पुण्यार्कवास्तुमंजूषा- 95

गतांश से आगे....अध्याय अठारह भाग दस 

 व्यापारिक वास्तु के उपप्रकारः-
1.दुकान,शोरुम-किसी भी वस्तु के विक्रय हेतु छोटी-बड़ी दुकानें नगर के मुख्य बाजार,या अन्य भागों(आवासीय क्षेत्र,औद्योगिक क्षेत्र)में सड़क के दोनों ओर पंक्तिवद्ध रुप से बनी होती हैं;या फिर किसी भव्य व्यावसायिक परिसर के बहुमंजिलों में चारो ओर से सजी होती हैं।यहाँ गौर तलब है कि इस प्रकार के परिसर में परिसर-प्रवेश-विचार करेंगे,न कि प्रत्येक दुकानों का मुख-विचार।यह ठीक वैसा ही है,जैसे कि भोजन का नियम है- दक्षिणाभिमुख कदापि न करे, किन्तु सामूहिक भोजन- शादी-विवाह, उत्सवादि में,या घर में ही डायनिंग टेबल पर- जहाँ चारों ओर से बैठने की सुविधा है- दिशादोष लागू नहीं होता।किन्तु किसी अल्प आवादी वाले क्षेत्र में,या एकल रुप से दो-चार दुकानें हों तो दिशा- दोष विशेष रुप से विचारणीय होगा।भवन यदि निजी है तो विशेष सतर्कता पूर्वक निर्माण कार्य करना चाहिए।यथासम्भव सभी वास्तु-नियमों का पालन करना चाहिए।दुकान(मकान)किराये पर है,जिसमें स्वेच्छया निर्माण(या बदलाव) सम्भव नहीं है तो आंशिक रुप से यथोचित वास्तुदोषों का निवारण कर लेना चाहिए।आगे वास्तुदोष निवारण अध्याय में कुछ निवारण के उपाय दिये गये हैं। रंगयोजना तो अपने अनुकूल कहीं भी कर ही सकते हैं।रंगों के सम्बन्ध में एक खास बात है कि आवासीय वास्तु में स्वामी की राशि-लग्नादि के अनुसार रंग चयन करते हैं,जब कि व्यापारिक/व्यावसायिक वास्तु में व्यवसाय के अनुकूल रंगयोजना का चयन किया जाना चाहिए।उदाहरणार्थ- लोहे-सीमेन्ट आदि शनि की वस्तुओं के विक्रेता को शनि का प्रिय रंग ग्रहण करना चाहिए।राहु की वस्तु- इलेक्ट्रोनिक्स आदि के विक्रेता को राहु के प्रिय रंग का चुनाव करना चाहिए।गुरु की वस्तु-पुस्तकादि,शुक्र की वस्तु- सुगन्ध और श्रृंगार-प्रसाधनादि के अनुकूल ही रंगयोजना ग्रहण करनी चाहिए। इसी भांति विभिन्न वस्तुओं से सम्बन्धित ग्रहों का विचार करना श्रेयस्कर है।मिश्र प्रकार की दुकानों में स्वामी अपनी राशि के अनुसार ही रंगों का चुनाव करें। पूर्व अध्याय में राशि-स्वामी,मित्रामित्र,रंग-योजना की चर्चा की गयी है।उक्त बातों के अतिरिक्त निम्नांकित निर्देशों का भी यथासम्भव पालन होना चाहिए-
ü दुकान-मालिक के बैठने का स्थान ऐसा हो ताकि पूरी दुकान पर नजर रखी जा सके।आजकल सी.सी.कैमरा का युग है।सक्षम व्यवसायी इसका उपयोग कर सकते हैं।ऐसी स्थिति में अपने बैठने का स्थान नैऋत्य-क्षेत्र में रखना सर्वोत्तम होगा,किन्तु आनेवाले ग्राहकों की निगाह मालिक पर आसानी से पड़नी चाहिए- इस व्यावहारिक बात का भी ध्यान रखना जरुरी है।
ü पूर्व या उत्तर मुख बैठना श्रेयस्कर है।
ü बैठने की स्थिति- दुकान के प्रवेश-द्वार पर भी निर्भर है।
ü मालिक इस प्रकार की गद्दी लगावे कि पीठ बेसहारा न हो।
ü बने हुए काउन्टर पर बैठना हो तो अपने दांयी ओर की दराज का प्रयोग कैशबॉक्स के लिए करना चाहिए,न कि बांयी दराज का।सम्मुख दराज भी उत्तम है।
ü उठाऊ छोटी तिजोरी(गल्ला) हो तो सामने या दांये ही रखें।
ü गल्ला कभी रिक्त(खाली)न रहे।सुपारी,कौड़ी,सोने या चांदी का सिक्का,हल्दी की गांठ,कमलगट्टा आदि पीले रंग की झोली में भर कर रखना चाहिए। कहीं-कहीं लोग इसमें धनियां भी डाल देते हैं- जो बेतुका है।सिक्का के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं को दीपावली की पूजा में हर साल बदल देना चाहिए।
ü पल्लेदार बड़ी तिजोरी को गद्दी पर रखना उचित नहीं है।उसे दुकान में विशेष सुरक्षित जगह पर मध्य-उत्तर(कुबेर की दिशा)में रखे।(द्रष्टव्य-अध्याय ग्यारह-तिजोरीव्यवस्था)।
ü तिजोरी उत्तर या पूर्व की ओर खुले।
ü दुकान चौकोर(वर्गाकार या आयताकार दोनों ही)शुभ है।
ü शुभारम्भ हेतु अपनी कुण्डली के अनुसार अन्यान्य ग्रह-स्थिति-विचार भी करना चाहिए।
