पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-152

गतांश से आगे...अध्याय 25 (सम्पूर्ण)

               अध्याय २५—विदिशा भूखण्ड पर निर्माण-योजना
    विदिशा भूखण्ड- आधुनिक वास-व्यवस्था की विकट समस्या है। प्राचीन काल में वास्तुसम्मत-योजनावद्ध रुप से ग्राम-नगर वसाये जाते थे। आजकल योजनावद्ध वसाव(टाउनशिप आदि) तो होते हैं,किन्तु वास्तुनियमों की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं,क्यों कि कुछ लोग इसे मानते हैं,कुछ अवैज्ञानिक कह कर आलोचना करते हैं,तो कुछलोग मानते तो हैं,पर आज के लिए व्यावहारिक नहीं समझते।परन्तु सच्चाई यह है कि कोई सत्य किसी के मानने न मानने पर निर्भर नहीं करता।कोई शक्ति(ऊर्जा) किसीकी  मान्यता का मुंहताज नहीं।आप माने या न माने,सूर्य का काम हैं रौशनी और ताप देना,तो वह देगा ही। विजली की नंगी तार छूयेंगे तो झटका लगेगा ही। यह उसका धर्म है;और धर्म अपने ढंग से चलता है,किसी के कर्म पर आश्रित होकर नहीं।

   विदिशा भूखण्ड का अर्थ है- जिसमें दिशायें अपने सही स्थान पर न हों,यानी आड़ा-तिरछा भूखंड। बड़े भूखण्ड को खरीद कर,प्लॉटिंग करके, रास्ते आदि निकाल कर,विक्री किये जाते हैं,या उन पर बहुमंजिली ईमारतें खड़ी कर बेंची जाती हैं। इनमें शायद ही कोई भूखण्ड सही दिशा-विदिशा युक्त होता है। भूखण्ड के लिए यह एक बहुत बड़ा दोष माना गया है। दोष की मात्रा न्यूनाधिक भी हो सकती है। यह दोष कम्पासीय अन्तर(घुमाव) पर निर्भर है।यानी दिशा-विदिशा का जितना ही विचलन होगा, दोष उतना ही अधिक माना जायेगा। आगे एक चित्र के माध्यम से इसे स्पष्ट किया जा रहा है—



   ऊपर के चित्र में हम देख रहे हैं कि जहाँ पूरब दिशा होनी चाहिए वहाँ कम्पासीय परीक्षण से ईशान कोण आ रहा है।इसी भांति सभी दिशायें और कोण अपने स्थान से विचलित हैं। विचलन की यह मात्रा(अन्तर) कुछ भी हो सकती है- कम या अधिक। शहरों में वनाये जा रहे शायद ही मकान सही दिशा-विदिशा युक्त हों। विचलन यदि सीधे-सीधे हों,जैसा कि ऊपर के चित्र में स्पष्ट है,तो भी निर्माण में बहुत समस्या नहीं होगी।कम्पासीय जाँच करके,मुख्य चार तत्व(आकाश छोड़कर,क्यों कि आकाश तो यथावत रहेगा ही अपने स्थान पर।उसमें कोणिक अन्तर का प्रभाव नहीं होता)को सुव्यवस्थित कर देंगे,यानी कोणों का काम दिशा में करेंगे,और दिशा का काम कोणों में करेंगे।जैसा कि ऊपर के चित्र में स्पष्ट है कि जहां पूर्व दिशा होनी चाहिए थी वहाँ पर कम्पास ईशान कोण बता रहा है। निर्माणकर्ता को चाहिए कि मुख्य वास्तु नियमानुसार इस स्थान पर बोरिंग कर दे।अग्निकोण पूर्वदिशा में आगया है,तो इस स्थान पर रसोईघर बनादें।इस भांति वास्तु-नियम के अनुसार शेष सारी स्थापनायें करेंगे।किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होगी।
   
    विदिशाभूखण्ड की मुख्य चार स्थितियाँ हो सकती हैं, जो मार्ग की स्थिति पर निर्भर है।यथा—ईशानमुखी,अग्निमुखी,नैर्ऋत्यमुखी,और वायव्यमुखी। इन चारो में मूल वास्तुनियमों का ध्यान रखते हुए सभी निर्माण आसानी से कर लेंगे; किन्तु परेशानी तब आयेगी, जव कोणात्मक अन्तर न्यूनाधिक होगा। आगे दिये गये चित्र में एक सही भूखंड के साथ क्रमशः ९०के अन्तर पर तीन और चित्र दिखलाये गये हैं।


इसके बाद के एक अन्य चित्र में हम देख रहे हैं कि ऋणात्मक घुमाव ४५करने पर दिशा और कोण सही स्थान पर आरहे हैं।यथा—


 इसी भांति अन्य प्रकार के कोणिक विचलन भी हो सकते हैं। ५,१०,१५, २०,२५,३० किसी भी डिग्री का विचलन हो सकता है। १० तक का अन्तर (विचलन) क्षम्य माना जा सकता है; किन्तु अधिक का अन्तर हानिकारक होता है। ऐसी स्थिति में वास्तुदोष निवारण-उपायों का सहारा लेना ही एक मात्र उपाय रह जाता है।


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