पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-171

गतांश से आगे....

                   अध्याय २९ — धराचक्र

          धराचक्र महर्षि लोमश-विरचित लोमशसंहिता का अंश है। इस संहिता के त्रयोदशउत्थान में ‘अदृष्टाश्रुतवस्तुनिर्णय’ नामक २४वें अध्याय में, मात्र ६२ श्लोकों में इसका वर्णन है,जो सुतजन्मा नामक विप्र और महर्षि के लोककल्याणकारी संवाद के रुप में है। अपने आप में यह एक रहस्यमय विद्या है,जिसके सम्यक् ज्ञान के लिए ज्योतिष-ज्ञान सहित साधना-बल भी अत्यावश्यक है।
     वास्तुशास्त्र सम्बन्धी वाह्य ज्ञान के लिए तो विविध पुस्तकीय ज्ञान पर्याप्त है,किन्तु इसके रहस्यमय क्षेत्र में बिना विशेष साधना के प्रवेश नहीं मिल सकता। अपने कुल की विस्मृत सम्पत्ति-ज्ञान हेतु अहिबलचक्र प्रयोग किया जाता है, और परकुल(अज्ञातकुल) की सम्पदा-ज्ञान हेतु धराचक्र का प्रयोग किया जाता है। धराचक्र श्लोक संख्या ५३- चक्रेणाहिबलाख्येन स्वकुलैः स्थापितं धनम्। अदृष्टं चाश्रुतं वित्तं धराचक्रेण निश्चयेत्।।
     धराचक्र का प्रयोग करने से पूर्व, आगे बतलायी गयी स्वप्नेश्वरी साधना अवश्य कर लेनी चाहिए। कठोर अनुष्ठानिक विधि से कम से कम सवालाख जप करना आवश्यक है। साधना में त्रुटि न हो। साधना में लापरवाही का परिणाम होगा—कार्य में असफलता, और शास्त्र के प्रति अविश्वास-अश्रद्धा। एक बार की सफल साधना का आजीवन प्रयोग किया जा सकता है।
     साधना के पश्चात् , प्रयोग काल में मात्र ग्यारह माला जप करके सो जाना चाहिए। इसकी पूरी क्रिया रात्रि(निशीथकालीन) है। मूलसाधना प्रारम्भ करने से पूर्व सुविधानुसार कभी भी सवालाख गायत्री और सवा लाख महामृत्युञ्जय मन्त्र की साधना भी कर लेनी चाहिए। पुनः शुभ मुहूर्तादि विचार करके, सुन्दर,बिना कटे-फटे भोजपत्र या पीपल के पत्ते पर स्वप्नेश्वरी यन्त्र का लेखन, अनार की कलम और अष्टगन्ध से करे। कुछ विद्वानों ने दूर्वांकुर को लेखनीकार्य में प्रयुक्त करने का निर्देश भी दिया है।  किसी ताम्रपात्र में वस्त्रासन देकर यन्त्र को स्थापित करे। मूलमन्त्र के प्रयोग सहित षोडशोपचार पूजन करे। तत्पश्चात् पहले दिन कम से कम पांच हजार जप,और अधिक से अधिक दश हजार जप अवश्य करे। और आगे इसी भांति करते जायें। जप की संख्या न्यूनाधिक मनमाने ढंग से न हो। जप पूरा हो जाने के बाद विधिवत दशांश होमादि कर्म भी अवश्य करना चाहिए। श्रद्धानुसार ब्राह्मण और भिक्षु भोजन भी अनिवार्य है। इतना सम्पन्न हो जाने के बाद साधक इस प्रयोग को किसी अन्य के लिए करने योग्य हो जाता है। साधना पूरी हो जाने के बाद यन्त्र को सोने या चाँदी में मढ़वा कर लाल धागा पिरो कर, सुरक्षित रुप से,अपने पूजा स्थान में रख कर नित्य पंचोपचार पूजन करते रहना चहिए,ताकि यन्त्र सदा चैतन्य रहे।
   
     प्रयोग के समय साधक को एकान्त शयन करना चाहिए, और साधित यन्त्र को सिरहाने रख कर स्वप्नेश्वरी से अपना प्रश्न निवेदन करके सो जाना चाहिए। इस प्रयोग को कभी-कभी कई बार दोहराना भी पड़ जाता है; किन्तु निराश होकर, क्रिया पर अनास्था न हो। प्रत्युत्तर में मार्गदर्शन अवश्य मिलेगा,ऐसी प्रतिज्ञा है मातेश्वरी की। इस यन्त्र का उपयोग अन्य लोककल्याणकारी कार्यों में भी किया जा सकता है।आगे यन्त्र का चित्र प्रस्तुत हैः- 

क्रमशः....
                

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