पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-96

गतांश से आगे...अध्याय अठारह,भाग ग्यारह

2.कार्यालय,बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थानादिः- कार्यालय,बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थानों के लिए भी वास्तु के मूलभूत नियम तो वही रहते हैं,किन्तु कुछ बातों पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।यथा-
§  ये सभी सार्वजनिक स्थान(पब्लिक प्लेस) हैं,जहाँ नित्य सैकड़ों नये आभामंडल का प्रवेश और निकास होते रहता है।सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन स्थानों का साफ-सुथरा होना जरुरी है।हवा और रौशनी की पर्याप्त सुविधा होनी चाहिए।इसके अभाव में अच्छे- बुरे "ओरा" के प्रभाव से संस्थान को अनेकानेक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।सार्वजनिक स्थानों में आये दिन जो समस्यायें खड़ी होती रहती हैं,उन्हें सही वास्तु-बल देकर आसानी से सुलझाया जा सकता है।कृत्रिम रौशनी और कृत्रिम हवा के युग में हम भूल जाते हैं- प्रकृति की महत्ता को,जिसका दुष्परिणाम जाने अनजाने भुगतना पड़ता है।किसी भी सार्वजनिक स्थान के लिए इनका महत्त्व व्यक्तिगत स्थान की तुलना में अधिक होजाता है। पूर्व अध्याय में शुभाशुभ ऊर्जा प्रवाह की स्थिति को एक बार गौर से देखें।इन स्थानों की क्या स्थिति है- सम्बन्धित भवन में- इसका गहराई से विचार कर यथासम्भव पालन करें।
§  मध्य के खुले स्थान पर विशेष ध्यान रखें।इस स्थान पर भारीपन ही नहीं,भरापन भी हानिकारक होगा।खाली के साथ-साथ साफ-सुथरा भी रहना जरुरी है।
§  छोटा कार्यालय हो या बड़ा,वैंक हो या अन्य वित्तीय संस्थान रिसेप्शन काउण्टर प्रवेश द्वार के समीप रखना ही व्यावहारिक है।चूँकि यह स्थायीत्व का बोधक नहीं हैं,अतः इसे वायु कोण,उत्तर या पूर्व में ही होना चाहिए।इन स्थानों पर सुविधा न हो तो कम से कम बैठने की दिशा का ध्यान अवश्य रखा जाय- रिसेप्शनिष्ट उत्तर या पूर्व मुख ही बैठे।
§  रिसेप्शनिष्ट के कपड़े बहुत भड़कीले(गहरे रंगों वाले) न हों।चन्द्रमा और बुध का यह क्षेत्र है,तदनुसार उनके "स्वरंग" या मित्र रंग ही अच्छे कहे जायेंगे।(द्रष्टव्य-राशिरंगयोजना)।
§  इस भाग में शीशे का प्रयोग न किया जाय तो अच्छा होगा।शीशा राहु के प्रभाव की वस्तु है,और यह स्थान वायु और चन्द्रमा का है। शीशे में बन्द रिसेप्शनिष्ट से ग्राहकों की बकझक अधिक होती है।
§  मुख्य प्रबन्धक/पदाधिकारी का केबिन नैऋत्य क्षेत्र में(कोण में नहीं) कोण से थोड़ा हट कर ऐसा हो ताकि पूर्व या उत्तरमुख बैठा जा सके।
§  पदाधिकारी की सीट के ठीक पीछे कोई सहद्वार या बड़ी खिड़की न हो,बल्कि थोड़ा हट कर खिड़की होना अच्छा है।
§  पदाधिकारी की सीट ऐसी जगह पर हो जहाँ से आसानी से पूरे कार्यालय पर नजर रखी जा सके।हालाकि वर्तमान समय में इसका कोई महत्व नहीं रह गया है- नजर रखने का काम सी.सी.सी.आसान कर दिया है।
§  पदाधिकारी के जलपान और विश्राम के लिए अलग स्थान हो।
