पुण्यार्कवास्तुमंजूषा- 106

गतांश से आगे...अध्याय अठारह...भाग एक्कीश

(३)धार्मिक वास्तुः-धर्मप्राण देश,भारतवर्ष की आधारशिला है- धर्म।पुरूषार्थ चतुष्टय में प्रथम यही है।इसी सोपान से होकर मोक्ष-मार्ग प्रशस्त है।हमारे सभी कृत्य सुचारु रुप से हों,इसीलिए यज्ञ-याग् का विधान किया गया;और इसके लिए नियत स्थान का चयन करना पड़ा।चयन और निर्माण के ये नियम-सिद्धान्त ही वास्तुशास्त्र कहलाया।मूलतः धार्मिकवास्तु का ही नियम बना।वैदिक शुल्बसूत्रों से लेकर पौराणिक विस्तार तक इसका विशद विवेचन हुआ।विकास-क्रम में देवालय के उपरान्त ही राजगृह आदि विभिन्न लोकहितकारी वास्तुशास्त्र प्रवृत्त हुए।सारी चर्चायें राजा और ब्राह्मण को लक्षित करके की गयीं। वास्तुशास्त्र के उपकारक ज्योतिष,कर्मकाण्ड,शिल्प,आलेख्य कलाओं का शास्त्रीय अध्ययन-मनन,नियमन; दैवज्ञ,वेद-पुराण-आगम-निगम-ज्ञाता,निपुण शिल्पशास्त्री आदि के परामर्श से धार्मिक संस्थानों का निर्माण किया गया।प्राचीन धर्म स्थल-देश के चारो दिशाओं में स्थापित चारधाम-वद्रीकाश्रम,रामेश्वरम्,द्वारका,जगन्नाथ-पुरी के अतिरिक्त महाकाल(उज्जैन),कमाख्या(असम),विष्णुपद(गयाधाम),वाराणसी के विश्वनाथ, कोणार्क,आदि वास्तु के अद्भुत नमूने हैं।विस्तृत अर्थ में कहा जाय तो धार्मिकवास्तु के अन्तर्गत ही सभी वास्तु समाहित हो जाते हैं।विशेष स्पष्टी के लिए पूर्व प्रसंगों में हम अलग-अलग भेद करते आये हैं।पुनः यहाँ इस एक नाम- धार्मिकवास्तु को भी चार उपभेदों में वर्णित कर रहे हैं।यथा-
१.मन्दिर,२.आश्रम,३.धर्मशाला,४.वापी,कूप,तड़ागादि।

आगे इनकी थोड़ी विस्तृत चर्चा-
    हालाकि कश्यपादि कुछ ऋषियों का मत है कि कार्यारम्भ अग्निकोण से ही करना चाहिए।प्रायः लोग यही करते भी हैं।वस्तुतः यह स्थिरवास्तु के नियम के अनुसार सही है,जबकि वास्तुपुरूष की तीन स्थितियाँ होती हैं-स्थिर,चर और नित्य। अलग-अलग कार्यों में इनका उपयोग होता है।
 मुख्य बात यह है कि किसी भी प्रकार के शिलान्यास में वास्तुपुरूष की चरस्थिति का प्रयोग करना चाहिए,और वह भी तीन प्रकार की अन्तःगतिवान है- गृहारम्भ,देवालयारम्भ,और जलाशयारम्भ हेतु विचार-प्रक्रिया का आधार अलग-अलग है।तदनुसार,विभिन्न वास्तुशास्त्रों में  मुख्यतः इनके शिलान्यास में विशेष रुप से दिग्भेद(दिशाओं का अन्तर)है।मूलतः यह मुहूर्त-प्रकरण का विषय है;किन्तु प्रसंगवश इस पर एक नजर डाल लें-

(ध्यातव्य है कि यह सारणी सूर्य-राशि पर आधारित है)
गृहारम्भ
सिंह,कन्या,तुला
वृश्चिक,धनु,मकर
कुम्भ,मीन,मेष
वृष,मिथुन,कर्क
देवालयारम्भ
मीन,मेष,वृष
मिथुन,कर्क,सिंह
कन्या,तुला,वृश्चिक
धनु,मकर,कुम्भ
जलाशयारम्भ
मकर,कम्भ,मीन
मेष,वृष,मिथुन
कर्क,सिंह,कन्या
तुला,वृश्चिक,धनु
राहु मुख
ईशान
वायव्य
नैऋत्य
आग्नेय
राहु पुच्छ
नैऋत्य
आग्नेय
ईशान
वायव्य
राहु पृष्ठ
आग्नेय
ईशान
वायव्य
नैऋत्य


इस सारणी से स्पष्ट है कि आवासीय वास्तु के लिए शिलान्यास का जो स्थान होगा,मन्दिर के लिए उससे विलकुल भिन्न स्थान का चयन करना पड़ेगा,और जलाशय के लिए उससे भी भिन्न स्थान।

क्रमशः...

Comments