पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-122

गतांश से आगे- अध्याय इक्कीस,भाग दो

शिलान्यास-पूजन-सामग्रीः-
१.      पत्थर की सुडौल ईंटें-५,७,९,या ११.
२.    तांबे की छोटी लोटनी ढक्कन सहित या मिट्टी की कच्ची प्याली और ढक्कन(पक्की कदापि न लें)
३.    यथाशक्ति सोने,चाँदी या तांबे का नाग-नागिन,कछुआ, मछली, और गिरगिट
४.    सीमेंट,वालू,राजमिस्त्री के समान,और उपकरण
५.   आचार्य एवं कार्यकर्ता-पतिपत्नी के लिए यथोचित नवीन वस्त्र
६.     लाल-पीले मारकीन वा एकरंगा- एक मीटर
७.   मिट्टी का कलश और ढक्कन
८.    मिट्टी का दीया-५०
९.     मिट्टी की कड़ाही या बड़ा ढकना-१(हवन वास्ते)
१०.शुद्धघी-२५०ग्राम
११.गोलवाला रुई बत्ती-१पैकेट
१२.कपूर-५०ग्राम
१३.सुपारी-५०ग्राम
१४.मौलीधागा-५०ग्राम
१५.सफेद चन्दन,लालचन्दन,अष्टगन्ध-२५ग्राम
१६.रोली-५०ग्राम
१७.सिन्दूर-५०ग्राम
१८.लौंग-इलाइची-२५ग्राम
१९.अरवा चावल-५००ग्राम
२०.चौरेठा(चावल का आटा)-१००ग्राम
२१.मधु-छोटी शीशी
२२.गूड़-५०ग्राम
२३.कच्चा दूध(पंचामृत हेतु)-५०ग्राम
२४.दही-५००ग्राम
२५.काला उड़द(खड़ा)-५००ग्राम
२६.खैर की खूँटी-नौअंगुल का-ग्यारह(या कम से कम एक अवश्य)
२७.गोबर,गोमूत्र,गंगाजल-थोड़ा सा
२८.माचिस
२९.देवदारधूप,धूना,गूगल,अगर आदि सुगन्धित द्रव्य-थोड़ा-थोड़ा(आजकल बांस की तिल्लियों के सहारे बने अगरबत्ती का फैशन चल गया है,जो सर्वदा त्याज्य है,इसके स्थान पर सुगन्धित द्रव्यों को ही जलाना चाहिए)
३०.आम,पीपल,वड़,गूलर,पांकड़ का पल्लव(अभाव में सिर्फ आम)
३१.वेलपत्ता,शमीपत्ता,पानपत्ता,तुलसीपत्ता,कुशा,दूर्वा(दूब)-५०-५०
३२.केले का पत्ता वा थम्म,अशोक पत्ता आदि बन्दनवार हेतु
३३.फूल,माला-पर्याप्त मात्रा में(फूलों को टुकड़े कर न चढ़ायें)
३४.लड्डू,पेड़ा,विभिन्न प्रकार के फल इत्यादि-यथेष्ट मात्रा में
३५.सूखा गड़ी गोला-१
३६. जलदार गड़ी गोला-१
३७.धान का लावा,जौ का सत्तू,नदी का शैवाल- थोडा सा(नदी का शैवाल पूजासामग्री की दुकानों में प्राप्त हो जाता है,वैसे नदी-तालाब में ताजा मिल जाय तो उत्तम है।)
३८.हल्दी पाउडर-५०ग्राम
३९.अबीर-२५ग्राम
४०.पत्तल-१ वंडल,पत्तल का दोना-१ वंडल
४१.खुदरा पैसा,एवं विशेष दक्षिणा
घर का समानः- आसन,कम्बल,चादर,लोटा,बाल्टी,परात,थाली-चार,कटोरी-चार, चम्मच,कैंची,ब्लेड...
नोटः-शिलान्यास की विधिवत पूजा दो-ढाई घंटे का काम है।कोई भी लग्न-मुहूर्त मात्र करीब सवा दो घंटे का ही होता है।ऐसी स्थिति में पूजा के बाद गड्ढा खोदने और वास्तुदेव-स्थापनादि कर्म को सीमित समय में पूरा करना व्यावहारिक रुप से कठिन और असम्भव है।इस विषय में विद्वानों में भी मतान्तर है।मेरा विचार है कि पंचविध भूमिशोधन और व्यवस्था(पूर्व अध्याय में कथित विधान) का अंग मानते हुए सुविधानुसार एक-दो दिन पहले ही यथोचित गड्ढा(तीन,पांच,सात,नौ, या ग्यारह फीट)खोद कर गोबर से लीप-पोत कर ठीक कर लें,तथा पूरे भूखण्ड को साफ-सुथरा करके गोबर का छिड़काव भी कर दें।इस प्रकार गृहारम्भ जनित पूजन के बाद वास्तुदेवादि स्थापन करना आसान हो जायेगा।पूर्वकथित विधि से सभी ईंटों को स्थापित करने के बाद सीधे उसी पर भवन का प्रथम स्तम्भ (पीलर) खड़ा कर दे सकते हैं;या कुछ काल(अधिक विलम्ब से नहीं)कार्यारम्भ करना हो तो मिट्टी या बालू से गड्ढे को भर दें।आगे का कार्य हमेशा दक्षिणावर्त (clockwise) ही किया जाना चाहिए।अस्तु।
नोटः-अज्ञानवश प्रायः लोग पूजन के बाद,स्थापित कलशादि विभिन्न सामग्रियों को भी उसी गर्त में डाल देते हैं।यह बड़ी भारी भूल है।इन सामग्रियों को अन्यत्र विसर्जित करना उचित है। ध्यातव्य है कि इससे प्रत्यवायदोष भी लगता है,अतः शिलान्यास ग्रर्त में कदापि कुछ न डालें।

 गृहारम्भ में पूजन व्यवस्थाः-

क्रमशः......



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