पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-94

गतांश से आगे....अध्याय अठारह भाग नौ

(२)व्यावसायिक वास्तु- व्यावसायिक वास्तु के दो प्रकार हैं-
   (क)व्यापारिक वास्तु – जिसके निम्न उप प्रकार हैं-
        1.दुकान,शोरुम,
        2.कार्यालय,बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थानादि  
        3.शिक्षण संस्थान
        4.चिकित्सालय(अस्पताल,नर्सिंगहोम),दवा-दुकान
        5.होटल,रिसोर्ट,कटलरी शॉप आदि
        6.क्लब,जिम,कसीनो आदि
        7.सिनेमाघर,स्टूडियो,थियेटर,नृत्यशाला,मदिरालय आदि
        8.ब्यूटीपॉर्लर,ज्वेलरी शॉप
        9.विजली और इलेक्ट्रोनिक शॉप
        10.सामुदायिक भवन(विवाह-भवन,पंचायत-भवन आदि)
   (ख)औद्योगिक वास्तु- कुटीर उद्योग,लधु उद्योग,मिल,कारखाने आदि।
अब इन पर किंचित विशद चर्चा –

सामान्य तौर पर कहा जाय तो किसी भी प्रकार के वास्तु के लिए वास्तुशास्त्र के मूल नियमों का समान रुप से पालन अनिवार्य है,किन्तु कुछ नियमों में किंचित भिन्नता भी है।यहाँ सिर्फ उन्हीं बातों की चर्चा करेंगे,जिनपर पूर्व प्रसंगों में ध्यान नहीं दिया गया हैः-

(क)व्यापारिक वास्तु- आवासीय भूखण्ड चयन हेतु सतर्कता पूर्वक भूखण्ड-चयन के सभी नियमों का ध्यान रखना चाहिए;किन्तु मनोनुकूल उपलब्धि(वाजार,एवं अन्य जरुरी बातें) सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।इस कारण गरजवश प्रायः दोषपूर्ण चयन के लिए भी लोग विवश होते हैं।व्यापारिक वास्तु की स्थापना का एक मात्र उद्देश्य होता है- आर्थिक लाभ।यहाँ इसके विभिन्न उपप्रकारों के लिए आन्तरिक नियमों पर थोड़ी चर्चा करेंगे।

   सीधे तौर पर लोग मान लेते हैं कि व्यवसाय के लिए दक्षिणमुखी भूखण्ड या फिर सिंहमुखी भूखण्ड अच्छा होता है,किन्तु यह आंशिक सत्य है।वासभूमि की तरह ही व्यावसायिक भूखण्ड भी पूर्व या उत्तरमुखी ही सर्वश्रेष्ठ होता है। पश्चिममुखी भूखण्ड- व्यवसाय में थोड़ी अस्थिरता पैदा करता है,यानी द्वितीय श्रेणी में है;तथा दक्षिणमुखी भूखण्ड तृतीय श्रेणी में आता है-ध्यातव्य है कि त्याज्य श्रेणी में नहीं,और इसे ही भ्रम या अल्पज्ञता वश लोग उत्तम मान लेते हैं।हाँ, सिंहमुखी को कुछ विद्वान अति उत्तम मानते हैं- किसी प्रकार के व्यवसाय के लिए।

क्रमशः....

Comments