमों में यतकिंचित अन्तर होता है।इस
अन्तर को समझने से पहले उपयोगिता(प्रयोग) की दृष्टि से वास्तु-प्रकार(भेद)को समझना
जरुरी है।मुख्य रुप से इन्हें तीन भागों में बाँटा जा सकता है।यथा-
(१)आवासीय वास्तु,(२) व्यावसायिक वास्तु,(३)धार्मिक
वास्तु
पुनः इनके कई उप भाग भी हैं।आगे,यहाँ इन पर
विस्तृत विचार किया जा रहा है।
(१) आवासीय वास्तु-
राजा से लेकर मंत्री-संतरी पर्यन्त सभी,राजपुरोहित,राजवैद्य,राजज्योतिषी, विभिन्न राजकर्मचारी,सर्वसाधारण प्रजाजनों के आवास,कार्यालय,अतिथिगृह, धर्मशाला आदि आवासीय वास्तु के अन्तर्गत आते हैं।जीवन के परम लक्ष्यों-
धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष का सिद्धक होता है- आवासीय वास्तु। पारिवारिक
सुख-शान्ति,समृद्धि,वंशवृद्धि,आरोग्य के साथ-साथ समस्त लौकिक और पारलौकिक
स्रौत-स्मार्त क्रियाओं का केन्द्र है- आवासीय वास्तु। मनीषियों ने, वास्तुवेत्ताओं ने मानव-सुख को ध्यान में रखकर ही सभी वास्तु-नियमों का प्रणयन
किया है।अब तक के प्रसंगों में इसके विभिन्न पहलुओं पर विशद प्रकाश डाला जा चुका
है।मुख्य रुप से इसके चार उपप्रकार होते हैं-(क)-पर्णकुटी (झोपड़ी) (ख)-
काष्टकुटी(लकड़ी के घर),(ग)-मृदाकुटी(कच्ची मिट्टी के घर), (घ) पक्व-भवन(पक्की
ईंटों से बने घर)।इनमें चतुर्थ उपप्रकार- पक्की ईंटों से बने भवन के कई रूप होते
हैं।यथा- महल,हवेली,बैग्लो,फ्लैट्स आदि।आगे इन सभी पर वास्तुसम्मत दृष्टिपात कर
लें,ताकि इनका औचित्य और नियम-भेद भी स्पष्ट हो सके।
क्रमशः....
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