गतांश से आगे...अध्याय अठारह भाग उनीस
(इसके साथ ही आवासीय वास्तु की चर्चा समाप्त हुयी।आगामी पोस्ट में औद्योगिक वास्तु पर विचार करेंगे।)
क्रमश.....
10.सामुदायिक
भवन(विवाह-भवन,पंचायत-भवन आदि)- आजकल व्यावसायिक वास्तु
में कुछ नये अध्याय जुड़ गये हैं।गणतान्त्रिक देश में पंचायती राज्य व्यवस्था के
तहत हर पंचायत में पंचायत भवन बनाये जा रहे हैं।सच पूछा जाय तो ये व्यावसायिक भवन
नहीं हैं, और न आवासीय ही हैं।इनपर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं है।मुखिया-सरपंच
का परिवार भी इसमें वास नहीं करता,और न सरकारी या व्यक्तिगत आय के स्रोत ही है
ये।किन्तु इनका ढांचा सामुदायिक भवन जैसा ही होता है।जिसमें गोष्ठी-कक्ष,कार्यालय,वरामदा,शौचालय,
नलकूप आदि मुख्य रुप से होते हैं।ये प्रायः एक ही तल(भूतल)पर होते हैं।इनके
निर्माण में वास्तु के मुख्य नियमों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।ऐसा न कि सबकुछ
वास्तु विपरीत ही कर दिया जाय।
दूसरी ओर, इनसे बिलकुल भिन्न उद्देश्य
से,बड़े सामुदायिक भवन बनाये जाते हैं,जिनका पूर्णतः व्यावसायिक उपयोग होता है-
शादी-विवाह,अन्य समारोह आदि के लिए किराये पर लगा कर।सामान्य आवासीय वास्तु से
काफी भिन्नता होती है।होटल-रिसोर्ट के ढांचे से भी मेल नहीं खाता।कार्यालय आदि से
तो बिलकुल ही भिन्न प्रकृति का होता है। स्थिति और आवश्यकता के अनुसार सामुदायिक
भवनों के आकार छोटे-बड़े हुआ करते हैं।इन सारी बातों का ध्यान रखते हुए तदहेतु कुछ
वास्तु नियम सुझाये जाते हैं।यथा-
v अपेक्षाकृत बड़े भूखण्ड का चयन करना चाहिए,जिसमें मुख्य भवन के अतिरिक्त
परिसर अवश्य हो।
v भूखण्ड तक पहुँचने का मार्ग सुलभ और प्रसस्त होना अनिवार्य है,ताकि समीप तक
गाड़ियां(कार वगैरह)जा सकें।यानी संकरी गली में न हों।
v अधिकाधिक गाड़ियों के पार्किंग की सुविधा भी अत्यावश्यक है,जो सामने,पीछे,या
दांये-बायें सुविधानुसार बनायी जायें।यहाँ पार्किंग के लिए प्रसस्त वायुकोण वाले
नियम का बन्धन अनिवार्य नहीं है।
v बिलकुल भीड़-भाड़ वाली जगह पर ऐसे सामुदायिक भवन न बनाये जायें, और न बहुत दूर-
शहर से हट कर ही,जहाँ पहुँचने में आमलोगों को कठिनाई हो।
v सामुदायिक भवन का प्रवेश दक्षिण मुख कदापि न रखें।शेष कोई भी मुख्य दिशा(विदिशा
नहीं) हो सकती है।
v भवन के साथ प्रसस्त स्थान भी अनिवार्य रुप से होना चाहिए,जो कि सामने ही हो
तो अधिक अच्छा है।
v भवन की ऊँचाई(मंजिलें)बहुत अधिक न हो।सामान्य तौर पर दो से चार मंजिले उचित
कही जा सकती हैं।
v भवन की वाह्याभ्यन्तर साज-सज्जा आकर्षक और मनोहर हो।
v होटलों के लिए बताये गये प्रायः नियम सामुदायिक भवनों के लिए भी समान रुप से
ग्राह्य हैं।
v ब्रह्मस्थान की मर्यादा को यथोक्त रुप से पालन करते हुए भवन में एक से अधिक
बड़े कमरे(हॉल) रखे जायें,जिनका उपयोग एकाधिक परिवार(पक्ष)के लिए सुलभ हो सके।
v बड़े कमरे(कमरों)के अतिरिक्त छोटे-छोटे(दो-तीन-चार वेड वाले)कमरों की भी
पर्याप्त संख्या हो।
v प्रत्येक मंजिल पर शौचालय स्नानागार की समुचित व्यवस्था हो।
v सेप्टीटैंक भवन के पिछले हिस्से(द्रष्टव्य- सेप्टीटैंक-व्यवस्थाध्याय) में हो
तो अधिक अच्छा है।
v बोरिंग समुचित स्थान पर हो (उत्तर-ईशान-पूरब)(द्रष्टव्य जलस्रोतअध्याय),
जिससे जुड़ी जल-वितरण-व्यवस्था भवन के पूरे भाग में(प्रत्येक कमरों में) सुचारु
रुप में हो।
v सामुदायिक भवन में भू-स्वामी का हरदम उपस्थित रहना अनिवार्य नहीं होता,फिर भी
एक कक्ष नैऋत्य कोण में अवश्य होना चाहिए,जिसे समयानुसार कार्यालय के रुप में
उपयोग किया जा सके।
v हवा और रौशनी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
v सामुदायिक भवनों में कूड़ेदान भी कई जगह पर होने चाहिए(द्रष्टव्य- शुभाशुभ
ऊर्जा-प्रवाह अध्याय)।
---+++---(इसके साथ ही आवासीय वास्तु की चर्चा समाप्त हुयी।आगामी पोस्ट में औद्योगिक वास्तु पर विचार करेंगे।)
क्रमश.....
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