पु्ण्यार्कवास्तुमंजूषा-168

 गतांश से आगे...अध्याय अठाइस,भाग- चार   

आगे,श्लोकसंख्या १५ से २२ तक द्रव्य की मात्रा,स्थिति आदि पर प्रकाश डाला गया है।यथा-
Ø शुभग्रहों के घरों में चन्द्रमा यदि हो तो द्रव्य लाभ अवश्य होगा, और पापग्रहों के घरों में हो तो द्रव्यलाभ कदापि नहीं होगा।
Ø चन्द्रमा यदि बलवान होतो अधिक मात्रा में धन लाभ होगा।(इसके लिए ग्रहबलाबल विषयक ज्ञान रखना होगा)।
Ø चन्द्रमा को सूर्य देखता हो तो सोना,चन्द्रमा स्वयं पूर्ण बिम्ब (पूर्णिमा)हो तो मोती,चन्द्रमा पर मंगल की दृष्टि हो तो तांबा,बुध की दृष्टि हो तो पीतल,गुरु की दृष्टि होतो विविध रत्नादि,शूक्र की दृष्टि हो तो काँसा,शनि की दृष्टि होतो लोहा,राहु की दृष्टि हो तो राँगा,और केतु की दृष्टि होतो शीशा(लेड) प्राप्ति की सम्भावना होती है। इस प्रकार ग्रहों के प्रभावक्षेत्र की वस्तुओं का संकेत है।
Ø लक्षणात्मक संकेत ये भी है कि मिश्रग्रह-दृष्टि होतो मिश्रद्रव्य-प्राप्ति हो सकता है,और यदि किसी शुभशुभ ग्रह की दृष्टि का अभाव हो तो द्रव्य का भी अभाव समझना चाहिए।
Ø चन्द्रमा पर पड़ने वाली ग्रहों की दृष्टि से धातु का ज्ञान ग्रहों के स्वभावानुसार ही करना चाहिए- जैसे सूर्य से सोना,चन्द्रमा से चाँदी,मंगल से ताँबा,बुध से कांसा,वृहस्पति से पीतल,शुक्र से मिट्टी शनि से लोहा,राहु से राँगा और केतु से जस्ता,तथा मिश्रग्रहों की दृष्टि का अर्थ है मिश्रधातु की स्थिति।
Ø चन्द्रमा यदि सूर्य की राशि (सिंह) में बैठा हो तो सोने के पात्र में धन रखा हुआ जाने,चन्द्रमा कर्क राशि में बैठा हुआ हो तो चाँदी के पात्र में,मंगल की राशि(मेष-वृश्चिक)में होतो ताँबे के बरतन में,बुध की राशि(मिथुन-कन्या)में बैठा होतो पीतल के पात्र में,गुरु की राशि (धनु-मीन)में बैठा होतो पत्थर के बरतन में,शुक्र की राशि(वृष-तुला) में बैठा हो तो मिट्टी के बरतन में,शनि की राशि (मकर-कुम्भ) में बैठा हो तो लोहे के बरतन में धन रखा हुआ समझना चाहिए।
Ø चन्द्रमा की राशि के जितने अंश व्यतीत हो गये हों,गृहस्वामी के हाथ से उतने ही हाथ नीचे द्रव्य जाने।अथवा चन्द्रमा के बीते हुये नवांश तुल्य माप से धन की स्थिति समझे।
Ø चन्द्रमा यदि अपने नीच राशि(वृश्चिक)में हो तो व्यतीत अंश या नवांश के दुगने माप पर धन होना निश्चय किया जाय।
Ø कुछ विद्वानों ने इसकी व्याख्या इस प्रकार की है- चन्द्रमा यदि अपने नीच राशि(वृश्चिक)में हो तो जलस्तर पर,या कहें जल में डूबे हुए स्थिति में धन मिलेगा।
Ø चन्द्रमा अपनी उच्च(वृष)राशि पर हो तो धन जमीन में न होकर कहीं ऊँचाई पर(उक्त नाप- व्यतीत अंश वा नवांश)होना चाहिए।
Ø चन्द्रमा यदि अपनी उच्च(वृष)राशि पर परमोच्च स्थिति में यानी ३ अंश पर हो तो धन जमीन में न होकर कहीं ऊँचाई पर(उक्त नाप- व्यतीत अंश वा नवांश) दीवार आदि में होना चाहिए। चन्द्रमा यदि नक्षत्रसन्धि में हो तो भी धन दीवार में ही गुप्त समझना चाहिए।
Ø चन्द्रमा के व्यतीतांश से ही द्रव्य की संख्या(मात्रा)का निर्धारण करना चाहिए।
चन्द्रमा की षडवर्गीय(राशि,होरा,द्रेष्काण,नवांश,द्वादशांश,त्रिशांश) बल- स्थिति के अनुसार द्रव्य की गुणात्मक संख्या(मात्रा)का निर्धारण करना चाहिए।यथा- चन्द्रमा उक्त किसी एक वर्ग में बलवान हो तो दशगुणा(व्ययीतांश के),दो वर्गों में बलवान हो तो सौ गुणा,तीन  वर्गों में बलवान हो तो हजार गुणा, चार वर्गों में बलवान हो तो दशहजार गुणा, पांच  वर्गों में बलवान हो तो लाख गुणा,और छः  वर्गों में बलवान हो तो व्यतीतांश के दशलाख गुणा मात्रा समझना चाहिए।

क्रमशः....

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