पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-161

गतांश से आगे...अध्याय 27 भाग 3

    ३.हनुमत्ध्वज-स्थापन— भवन की सुरक्षा और वास्तुदोषों के निवारण के लिए हनुमानजी की ध्वजा(पताका)की स्थापना भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसकी पूरी विधि गृहप्रवेश-वास्तुशान्ति प्रसंग में अध्याय २३ के अन्त में की गयी है।(द्रष्टव्य उक्त अध्याय २३ का अंतिम अंश)  साथ ही यह भी चेतावनी दी गयी है कि मांसाहारी परिवार में इसका प्रयोग कदापि नहीं होना चाहिए।
   ४.स्वस्तिक स्थापन-साधना — प्रस्तुत चित्र के अनुसार,पीले रंग के मोटे कागज(ड्राईँगसीट)पर पीला सिन्दूर,कुमकुम,और घी के मिश्रण से इस मांगलिक चिह्न स्वस्तिक की रचना करें।(ध्यायत्व है कि पहला चित्र विपरीत स्वस्तिक का है,जिसे प्रायः अनुभवहीन लोग बना देते हैं)



कागज का आकार गृहस्वामी के अंगुल से चौदह अंगुल,और स्वस्तिकचिह्न का आकार ग्यारह अंगुल होना चाहिए। ध्यातव्य है कि इस चिह्न से तो हर भारतीय परिचित है,किन्तु सूक्ष्म जानकारी के अभाव में चिह्न की संरचना में कुछ त्रुटि रह जाती है। दो तरह की खास गलती होती है- एक तो चिह्न का मोड़ वाला भाग विपरीत बन जाता है,और दूसरी गलती होती है- सुन्दर दिखने के चक्कर में चारो मोड़ों को बाहर की ओर पुनः मोड़ देना। मोड़ों को पुनः मोड़ देने से चिह्न की ऊर्जा-संग्रहण-क्षमता में कमी आती है,और प्रसारण क्षेत्र का विचलन होने लगता है- यही हानि है; किन्तु विपरीत मोड़ वाली(ऊपर दिखाया गया दूसरा चित्र) स्वस्तिक तो ‘‘स्वस्ति’’ के वजाय विनाशक गुणदायी हो जाता है। अतः सावधानी पूर्वक इसकी रचना करनी चाहिए।चिह्न के चारो कोष्टकों में लोग तरह-तरह के अन्य चिह्न- कलश,विन्दी आदि डाल देते हैं,यह भी उचित नहीं है। कोष्टक या तो पूर्णतः रिक्त हों,या प्रणव(ॐ)युक्त हों।

   संरचना का यह कार्य नबरात्रि,दीपावली,अथवा किसी भी शुद्ध महीने  (खरमास,मलमास छोड़कर)में सर्वार्थसिद्धि,अमृतसिद्धि आदि योग विचार करके करे। स्वस्तिक लेखन के पश्चात् नवीन,पीले वस्त्र का आसन देकर, विधिवत प्राणप्रतिष्ठा-पूजन करे। तत्पश्चात्  ॐ विघ्नेश्वराय नमः मन्त्र का ग्यारह हजार जप करें। एक हजार जप में आधे घंटे लगेंगे,यानी साढें पांच घंटे,एवं पूर्व कार्य आधे घंटे का— कुल छः घंटे की क्रिया है। जप के बाद कम से कम एक हजार आहुतियाँ उक्त मन्त्र से ही सिर्फ घी से डालें। इस प्रकार एक स्वस्तिक तैयार हुआ।अधिक की आवश्यकता हो तो इतनी ही क्रिया पुनः करनी चाहिए। मन्त्र की संख्या से यन्त्र की शक्ति का सम्बन्ध है- इसे ध्यान रखें।
   इस प्रकार साधित स्वस्तिक यन्त्र को फ्रेम करके, भवन के केन्द्रीय भाग में दीवार पर लगा देने से विविध प्रकार के वास्तुदोषों का शमन होता है। भवन को और अधिक सुरक्षित करना चाहें तो प्रत्येक कमरे में (दक्षिणमुख,यानी उत्तरी दीवार छोड़कर)लगा सकते हैं। ध्यातव्य है कि शौचालय के समीप इसे कदापि न लगावें।शौचालय हेतु एक अन्य प्रयोग की चर्चा इसी अध्याय में आगे की जायेगी। स्थापित स्वस्तिक यन्त्र को नित्य धूप-दीप दिखाते रहने से सदा चैतन्य रह कर लम्बे समय तक सुरक्षा प्रदान करते रहता है। घर में होने वाले जनना शौच वा मरणा शौच से भी वाधित नहीं होता।
    आजकल बाजार में तरह-तरह के पीतल वा तांबे के बने स्वस्तिक मिलते हैं,लोग श्रद्धापूर्वक खरीद कर घर में लगा भी देते हैं,किन्तु सच पूछें तो वह बेजान शोभा की वस्तु मात्र है,ठीक वैसे ही जैसे किसी ब्रान्डेड कम्पनी की वैट्री खरीद कर घर में रख देने मात्र से, घर रौशन नहीं हो जायेगा,जबतक कि उसे नियमित रुप से चार्जर से संलग्न नहीं करेंगे। दूसरी बात यह कि इस विधि से बनायी गयी खास माप का अपना अलग महत्त्व है।
क्रमशः....

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