पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-140

गतांश से आगे...अध्याय 23 भाग 14


आचार्यादि वरणम्- अब पुष्पाक्षतजलद्रव्यवस्त्रादि लेकर आचार्य सहित अन्य सहयोगी ब्राह्मणों का वरण-पूजन करे- ॐ अद्य करिष्यमाण गृहप्रवेशवास्तुशान्ति निमित्तकसग्रहयागकर्माङ्गतया विहितमाचार्यादीनां पूजनपूर्वकं वरणं च करिष्ये।– संकल्प के बाद, विप्रदेवों का पाद प्रक्षालन   करके,तिलकादि करे,तथा यथोचित वस्त्र-द्रव्यादि प्रदान करे।ब्राह्मण यजमान प्रदत्त द्रव्यादि को ग्रहण करने के बाद,अक्षत छिड़कें और बोलें- वृताःस्मः।                             

अब, आचार्य आगे के कर्मकाण्ड में लगें,और अन्य ब्राह्मण यथासम्भव विष्णुसहस्रनाम, पुरुषसूक्त, श्रीसूक्त आदि विविध स्तोत्रों का पाठ करें।

नवग्रहादिदेवों का आवाहन-पूजनः-
संकल्प- ॐ अद्य करिष्यमाण गृहप्रवेशनिमित्तकसग्रहयागवास्तुशान्तिकर्माङ्गतया आदित्यादिग्रहाणाम् अधिदेवता-प्रत्यधिदेवता-पञ्चलोकपाल-वास्तोष्पति-क्षेत्रपाल क्रतुरक्षक-दशदिक्कपालसहितामावाहनं पूजनं च करिष्ये।
अब,विविध रंगों के चावल में से निर्देशानुसार रंग लेकर,पद्धति के प्रारम्भ में दिये गये चित्रानुसार क्रमशः निर्दिष्ट कोष्ठकों में डालते जायेंगे,आचार्य तत्-तत् मन्त्रोच्चार करेंगे-
१.सूर्य-(लालरंग)- ॐ जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्। तमोऽरिं सर्वपापघ्नं सूर्यमावाहयाम्यहम्। ॐ भूर्भुवःस्वः कलिङ्गदेशोद्भव काश्यपगोत्र रक्तवर्ण भो सूर्य ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ सूर्याय नमः,श्री सूर्यमावाहयामि,स्थापयामि।
२.चन्द्रमा-(सफेदरंग)- ॐ दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम्। ज्योत्स्नापतिं निशानाथं      चन्द्रमावाहयाम्यहम्। ॐ भूर्भुवःस्वः यमुनातीरोद्भव आत्रेयगोत्र शुक्लवर्ण भो सोम ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ सोमाय नमः,श्री सोममावाहयामि,स्थापयामि।
३.मंगल-(लालरंग)- ॐ धरणीगर्भसम्भूतं विद्युतकान्तिसमप्रभम्। कुमारं शक्तिहस्तं च भौममावाहयाम्यहम्। ॐ भूर्भुवःस्वः अवन्तिदेशोद्भव भारद्वाजगोत्र रक्तवर्ण भो भौम ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ  भौमाय नमः,श्री भौममावाहयामि,स्थापयामि।
४.बुध-(हरारंग)- ॐ प्रियंगुकलिकाभासं रुपेणाप्रतिमं बुधम्। सौम्यं सौम्यगुणोपेतं सौम्यमावाहयाम्यहम्। ॐ भूर्भुवःस्वः मगधदेशोद्भव आत्रेयगोत्र हरितवर्ण भो बुध ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ बुधाय नमः,श्री बुधमावाहयामि,स्थापयामि।
५.बृहस्पति-(पीलारंग)- ॐ देवानां च ऋषीणाञ्च गुरुं काञ्चनसन्निभम्। बन्धुभूतं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यहम्। ॐ भूर्भुवःस्वः सिन्धुदेशोद्भव आंगिरसगोत्र पीतवर्ण भो गुरो ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ बृहस्पतये नमः,श्रीबृहस्पतिमावाहयामि,स्थापयामि।
६.शुक्र-(सफेदरंग)- ॐ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्। सर्वशास्त्रप्रवक्तारं शुक्रमावाहयाम्यहम्। ॐ भूर्भुवःस्वः भोजकटदेशोद्भव भार्गवगोत्र शुक्लवर्ण भो शुक्र ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ शुक्राय नमः,श्री शुक्रमावाहयामि,स्थापयामि।
७.शनि-(गहरानीलरंग)- ॐ नीलाम्बुजसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम्। ॐ भूर्भुवःस्वः सौराष्ट्रदेशोद्भव काश्यपगोत्र नीलाभकृष्णवर्ण भो शनैश्चर ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ शनैश्चराय नमः,श्री शनैश्चरमावाहयामि,स्थापयामि।
८.राहु-(कालारंग)- ॐ अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्। सिंहिकागर्भसम्भूतं राहुमावाहयाम्यहम्। ॐ भूर्भुवःस्वः राठिनपुरोद्भव पैठीनसगोत्र कृष्णवर्ण भो राहो ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ राहवे  नमः,श्री राहुमावाहयामि,स्थापयामि।
९.केतु-(हल्काआसमानी-धुएं का रंग)- ॐ पलाशधूम्रसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्। रौद्रं रौद्रात्मकमं घोरं केतुमावाहयाम्यहम् ॐ भूर्भुवःस्वः अन्तर्वेदिसमुद्भव जैमिनिगोत्र धूम्रवर्ण भो केतो  ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ केतवे नमः,श्री केतुमावाहयामि,स्थापयामि।
(नोटः- नवग्रह वेदी पर सूर्यादि नवग्रहों के आवाहन के पश्चात् इच्छा हो तो यथोपलब्ध पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन अभी ही सम्पन्न कर लें,अथवा इसी वेदी पर अधिदेवता-प्रत्यधिदेवताओं के आवाहन के पश्चात् एकतन्त्र से सबकी पूजा एकत्र भी कर सकते हैं।एकत्र करने से समय की काफी बचत हो सकती है,और विधान में भी कोईविशेष ऋटि नहीं आती)

नवग्रहपूजन-






क्रमशः...

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