पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-129

iगतांश से आगे...अध्याय 23 भाग 3

यहाँ कुछ चित्रों के माध्यम से गृहप्रवेश-वास्तुशान्ति कर्म से सम्बन्धित पूजनस्थल की व्यवस्था को स्पष्ट किया जा रहा है।आगे के चित्र कुछ और नहीं बल्कि प्रथम चित्र के ही आन्तरिक विस्तार     

मात्र हैं,जिन्हें विशेष स्पष्टी हेतु दर्शाया गया है— 


         









  
जिन वेदियों में विशेष आकृति और रंगयोजना में कठिनाई हो,उनके लिए सिर्फ यथास्थान,यथासंख्या, मात्र कोष्टक बनाकर काम किया जा सकता है।सुविधा हो तो वास्तुपूजामण्डल के बाहर(अग्निकोण में) उसी कमरे में,अथवा भवन के अग्नि कोण या अग्निक्षेत्र में(ध्यातव्य है कि अग्निकोण और अग्निक्षेत्र के अन्तर के विषय में वास्तुमंजूषा के पूर्व प्रसंगों में स्पष्ट किया जा चुका है) तीन स्तरों वाला हवन वेदी (दिये गये चित्रानुसार) बनायें।इसके प्रथम स्तर(लेयर) का आकार ४५’’×४५’’, द्वितीय स्तर का आकार ३५’’×३५’’,तथा तृतीय स्तर का आकार २५’’×२५’’ का होना सुविधाजनक है।इससे किंचित कम आकार भी रखा जा सकता है।तीनों स्तरों (सीढियों) को चावल,हल्दी,रोली आदि से अलंकृत करना चाहिए।चित्र में दिखाया गया हरा,लाल,पीला,नीला रंग मात्र स्तर विभाजन हेतु है।इन रंगों का प्रयोग यहां होना अनिवार्य नहीं है।सबसे ऊपरी समतल को चतुरस्र, उक्त चूर्णों से अलंकृत करने के पश्चात् मध्यमें अधोत्रिकोण बनावें।त्रिकोण के मध्य में अग्नि का बीज मन्त्र ‘‘रँ’’ को रोली से अंकित करें,जैसा कि दिये गये चित्र में दर्शाया गया है।
    आगे, पूजन समाप्ति के बाद,हवन के समय हवन-वेदी का पंचभूसंस्कारादि सम्पन्न करने का विधान है,जो यथास्थान निर्दिष्ट होगा।

क्रमशः....


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