पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-114

गतांश से आगे...अध्याय अठारहः ः भाग उनतीस

अब विविध प्रकार के सरोवरों की चर्चा करते हैं-
सरोऽर्धचन्द्रस्तु महासरश्च वृत्तं चतुष्कोणकमेव भद्रम्।
भद्रैः सुभद्रं परिघैकयुग्मं बकस्थैकद्वयमेव यस्मिन्।।
                     (वास्तुराजवल्लभ-४-२९,वास्तुरत्नाकर-१२-४०)
अर्थात् अर्द्धचन्द्राकार,वृत्ताकार,चतुष्कोण,भद्र और सुभद्र नामक पाँच प्रकार के सरोवर होते हैं। इनमें परिघ एक ही होना चाहिए, तथा बकस्थल (पक्षियों के बिश्राम के लिए)सुविधानुसार एक या दो अवश्य बनाना चाहिए।
सरोवर के प्रकार निरुपण के पश्चात् अब आकार की बात करते हैं।यथा-
ज्येष्ठं मितं दण्डसहस्रकेन मध्यं तदर्धेन ततःकनिष्ठम्।
तथा करैः पञ्चशतानि दैर्घ्ये तदर्धमध्यं तु पुनः कनिष्ठम्।।
                  (वास्तुराजवल्लभ-४-३०,एवं वास्तुरत्नाकर-१२-४१)
अर्थात् चार हजार हाथ लम्बा और दो हजार हाथ चौड़ा उत्तम तालाब  माना गया है,दो हजार हाथ लम्बा और एक हजार हाथ चौड़ा को मध्यम,तथा एक हजार हाथ लम्बा और पाँच सौ हाथ चौड़ा को कनिष्ठ सर कहा गया है।

अब आगे कुछ चित्रों के माध्यम से इन्हें स्पष्ट किया जा रहा है-


क्रमशः.....

Comments