गतांश से आगे...अध्याय 23-भाग 17
अब,वायुकोण
स्थित पचास कोष्ठकों वाले प्रधान क्षेत्रपाल वेदी पर सगण क्षेत्रपाल की पूजा
करेंगे।ध्यातव्य है कि नवग्रहवेदी पर ईशान कोण में भी इनका संक्षिप्तपूजन कर चुके
हैं।यहाँ पुनः विस्तार से करना है।वास्तुशान्ति-गृहप्रवेश में क्षेत्रपाल की विशेष
पूजा होनी चाहिए।ऊपर दिये गये चित्र में हम देख रहे हैं कि नौ कोष्ठकों में से,
मध्य कोष्ठक रिक्त है, पूर्व दिशा में क्रमांक एक से छः तक,और इसी भांति छः-छः के
हिसाब से अग्नि,दक्षिण,नैर्ऋत्य,पश्चिम,वायु तक के कोष्ठकों को भरा गया है,तथा
उत्तर और ईशान कोष्ठक में छः-छः के वजाय सात-सात अंक दिये गये हैं,इस प्रकार कुल
पचास अंक हुए।मध्य के रिक्त खंड पर कलश स्थापित करके, पूर्व निर्दिष्ट विधान से
संक्षिप्त पूजा करने के बाद, पुष्पाक्षत लेकर, निम्नांकित मन्त्रोच्चारण पूर्वक
सभी को आहूत करेंगे।अन्त में, मध्य में स्थापित कलश पर समग्ररुप से आवाहन भी
करेंगे,इस प्रकार संख्या इक्यावन हो जा रही है। विद्वानों ने क्षेत्रपाल को उनचास
ही कहा है,और इस सिद्धान्त के अनुसार सात गुणे सात यानी उनचास कोष्टकों का चौकोर
मँडल बना कर लोग पूजा भी कर देते हैं;किन्तु यहाँ बन रही इक्यावन की संख्या से
भ्रमित नहीं होना चाहिए। पं. रामलालशास्त्री रचित कर्मसमुच्चय में इसकी स्पष्ट
चर्चा है।प्राचीन ग्रन्थ प्रतिष्ठा मयूष में भी पचास नाम मन्त्रों का निर्देश
है।तथा,मध्य कलश हेतु अलग से निर्देश है- जैसा कि पूजन संकल्प में भी स्पष्ट
है।अतः उचित यही प्रतीत होता है।
असङ्ख्यात् रुद्रकलश स्थापन-पूजनः- अब ईशानकोण पर पूर्व सुसज्जित रुद्रवेदी
पर कलश स्थापन विधि से कलश का स्थापन-पूजन करने के बाद, इसी कलश पर असंख्यात् रुद्रपूजन
करें।ध्यातव्य है कि ग्रह-मात्रिकादि पूजन की तरह रुद्रपूजन संक्षिप्त रुप से न
करे।इसे यथा सम्भव विस्तृत रुप से ही करना चाहिए। सर्वप्रथम आवाहनार्थ ध्यान करके
पुष्पाक्षत छोड़े— ॐ पञ्चवक्त्रं वृषारुढमुमेशं च त्रिलोचनम्। आवाहयामीश्वरं तं
खट्वाङ्गवरधारिणम्।।ध्यायेनित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसम्।
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीति हस्तं प्रसन्नम्।। पद्मासीनं समन्तात्
स्तुतिममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानम्।
विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।। ॐ त्र्ययम्बकं यजामहे सुगन्धिं
पुष्टिवर्द्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।। ॐ भूर्भुवःस्वः हे रुद्र इहागच्छ इह तिष्ठ, ॐ
रुद्राय नमः, रुद्रमावाहयामि,स्थापयामि,पूजयामि च।। तत्पश्चात्
यथोपलब्धोपचार,निम्नांकित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए पूजन करे—
आसन- रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्वसौख्यकरं
शुभम्।आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।।
पाद्य-
उष्णोदकं निर्मलं च सर्वसौगन्ध्यसंयुतम्।पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते
