पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-141

गतांश से आगे...अध्याय 23 भाग 15

ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः.......समर्पयामि — इस नाममन्त्र से क्रमशः(रिक्त स्थानों में अर्पणवस्तु का उच्चारण करते हुए) पाद्य,अर्घ्य,आचमन,स्नान,पंचामृत,शुद्धस्नान, वस्त्र,उपवस्त्र,यज्ञोपवीत, वस्त्रान्त आचमन,चन्दन,रक्त चन्दन,अबीर-गुलाल,रोली,पुष्प,माला,दुर्वा, तुलसीपत्र, बेलपत्र(सूर्य को छोड़ कर),शमीपत्र,नाना परिमलद्रव्यादि,धूप,दीप,नैवेद्य, ऋतुफल, मध्य पानीयजल,आचमन, मुखशुद्धि,दक्षिणा- द्रव्य,पुष्पाञ्जलि आदि प्रदान करने के पश्चात् प्रार्थना करे- ॐ ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुःशशी भूमिसुतो बुधश्च।गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु।। सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मङ्गलं मङ्गलः, सद् बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गरुतां शुक्रः सुखं शं शनिः। राहुर्बाहुबलं करोतु ससतं केतुः कुलस्योन्नतिं, नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनुकूला ग्रहाः।। पुनः वेदी पर अक्षत छोड़ते हुए बोले- अनया पूजया सूर्यादि नवग्रहाः प्रीयन्तां न मम।।
                                                          ----इतिनवग्रहपूजनम्----

अधिदेवता-आवाहन-पूजन

अब,उसी नवग्रहवेदी पर क्रमशः प्रत्येक निर्दिष्ट कोष्ठकों में दायीं ओर अधिदेवताओं का आवाहन करेंगे। स्कन्धपुराण में इनका स्थान इस प्रकार निर्दिष्ट है—  शिवः शिवा गुहो विष्णुर्ब्रह्मेन्द्रयमकालकाः। चित्रगुप्तोऽथ भान्वादेर्दक्षिणे चाधिदेवता।।  इन सबके लिए सिर्फ हरिद्रारंजित चावल का प्रयोग करना चाहिए। आवाहन और प्रतिष्ठा पूर्वक्रम –नवग्रहक्रम- से ही करना है—

१.शिव-(सूर्य के दायें भाग में)- ॐ एह्येहि विश्वेश्वर नस्त्रिशूलकपालखट्वा- ङ्गधरेण सार्धम्। लोकेश यक्षेश्वर यज्ञसिद्ध्यै गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते।। ॐ भूर्भुवःस्वः ईश्वराय नमः, ईश्वरमावाहयामि,स्थापयामि।

२.उमा-(चन्द्रमा के दायें भाग में)-ॐ हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शंकरप्रियाम्। लम्बोदरस्य जननीमुमावाहयाम्यहम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः  उमायै नमः, उमामावाहयामि,स्थापयामि।

३.स्कन्द-(मंगल के दायें भाग में)-ॐ रुद्रतेजःसमुत्पन्नं देवसेनाग्रगं विभुम्। षण्मुखं कृत्तिकासूनुं स्कन्दमावाहयाम्यहम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः 
स्कन्दाय नमः, स्कन्दमावाहयामि, स्थापयामि।

४.विष्णु-(बुध के दायें भाग में)-ॐ देवदेवं जगन्नाथं भक्तानुग्रहकारकम्। चतुर्भुजं रमानाथं विष्णुमावाहयाम्यहम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः  विष्णवे नमः, विष्णुमावाहयामि,स्थापयामि।

५.ब्रह्मा-(बृहस्पति के दायें भाग में)-ॐ कृष्णाजिनाम्बरधरं पद्मसंस्थं चतुर्मुखम्। वेदाधारं निरालम्बं विधिमावाहयाम्यहम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः  ब्रह्मणे नमः, ब्रह्माणमावाहयामि,स्थापयामि।

