पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-130

गतांश से आगे...अध्याय 23 भाग 4

   उक्त सारी तैयारियाँ सुविधानुसार प्रवेश के पूर्वदिन ही कर लेनी चाहिए। गृहप्रवेश के दिन(मुख्य मुहूर्त काल से काफी पहले ही) गृहस्वामी सपत्निक स्नानादि से निवृत्त होकर,अपने पुराने आवास से एक मांगलिक कलश और पूजा-सामग्री युक्त थाल लेकर (सपरिवार,बन्धुवान्धव सहित) गीतवाद्यादि परिपूर्ण, समीप के ग्रामदेवी का पूजन करने जाये,या अन्य समीपवर्ती देवस्थल में जाकर प्रस्थान-आदेश निमित्त पूजन करे। तत्पश्चात् सवत्सागौ(गाय-बछड़ा सहित),आचार्य-ब्राह्मणादि को आगे कर, शंखनाद पूर्वक नूतन गृह के मुख्य द्वार पर पहुँचें।

वहाँ पहुँचकर,सर्वप्रथम गौ की विधिवत पूजा करे—ॐ कामधेन्वै नमः,ॐ सुरभ्यै नमः मन्त्र का उच्चारण करते हुए,अक्षतफूल लेकर गौ की प्रार्थना करे।पुनः उक्त मन्त्रोच्चारण पूर्वक ही पंचोपचार पूजन करे- स्नान,वस्त्र,चन्दन,सिन्दूर,रोली,फूल,माला,धूप,दीप तथा नैवेद्य निमित्त कुछ फल और मिष्टान्न भेंट करे।पूजन के पश्चात् गौ की सात बार दक्षिणावर्त परिक्रमा करे।इस बीच आचार्य मन्त्रोच्चारण करते रहेः-               

ॐ नमो गोभ्यःश्रीमतीभ्यः सौरभेयीभ्य एव च। नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो नमो नमः।। यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजङ्गमम्। तां धेनुं शिरसा वन्दे भूत भव्यस्य मातरम्।। पञ्चगावः समुत्पन्ना मथ्यमाने महोदधौ। तासां मध्ये तु या नन्दा तस्यै देव्यै नमो नमः। सर्वकामदुधे देवि सर्वतीर्थाभिषेचिनि। पावनि सुरभि श्रेष्ठे देवि तुभ्यं नमो नमः।। गवां दृष्ट्वा नमस्कृत्य कुर्याच्चैव प्रदक्षिणम्। प्रदक्षिणीकृता तेन सप्तद्वीपा वसुन्धरा।। मातरः सर्वभूतानां गावः सर्वसुखप्रदाः। वृद्धिमाकाङ्क्षता पुंसा नित्यं कार्या प्रदक्षिणा।।

अब भवन के प्रवेशद्वार पर खड़े होकर दोनों ओर सजाये गये कलशों पर द्वारपालों की पूजा करे— ॐ द्वारपालाय नमः — नाम मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें।
तत्पश्चात् घृत मिश्रित पीले सिन्दूर से दोनों चौखट(द्वारशाखा) पर, दाहिनी ओर तीन और बायीं ओर दो खड़ी लकीरें,तथा ऊपरी चौखट पर स्वस्तिक चिह्न खींच कर— ॐ द्वारमात्रिकायै नमः मन्त्रोच्चारण पूर्वक पंचोपचार पूजन करे- स्नान,वस्त्र, चन्दन, सिन्दूर,रोली,फूल,माला,धूप,दीप तथा नैवेद्य निमित्त कुछ फल-मिष्टान्न भेंट करके जलार्पण करे। तत्पश्चात् अक्षतपुष्प लेकर प्रार्थना करें-
स्थापितेयं मया शाखा सर्वदा सुस्थिराऽस्तुमे।यो धारयति सर्वेशो जगन्ति स्थावराणि च। धाता दक्षिणशाखायां पूजितो वरदोऽस्तु मे।।ॐ धात्रे नमः।। (दायीं चौखट को प्रणाम करे) यः समुत्पाद्य विश्वेशो भवनानि चतुर्दश।विधाता वामशाखायां स्थिरो भवति पूजितः।। ॐ विधात्रे नमः।। (वायीं चौखट को प्रणाम करें) 
गजवक्त्र गणाध्यक्ष हे हेरम्बाम्बिकात्मज। विघ्नान्निवारयाशुत्वमूर्ध्वोदुम्बरसंस्थितः।।ॐ गणपतये नमः।। (ऊपरी चौखट को प्रणाम करें) 
यस्या प्रसादात् सुखिनो देवाः सेन्द्राः सहोरगाः। सा वै श्रीर्देहलीसंस्था पूजिता ऋद्धिदाऽस्तु मे।।ॐ देहिल्यै नमः।। (देहली यानी नीचे के चौखट को प्रणाम करें) 

तथा पुनः अक्षतपुष्पादि लेकर दोनों हाथ जोड़कर, निम्नांकित प्रार्थना करेः-
धर्मार्थकामसिद्ध्यर्थं पुत्रपौत्राभिवृद्धये। त्वामहं प्रविशाम्यद्य भगो मन्दिर ते नमः।। यावच्चन्द्रश्च सूर्यश्च यावत्तिष्ठति मेदिनी। तावत्त्वं मम वंशस्य मङ्गलाभ्युदयं कुरु।। ॐ धर्मस्थूणाराजश्रीरस्तुमहोरात्रे द्वारफलके इन्द्रस्य गृहा वसुमन्तो वरुथिनस्तानहं प्रपद्ये सह प्रजया पशुभिः सह। यन्मे किञ्चिदस्त्युपहूतः सर्वगणः सखायः साधु संवृतः। तां त्वा शालेऽरिष्ठवीरागृहान्न सन्तु सर्वतः।। (पा.गृह्यसूत्रम् ३-४) (पुनः देहली को स्पर्श करते हुए प्रणाम करे)

अब,शंखघोष करते हुए आचार्य आगे बढ़ें।उनके पीछे स्त्री बायाँ पैर और पुरुष दायां पैर आगे बढ़ाकर भवन में प्रवेश करके,पूर्व सम्पादित वास्तुपूजामण्डप में प्रवेश करें।

क्रमशः... 

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