प्रतिगृह्यताम्।।
अर्घ्य-
अर्घ्यं गृहाण देवेश गन्धपुष्पाऽक्षतैः सह। कुरणां कुरु मे देव गृहाणाऽर्घ्यं नमोऽस्तुते।।
आचमन- सर्वतीर्थ समायुक्तं
सुगन्धिनिर्मलं जलम्।आचम्यतां मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।।
स्नान-
गङ्गासरस्वतीरेवा पयोष्णी नर्मदाजलैः। स्नापितोऽसि मया देव!तथा शान्तिं
कुरुष्वमे।।
दुग्धस्नान-गोक्षीरधामन्देवेश
गोक्षीरेण मया कृतम्। स्नपनं देवदेवश गृहाण शिवशंकर ! ।।
दधिस्नान-
दध्ना चैव मया देव स्नपनं क्रियते तव।गृहाण भक्त्या दत्तं मे सुप्रसन्नोभवाव्ययः।
घृतस्नान-
सर्पिषा देवदेवेश स्नपनं क्रियते मया। उमाकान्तं गृहाणेदं श्रद्धया
सुरसत्तम।।
मधुस्नान-
इदं मधु मया द्त्तं तव तुष्ट्यर्थमेव च। गृहाण शम्बो त्वं भक्त्या मम
शान्तिप्रदोभव।
शर्करास्नान-
इक्षुरससमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम्। मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं
प्रतिगृह्यताम्।।
पंचामृस्नान-पञ्चामृतं
मयानीतं पयोदधि घृतं मधु। शर्कराया समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
शुद्धस्नान-
गंगानर्मदावेणी तुङ्गभद्रा सरस्वती। गृहाण त्वमुमाकान्त स्नानार्थं श्रद्धया
जलम्।।
वस्त्रोपवस्त्र-
सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारिणे।मयोपपादिते तुभ्यं वासांसि प्रतिगृह्यताम्।।
यज्ञोपवीत-नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं
त्रिगुणं देवतामयम्। उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।।
पुनराचमन-
सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धिनिर्मलं जलम्।आचम्यतां मया दत्तं गृहाण
परमेश्वर।।
गन्धादि-
श्रीखण्डचन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं
प्रतिगृह्यताम्।।
रोली-
कुङ्कुमंकामनादिव्यं कामनाकामसम्भवम्। कुङ्कुमेनार्चितो देव गृहाण शिवशङ्कर !
।। अक्षत- अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ
कुङ्कुमाक्ता सुशोभिताः।मया निवेदिता भक्त्या गृहाण शिवशङ्कर! ।।
पुष्प-पुष्पैर्नानाविधैर्दिव्यैः
कुमुरथ चम्पकैः।पूजार्थं नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यताम्।।
माला- माल्यादीनि
सुगन्धीनी मालत्यादीनी वै प्रभो। मयाऽऽनीतानि पुष्पाणि गृहाणपरमेश्वर।।
विजया(भांग)-विज्यं धनुः कपर्दिनो विशल्यो
वाणवांउत।अनेशन्नस्य या इषव आभुरस्य विषंगधिः।। (शिव को विजया और विल्वपत्र अवश्य चढ़ावे)
विल्वपत्र-काशीवास निवासी च कालभैरव पूजनम्। प्रयागे
माघमासे च बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।। दर्शनं विल्वपत्रस्य स्पर्शनं पापनाशनम्।
अघोरपापसंहारंबिल्वपत्रं शिवार्पणम्।। अखण्डबिल्वपत्रैश्च पूज्यते शिवशंकर। कोटिकन्या महादानं
बिल्वपत्र शिवार्पण
म्।।
शमीपत्र-शमीशमय मे पापं
शमी लोहितकण्टका।धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी।।
तुलसीपत्र-
तुलसीं हेमरुपां च रत्नरुपां च मञ्जरी।सर्वमोक्षप्रदां तुभ्यमर्पयामि शिवशंकर ! ।।