६. इन्द्र-(शुक्र के दायें भाग में)- ॐ देवराजं गजारुढं शुनासीरं शतक्रतुम्। वज्रहस्तं महाबाहुमिन्द्रमावाहयाम्यहम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः  इन्द्राय नमः, इन्द्रमावाहयामि,स्थापयामि।

७. यम-(शनि के दायें भाग में)- ॐ धर्मराजं महावीर्यं दक्षिणादिक्पतिं प्रभुम्। रक्तेक्षणं महाबाहुं यममावाहयाम्यहम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः  यमाय नमः, यममावाहयामि,स्थापयामि।

८. काल-(राहु के दायें भाग में)- ॐ अनाकारमन्ताख्यं वर्तमानं दिने-दिने। कलाकाष्ठादिरुपेण कालमावाहयाम्यहम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः कालाय नमः, कालमावाहयामि,स्थापयामि।

९. चित्रगुप्त-(केतु के दायें भाग में)- ॐ धर्मराजसभासंस्थं कृताकृतविवेकिनम्।आवाहये चित्रगुप्तं लेखनीपत्रहस्तकम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः  चित्रगुप्ताय नमः, चित्रगुप्तमावाहयामि,स्थापयामि।

इस प्रकार अधिदेवताओं के आवाहन के पश्चात् अब,उसी नवग्रहवेदी पर क्रमशः प्रत्येक निर्दिष्ट कोष्ठकों में वायीं ओर प्रत्यधिदेवताओं का आवाहन करेंगे।वायें हाथ में अक्षत लेकर,दायें हाथ से थोड़ा थोड़ा छोड़ते जायेंगे कथित स्थानों पर।इस सम्बन्ध में शान्तिमयूष में निर्देश है- अधिदेवा दक्षिणतो वामे प्रत्यधिदेवताः। स्थापनीया प्रयत्नेन व्याहृतीभिः पृथकपृथक।           अग्निरापः क्षितिर्विष्णुरिन्द्रश्चैन्द्री प्रजापतिः। सर्पो ब्रह्मा च निर्दिष्टा प्रत्यधिदेवा यथाक्रम्।। अन्यत्रश्च— अग्निरापो धरा विष्णुः शक्रेन्द्राणी पितामहाः। पन्नगाः कः क्रमाद् वामे ग्रहप्रत्यधिदेवताः।। अर्थात सूर्यादि नवग्रहों के वाम भाग में क्रमशः अग्नि,जल,पृथ्वी,विष्णु,इन्द्र इन्द्राणी,प्रजापति,सर्प और ब्रह्मा की स्थापना करे।ये प्रत्यधिदेवता कहे गये हैं।               

(ध्यातव्य है कि कुछ नामों की पुनरावृत्ति हो रही है- जैसे विष्णु अधिदेवता सूची में आचुके हैं,साथ ही प्रत्यधिदेवता सूची में भी हैं।ध्यातव्य है कि बुध के अधिदेवता-प्रत्यधिदवता दोनों विष्णु ही हैं,अतः दो बार इनका आवाहन पूजन होगा।ठीक वैसे ही जैसे एक ही व्यक्ति दो पदभार सम्भाल रहा हो।इससे भ्रमित नहीं होना चाहिए।एक ही देवता का दो स्थानों पर यानी दो बार आवाहन-पूजन किया जायेगा।आगे अन्य स्थानों पर भी इस प्रकार की स्थिति मिलेगी।जैसे-प्रारम्भ में गणेशाम्बिका पूजन कर चुके है,पुनः पंचलोकपाल में भी गणेश है,दिक्पाल में इन्द्र,ब्रह्मा,यम,अग्नि आदि की आवृत्ति हुयी है।)

प्रत्यधिदेवता-आवाहन-पूजन

१. अग्नि(सूर्य के बायें)- रक्तमाल्याम्बरधरं रक्तपद्मासनस्थितम्।  वरदाभयदं                 देवमग्निमावाहयाम्यहम् ।। ॐ भूर्भुवःस्वः अग्नये नमः, अग्निमावाहयामि, स्थापयामि।