§  कार्यालय की प्रधान मेज पर कुछ भी खाना-पीना उचित नहीं।वैसे आजकल चाय और कोल्डड्रिंक्श के जमाने में इससे बचना भी आसान नहीं है;फिर भी खाना-नास्ता जैसे ठोस आहार से तो उस स्थान को मुक्त रखना ही श्रेयस्कर है।
§  अत्यावश्यक(विशेष महत्त्वपूर्ण)कागजात अपने से दांयें,थोड़ी दूरी पर सुविधानुसार रखे जायें।या दो तरफे दराजों वाली मेज की सुविधा हो तो उसके दाहिने भाग को इस तरह के काम के लिए प्रयोग करें। अपेक्षाकृत कम उपयोगी और महत्व वाले कागजातों को बायीं ओर अनुकुल स्थान पर रखें।
§  कर्मचारियों के बैठने के स्थान उत्तर या पूर्व की ओर हो तो अच्छा है।
§  कोई भी कर्मचारी बीम के नीचे न बैठे।
§  कर्मचारियों के लिए विभिन्न काउण्टर बने होते हैं,जिन पर प्रायः सामने की ओर शीशे की विभाजक दीवार बनी होती है,और कतार बद्ध मेजें सजी होती हैं।इन शीशों को लकड़ी के चौखटों के सहारे यदि खड़ा किया जाय तो वास्तु की दृष्टि से अधिक अनुकूल होगा।
§  सीधे शीशे को मात्र लकड़ी के आधार पर खड़ा करना(शेष फ्रेम का अभाव)कार्यालय में राहु को बलवान बनाता है।आजकल प्लास्टिक के फ्रेम का चलन हो गया है,जो वास्तु-दृष्टि से और भी हानिकारक है।पूरे तौर पर राहु का वर्चस्व हो जाता है।उनके बल-वीर्य को संतुलित करने में मंगल का योगदान आवश्यक है।ध्यातव्य है कि लकड़ी पर मंगल का प्रभाव है।
§  रोकड़िया(cashier)के केबिन को सुरक्षा के ख्याल से चारों ओर से शीशे और लोहे की जालियों से घेरा जाता है।ऊपर से भी लोहे का जाल होता है।ध्यायव्य है कि लोहे का रंग काला कदापि न रखा जाय।इससे शनि का कुप्रभाव पड़ेगा।मेरुन(कथ्थयी)के साथ हरे,पीले आदि रंगों का समावेश अनुकूल होगा।
§  जेनरेटर या विजली के अन्य उपकरण मुख्य रुप से अग्निक्षेत्र में ही हों।
§  भवन का जलस्रोत ईशान से पूर्व के बीच अनुकूल स्थान पर हो।(द्रष्टव्य- जलस्रोत अध्याय)
§  भवन में कैंटीन वगैरह अग्निकोण पर बनाये जायें।
§  बैंकों के स्ट्रॉंगरुम मध्य उत्तर में हों तो अति उत्तम।वायु,नैऋत्य, अग्नि आदि कोणों पर कदापि न बनाये जायें।ईशान पर मध्यम स्थिति है।
§  ल़ॉकर मध्य दक्षिण में भी बनाये जा सकते हैं,मंगल का प्रभाव क्षेत्र होने के कारण- सुरक्षा के ख्याल से,जिनके द्वार उत्तर की ओर खुलने वाले हों।स्वाभाविक रुप से खोलने वाले का मुंह दक्षिण की ओर होगा,किन्तु कोई हर्ज नहीं है इसमें।बैंकिंग व्यवस्था में यही अनुकूल है।
§  लॉकर के आसपास झाड़ू,वाईपर आदि सफाई के सामान न रखे जायें।
§  प्रहरी(सुरक्षा गार्ड)आदि के पोशाक काले न रखे जायें।नीला,खॉकी,लाल की प्रधानता वाले शेड अनुकूल होते हैं।
§  मुख्य प्रवेश द्वार से पदाधिकारी के चेंबर तक जाने का मार्ग दक्षिणावर्त(Clockwise)हो तो अति उत्तम।
§  कार्यालय आदि में खिड़की-दरवाजों के पर्दे काले रंग के कदापि न लगाये जायें। मिश्रित रंगों में काला भी हो तो कोई हर्ज नहीं।

§  भवन और वाह्य परिसर में सभी दिशाओं और विदिशाओं का समुचित ध्यान रखते हुए ग्रहों की अवस्थिति को नजरअन्दाज न करें।ग्रहों के विपरीत धर्मी पदार्थों के स्थापन से बचें।इससे कार्यालय में शान्ति,सुव्यवस्था बनी रहेगी।

क्रमशः.....

Comments