ü दुकान का शुभारम्भ प्रायः लोग दीपावली में आँख मूंद कर कर लेते हैं,यह उचित नहीं।इसके लिए विपणन-मुहुर्त देखना आवश्यक है।
ü शुभारम्भ के समय विधिवत सभी देवों की पूजा के साथ,अन्त में संक्षिप्त रीति से कम से कम वास्तु होम अवश्य कर दें।
ü प्रायःलोग शुभारम्भ कलश या दीपावली की वार्षिक पूजा वाली कलश, नारियल आदि पूजा के बाद यथावत साल भर(अगली पूजा तक)सुरक्षित रखे रहते हैं- यह उचित नहीं है।मांगलिक कलश का पूजा-प्रयोग के बाद विसर्जन कर देना चाहिए।सिर्फ लक्ष्मी-गणेश की स्थापित मूर्ति ही आगामी पूजा तक सुरक्षित रखने की चीज है,जिनकी नित्य विधिवत पूजा-अर्चना होनी चाहिए।
ü ध्यातव्य है कि कलश और नारियल में जब तक जल रहता है तब तक तो वह लाभकारी होता है,किन्तु जैसे-जैसे जल सूखने लगता है- हानिकर होता जाता है।अतः पूजा के बाद विसर्जन कर देना ही उचित है।
ü दुकान में स्थापित मूर्ति का मुख पूर्ब या पश्चिम ही उचित है।अन्यान्य दिशा में नहीं।(द्रष्टव्य-गत अध्याय का पूजास्थल)
ü कोई भी व्यापार हो- हमेशा एक समान नहीं चलता.उतार-चढ़ाव होते रहते हैं।किसी-किसी को यह परेशानी अधिक झेलनी पड़ती है।इसके निवारण के लिए गल्ले या तिजोरी में व्यापार-वृद्धि यन्त्र को योग्य विद्वान से सिद्ध करा कर स्थापित कर देना अति लाभदायक होता है।इसमें लक्ष्मी-गणेश की आकृति के अतिरिक्त एक विशेष यांत्रिक आकृति भी होती है,जो व्यापार को संतुलित करती है।इस यन्त्र की नित्य पूजा-अर्चना होनी चाहिए।
ü दुकान में सामग्रियों के रख-रखाव में वजन और वस्तुगत गुण का विचार करना आवश्यक है।भारी सामान को दक्षिण-पश्चिम में रखना चाहिए।
ü दक्षिण-पश्चिम का भाग कदापि रिक्त, हल्का या नीचा न हो।
ü जो सामान किसी कारण से फंस गया हो(विक्री न हो पा रही हो)उसे वायु कोण में उचित स्थान पर रख दें।आसानी से बिक जायेगी।
ü दुकान छोटी हो या बड़ी,प्रयास हो कि उसका मध्य भाग १/९ नहीं तो कम से कम १/८१(केन्द्रीय ब्रह्मस्थान) अवश्य रिक्त रहे।रिक्ति सम्भव न हो तो अन्य भागों से हल्का तो रखा ही जाय।
ü केन्द्रीय भाग की पवित्रता-स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाय।(एक सज्जन पान खाते थे।बैठने का स्थान केन्द्रीय भाग के समीप था,और पीकदान वहीं पड़ा रहता था,जिसका बड़ा ही घातक प्रभाव उनके व्यवसाय पर पड़ रहा था।सुझाव स्वरुप, मैंने कुछ खास नहीं किया- सिर्फ पीकदान का स्थान बदल दिया।उद्भुत लाभ हुआ)।
ü खैनी खाने वाले दुकानदार अकसर गद्दी के समीप ही थूकते रहते हैं।यह बहुत बुरी आदत है।गद्दी कहीं भी हो,उसकी मर्यादा की रक्षा होनी चाहिए।
ü किराने आदि की दुकानों में तराजू का उपयोग होता है।इलेक्ट्रोनिक मशीन के चलन के बावजूद तराजू की अपनी उपयोगिता है।ध्यान रहे कि तराजू के एक पल्ले पर कोई न कोई बाट अवश्य रखा रहे,ताकि खाली तराजू में कम्पन न हो।तराजू का कम्पन व्यवसाय को आन्तरिक क्षति पहुँचाता है।
ü तराजू के बिचले (मूठ)भाग में पीले रंग का कलावा(मौली)प्रत्येक बुधवार को बांध दिया करें।अगली बार पुराने मौली को खोल दें।
ü दुकानों में नीम्बू-मिर्चा बाँधने का चलन है,जो टोटका मात्र है।इस स्थान पर सहस्राभिमंत्रित पीतल की वांसुरी का जोड़ा पीले रिबन से लपेट कर लकड़ी के दो टुकड़ों का आधार देकर,रिबन के सहारे लटका दें।इससे दुकान की अवांछित ऊर्जा हमेशा बाहर निकलती रहती है,और स्वच्छ ऊर्जा का प्रवेश होता है।(द्रष्टव्य- वास्तुदोषनिवारण अध्याय)।
ü दुकान की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।
ü सप्ताह में कम से कम एक बार हल्दी मिश्रित जल से, और एक बार नमक मिश्रित जल से पोंछा लगावें या सामान्य छिड़काव कर दें।इससे विभिन्न टोने-टोटके से रक्षा होती है।दुकान में ग्राहकों की बढ़ोत्तरी होती है।
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क्रमशः....

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