२.अप्(जल)-(चन्द्रमा के बायें)-आदिदेवसमुद्भूतजगच्छुद्धिकराः शुभाः। ओषध्याप्यायनकरा अप आवाहयाम्यहम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः अद्भ्यो नमः, अप आवाहयामि,स्थापयामि।

३.पृथ्वी-(मंगल के बायें)- शुक्लवर्णां विशालाक्षीं कूर्मपृष्ठोपरिस्थिताम्। सर्वशस्याश्रयां देवीं धरामावाहयाम्यहम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः पृथिव्यै नमः, पृथिवीमावाहयामि,स्थापयामि।

४.विष्णु-(बुध के बायें)- शङ्खचक्रगदापद्महस्तं गरुडवाहनम्। किरीटकुण्डलधरं विष्णुमावाहयाम्यहम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः विष्णवे नमः, विष्णुमावाहयामि,स्थापयामि।

५.इन्द्र–(बृहस्पति के बायें)- ऐरावतगजारुढ़ं सहस्राक्षं शचीपतिम्। वज्रहस्तं सुराधीशमिन्द्रमावाहयाम्यहम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः इन्द्राय नमः, इन्द्रमावाहयामि,स्थापयामि।

६.इन्द्राणी-(शुक्र के बायें)- प्रसन्नवदनां देवीं देवराजस्य वल्लभाम्। नानालङ्कारसंयुक्तां शचीमावाहयाम्यहम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः  इन्द्राण्यै नमः, इन्द्राणीमावाहयामि,स्थापयामि।

७.प्रजापति-(शनि के बायें)- आवाहयाम्यहं देव देवेशं च प्रजापतिम्। अनेकव्रतकर्तारं सर्वेषां च पितामहम्।।  ॐ भूर्भुवःस्वः प्रजापतये नमः, प्रजापतिमावाहयामि,स्थापयामि।

८.सर्प-(राहु के बायें)-अनन्ताद्यान् महाकायान् नानामणिविराजितान्। आवाहयाम्यहमं सर्पान् फणासप्तकमण्डितान्।।  ॐ भूर्भुवःस्वः सर्पेभ्यो नमः, सर्पानावाहयामि,स्थापयामि।

९.ब्रह्मा-(केतु के बायें)- हंसपृष्ठसमारुढ़ं देवतागण पूजितम्। आवाहयाम्यहं देवं ब्रह्माणं कमलासनम्।। ॐ भूर्भुवःस्वः ब्रह्मणे नमः, ब्रह्माणमावाहयामि,स्थापयामि।


अधिदेवता-प्रत्यधिदेवताओं का एकतन्त्र पूजनः- नवग्रह वेदी के दायें अधिदेवता,और बायें भाग में प्रत्यधिदेवताओं का समन्त्र आवाहन सम्पन्न हो जाने के पश्चात् अब दोनों के एकत्र नाम मन्त्रों से यथोपलब्ध पूजन करें- ईश्वराग्नेयादि  अधिदेवप्रत्यधिदेवेभ्यो नमः- इस नाम मन्त्र से क्रमशः पाद्य,अर्घ्य,आचमन,स्नान,वस्त्रोपवस्त्र,यज्ञोपवीत,पुनराचमन,चन्दन, रोली,अबीर, पुष्प,पुष्पमाल्यादि,धूप-दीप,नैवेद्य,ऋतुफल,पुनराचमन,ताम्बूलादि मुखशुद्धि,द्रव्य दक्षिणा समर्पित करके,पुष्पाक्षत लेकर प्रार्थना करे- ईश्वराग्नेयादि  अधिदेवता-प्रत्यधिदेवताः प्रीयन्ताम् न मम।।

                                    ---(इति अधिदेवता-प्रत्यधिदेवतापूजनम्)---

क्रमशः....

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