दूर्वा- त्वं दुर्वेऽमृतजन्मासि
वन्दितासि सुरैरपि।सौभाग्यं सन्ततिं देहि सर्वकार्यकर भव।।
अलंकार-
अलङ्कारान् महादिव्यान् नानारत्नविविर्मितान्।गृहाण देवदेवेश प्रसीद शिवशंकर ! ।।
धूप- वनस्पतिरसोद्भूतो
गन्धाढ्यो गन्धमुत्तमः।आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।
दीप- आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना
योजितं मया।दीपं गृहाण देवेश ! त्रैलोक्यतिमिरापहम्।।
नैवेद्य- शर्कराघृतसंयुक्तं मधुरं
स्वादुचोत्तमम्।उपचारसमायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।।
मध्यजल-एलोशिरलवंगादिकर्पूरपरिवासितम्।
प्राशनार्थं कृतं तोयं गृहाण शिवशंकर ! ।।
ऋतुफल-
बीजपूराम्रपनसखर्जूरकदलीफलम्। निरिकेलफलं दिव्यं गृहाण शिवशंकर ! ।।
आचमन-
कर्पूरवासितं तोयं मन्दाकिन्याः समाहृतम्।आचम्यतां उमानाथ मया दत्तं हि भक्तितः।।
ताम्बूलादि-पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्।एलाचूर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं
प्रतिगृह्यताम्।।
दक्षिणा- न्यूनातिरिक्तपूजायां सम्पूर्णफलहतवे।दक्षिणां काञ्चनीं देव
स्थापयामि तवाग्रतः।।
आरती-
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारंभुजगेन्द्रहारम्।
सदा वसन्तं हृदयार्विन्दे भवं भवानी सहितं
नमामि।।
प्रार्थना-
वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणं,वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां
पतिम्। वन्दे सूर्य-शशाङ्क-वह्निनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियम्,वन्दे भक्तजनाश्रयं च
वरदं वन्दे शिवं शंकरम्।।
----इतिरुद्रपूजनम्---
क्षेत्रपाल
आवाहन पूजनः-
संकल्प—
ॐ अद्योत्यादि......गृहप्रवेशवास्तुशान्तिपूजनाङ्गतया अस्मिन क्षेत्रपालपीठे मध्ये
क्षेत्रपालपूजन पूर्वकं पूर्वाद्यष्टदलपत्रेषु पूर्वादिक्रमेण
पञ्चाशत्क्षेत्रपालदेवानां स्थापनप्रतिष्ठापूजनानि करिष्ये।।
(इति संकल्प्य पीठस्य मध्यकलशे कृताग्न्युत्तारणां ताम्र/रजत/ सुवर्ण
निर्मितां क्षेत्रपालप्रतिमां निधाय तत्र क्षेत्रपालमावाहयेत्....।)
ॐ नमोस्तु सर्प्पेभ्यो ये के च
पृथ्वीमनु।।येऽन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्प्पेभ्यो नमः।। ॐ भूर्भुवःस्वः
क्षेत्रपालाय नमः क्षेत्रपालम् आवाहयामि,स्थापयामि।भो क्षेत्रपाल इहागच्छ इह
तिष्ठ।।
पुनः
पुष्पाक्षत लेकर,क्रमशः एक-एक मन्त्र बोलते हुए विहित स्थानों पर अक्षत छोड़ते
जायें-
१.
ॐ भूर्भुवःस्वः क्षेत्रपालाय नमः।।
२.
ॐ भूर्भुवःस्वः अजराय नमः।।
३.
ॐ भूर्भुवःस्वः व्यापकाय नमः।।
४.
ॐ भूर्भुवःस्वः इन्द्रचौराय नमः।।
५.
ॐ भूर्भुवःस्वः इन्द्रमूर्तये नमः।।
६.
ॐ भूर्भुवःस्वः कुष्माण्डाय नमः।।
७.
ॐ भूर्भुवःस्वः वरुणाय नमः।।
८.
ॐ भूर्भुवःस्वः वटुकाय नमः।।
९.
ॐ भूर्भुवःस्वः विमुक्ताय नमः।।
१०.
ॐ भूर्भुवःस्वः लिप्तकाय नमः।।
११.
ॐ भूर्भुवःस्वः लोलोकाय नमः।।
१२.ॐ भूर्भुवःस्वः एकदन्ट्राय नमः।।
१३.ॐ भूर्भुवःस्वः ऐरावताय नमः।।
१४.
ॐ भूर्भुवःस्वः ओषधिघ्नाय नमः।।
१५.
