पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-170

गतांश से आगे...
अध्याय अठाइस भाग छः(अन्तिम भाग)



अब,उक्त रक्षण से धन को मुक्त करके प्राप्त करने का उपाय बतलाते हैः-
ü चन्द्रमा यदि अकेले हों यानी किसी का दबाव न हो तो, सिर्फ नारायणबली करके धन प्राप्ति का प्रयास किया जाना चाहिए।
ü ग्रहों को प्रसन्न करने हेतु ग्रह-जप-होमादि करना चाहिए।
ü क्षेत्रपाल को प्रसन्न करने हेतु उनकी विधिवत पूजा और उनके प्रिय वस्तुओं से बलि प्रदान करने के पश्चात् तत्मन्त्रों से होम करे।
ü मातृका शान्ति हेतु भी उक्त मातृका का पूजन,जप,बलि और होम करना चाहिए।
ü दीपेश की प्रसन्नता हेतु उनकी आराधना और दीपदान करें।
ü भैरव की प्रसन्नता हेतु उनकी विशेष पूजा और प्रिय पदार्थ से बलि करें।
ü रुद्र  की प्रसन्नता हेतु रुद्राभिषेक,महामृत्युञ्जय जपादि क्रियायें सम्पन्न करायें।
ü यक्ष  की प्रसन्नता हेतु यक्ष-पूजन-होमादि करें।
ü नाग की प्रसन्नता हेतु विधिवत नाग पूजन करके धान का लावा और दूध से बलि प्रदान करें।
ü धन के अधिष्ठाता की शान्ति-पूजा-बलि-होमादि के साथ-साथ पांचो तत्त्व- क्रमशः पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु और आकाश को भी पूजित करना अत्यावश्यक है- इसका ध्यान रखें।
ü इस प्रकार विविध अधिष्ठाताओं को प्रसन्न करके ही धन की प्राप्ति
की जा सकती है। इनकी शान्ति कराये बिना धनप्राप्ति का प्रयास भारी अनिष्ट को आमन्त्रित करना है।
 ध्यातव्य है कि अहिचक्र से शल्यादि का भी ज्ञान किया जा रहा है। शल्य शोधन हेतु भी सम्बन्धित पूजा,जप,होम,बलि आदि अवश्य करना चाहिए।अन्यथा वहाँ भी अनिष्ट की आशंका रहती है।

किंचित विशेषः- 

१. धन-प्राप्ति-परीक्षण के समय स्वामी को अपने जन्म कुण्डली की ग्रह स्थितियों की जांच भी आवश्यक है,क्यों कि अनुकूल स्थिति में ही प्रयास में सफलता मिलेगी। और धन का सही सुखभोग भी हो सकेगा। अतः विपरीत परिस्थिति में लोभ वश कदापि प्रयास न करे।

२. वैज्ञानिक दृष्टि से भी स्पष्ट है कि  भूगर्भीय स्थिति में निरन्तर होते रहने वाले उथल-पुथल किसी भी वस्तु को स्थिर नहीं रहने देते। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सौ साल पहले जिस स्थान पर धन संचित किया गया था,आज भी उसी स्थान पर मौजूद हो।

. साधक को चाहिए कि ॐ ऐँ ह्रीँ क्लीँ वद वद वाग्वादिनी स्वाहा  / ॐ ऐँ क्लीँ हूँ वद वद वाग्वादिनी स्वाहा  मन्त्र का विधिवत अनुष्ठान लेकर सवालाख जप कर ले। इसे प्रारम्भ करने के पूर्व साधक अपना चन्द्र बल विचार करले,और पूरी साधना रात्रि में चाँदनी में बैठ कर किया जाये। इससे धन परीक्षण कार्य करने में अद्भुत लाभ होता है। वास्तु सम्बन्धी बहुत तरह के शुभाशुभ संकेत स्वयमेव प्राप्त होने लगते हैं- जैसे ही किसी भूखण्ड पर परीक्षण के विचार से पैर रखते हैं। वास्तु सलाहकार को भी यह अनुष्ठान कर लेना चाहिए। आगे जब-जब विशेष प्रयोग करना हो, उस समय मात्र ग्यारह हजार जप करने से काम चल जाता है। अस्तु।

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क्रमशः....

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