ॐ भूर्भुवःस्वः बन्धनाय नमः।।
१६.
ॐ भूर्भुवःस्वः दिव्यकाय नमः।।
१७.
ॐ भूर्भुवःस्वः कम्बलाय नमः।।
१८.ॐ भूर्भुवःस्वः भीषणाय नमः।।
१९.
ॐ भूर्भुवःस्वः गवयाय नमः।।
२०.
ॐ भूर्भुवःस्वः घण्टाय नमः।।
२१.ॐ भूर्भुवःस्वः व्यालाय नमः।।
२२.
ॐ भूर्भुवःस्वः अणवे नमः।।
२३.
ॐ भूर्भुवःस्वःचन्द्रवारुणाय नमः।।
२४.
ॐ भूर्भुवःस्वः घटाटोपाय नमः।।
२५.
ॐ भूर्भुवःस्वः जटिलाय नमः।।
२६.
ॐ भूर्भुवःस्वः क्रतवे नमः।।
२७.
ॐ भूर्भुवःस्वः घण्टेश्वराय नमः।।
२८.
ॐ भूर्भुवःस्वः विकटाय नमः।।
२९.
ॐ भूर्भुवःस्वः मणिमानाय नमः।।
३०.
ॐ भूर्भुवःस्वः गणबन्धवे नमः।।
३१.ॐ भूर्भुवःस्वः डामराय नमः।।
३२.
ॐ भूर्भुवःस्वः ढुण्ढिकर्णाय नमः।।
३३.
ॐ भूर्भुवःस्वः स्थविराय नमः।।
३४.
ॐ भूर्भुवःस्वः दन्तुराय नमः।।
३५.
ॐ भूर्भुवःस्वः नागकर्णाय नमः।।
३६.
ॐ भूर्भुवःस्वः धनदाय नमः।।
३७.
ॐ भूर्भुवःस्वः महाबलाय नमः।।
३८.
ॐ भूर्भुवःस्वः फेत्कराय नमः।।
३९.
ॐ भूर्भुवःस्वः चीत्काराय नमः।।
४०.
ॐ भूर्भुवःस्वः सिंहाय नमः।।
४१.
ॐ भूर्भुवःस्वः मृगाय नमः।।
४२.
ॐ भूर्भुवःस्वः यक्षाय नमः।।
४३.
ॐ भूर्भुवःस्वः मेघवाहनाय नमः।।
४४.
ॐ भूर्भुवःस्वः तीक्ष्णोष्ठाय नमः।।
४५.ॐ भूर्भुवःस्वः अनलाय नमः।।
४६.
ॐ भूर्भुवःस्वः शुक्लतुण्डाय नमः।।
४७.ॐ भूर्भुवःस्वः सुधापालाय नमः।।
४८.
ॐ भूर्भुवःस्वः वर्वरकाय नमः।।
४९.
ॐ भूर्भुवःस्वः सवनाय नमः।।
५०.
ॐ भूर्भुवःस्वः पावनाय नमः।।
(नोट-किंचित
पुस्तकों में नामभेद भी है।वे पर्याय भी हो सकते हैं,या भिन्न भी।)
अब— ॐ भूर्भुवःस्वः क्षेत्रपालसहितेभ्य अजरादिक्षेत्रपालदेवेभ्यो
नमः—इस नाममन्त्रोच्चारण पूर्वक एकतन्त्र से सबका षोडशोपचार पूजन करने के पश्चात् पुनः पुष्पाक्षत लेकर प्रार्थना करें—यं
यं यं यक्षरुपं दशदिशि वदनं भूमिकम्पायमानं सं सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटाशेखरं
चन्द्रबिम्बम्। दं दं दं दीर्घकाय विकृतनखमुखं चोर्ध्वरेखाकपालं पं पं पं पापनाशं
प्रणत पशुपतिं क्षेत्रपालं नमामि।।
तथाच ॐ भूर्भुवःस्वः क्षेत्रपालसहिता
अजरादिक्षेत्रपालदेवाः प्रीयन्तामं न मम।। कहते हुए अक्षत छोड़दें।
-----इतिक्षेत्रपालादिपूजनम्-----
क्रमशः....
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