पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-178

गतांश से आगे...
अध्याय तीस,भाग दो

(२)ताम्रयन्त्र-प्रयोग-पूर्व में वास्तु बन्धन-शोधन प्रसंग में इसकी चर्चा हुयी है।यहाँ जलपरीक्षण हेतु सिर्फ तार की मोटाई का फर्क है,क्रिया पूर्ववत ही करनी है।तांबे का शुद्ध तार जो बाजार में अर्थिंगवायर के नाम से मिलता है,अपने वित्ते से नाप कर पांच वित्ते का लेलें,जिसकी मोटाई १६नं.हो। न इससे अधिक और न इससे कम,क्यों कि शेष मोटाई वाले तार सही सूचना नहीं दे पायेगा। तार खरीदने का काम भद्रादि रहित किसी रवि या मंगलवार को ही करें।क्रिया भी शुभमुहूर्त में ही करें।
   
जल से शोधन करने के बाद लाल रंग के सूती कपड़े का आसन देकर,सामान्य विधि से पंचोपचार पूजन करें। तत्पश्चात् ग्यारह हजार वास्तुमन्त्र का जप करके उसे अभिमन्त्रित कर लें। मन्त्र साधना की चर्चा वास्तुदोषनिवारण अध्याय में की जा चुकी है। ध्यातव्य है कि वास्तु-साधना-सम्पन्न व्यक्ति ही ऐसे जलपरीक्षण प्रयोग करने हेतु सक्षम हैं,क्यों कि बिना साधनाबल के ऐसे प्रयोगों में सफलता कदापि नहीं मिल सकती।
  
प्रयोग के समय,साधित तार को आगे दिये गये चित्र के अनुसार मोड़ लें,और अपने दोनों हथेलियों को फैला कर,तर्जनी और अंगूठे के मांसल भाग पर तार के दोनों सिरों को टिका कर,परीक्षणीय भूखण्ड में ईशान कोण से प्रवेश कर,अग्नि,नैर्ऋत्य,वायु,होते हुए,पुनः तिरछे— वायु से मध्य होते हुए अग्नि कोण तक आयें।ध्यान रहे कि भूखण्ड पर भ्रमण करते समय आपके पैर खाली हों(जूते-चप्पल न हों)। भ्रमण बिलकुल धीरे-धीरे करें,और मानसिक रुप से वास्तुमन्त्रोच्चारण करते हुए,ध्यान तार के मध्य खण्ड पर टिकाये रहें। जिस स्थान पर जल होगा,उस स्थान पर आते ही,पैरों के नीचे जल का क्षीण कम्पन अनुभव होगा,साथ ही हथेली पर टिका तार भी धीरे-धीरे कम्पित होने लगेगा। इस प्रकार परीक्षण पूरा हो जाने के बाद,किसी शुभ मुहूर्त में वरुणादि पूजा करके खनन कार्य प्रारम्भ किया जाना चाहिए।
   
इस प्रयोग को आगे दिये गये नारिकेल-प्रयोग के साथ एकत्र भी किया जा सकता है।इसे नारिकेल-प्रयोग के बाद स्पष्ट किया जायेगा।  

(३) सिद्ध नारिकेल प्रयोग- ध्यातव्य है कि इस प्रयोग के अधिकारी भी सिर्फ वास्तुसाधक ही हैं।प्रयोग हेतु किसी शुभ दिन- भद्रा रहित,सोम,बुध, शुक्र को बाजार से खरीद कर छिलका उतारा हुआ जलदार नारियल ले आयें। ध्यान रहे कि छिलका ऐसे उतारें,ताकि गोले के शीर्ष भाग पर थोड़ी जटा शेष रह जाये। गोले को जल से शुद्ध करके पीले वस्त्रासन पर रख कर पंचोपचार पूजन करें। तत्पश्चात् देवी नवार्ण मन्त्र का नौ हजार जप कर लें। नवार्णमन्त्र के स्थायी साधकों को इस कार्य के लिए अलग से मात्र ग्यारह माला जप करना ही पर्याप्त है।इतने से ही प्रयोग हेतु गोला तैयार हो गया।
    
जल-परीक्षण-प्रयोग करने हेतु,नारियल के गोले को दाहिनी हथेली पर रख कर, परीक्षणीय भूखण्ड में ईशान कोण से प्रवेश कर, अग्नि > नैर्ऋत्य > वायु,होते हुए,पुनः तिरछे— वायु से मध्य होते हुए अग्नि कोण तक आयें। ध्यान रहे कि भूखण्ड पर भ्रमण करते समय आपके पैर खाली हों(जूते-चप्पल न हों)। भ्रमण बिलकुल धीरे-धीरे करें,और मानसिक रुप से वास्तुमन्त्रोच्चारण करते हुए,ध्यान नारियल के शीर्ष पर टिकाये रहें। जिस स्थान पर जल होगा,उस स्थान पर आते ही,पैरों के नीचे जल का क्षीण कम्पन अनुभव होगा,गोले के अन्दर भी जल की खलबलाहट का अनुभव होगा,तथा नारियल का जटा वाला भाग थोड़ा झुक जायेगा।
  
नोटः- आगे दिये गये नारियल और तार वाले दोनों प्रयोग को एकत्र भी किया जासकता है,जैसा कि दूसरे चित्र में दिखाया गया है। युग्म प्रयोग की स्थिति में नारियल का गोला यजमान की हथेली पर रख कर,उस स्थान पर आकर खड़े हो जायें,जहाँ पूर्व परीक्षण से जल का संकेत मिल चुका हो। यजमान की हथेली के ऊपर रखे नारियल से जरा सा ऊपर, अपनी हथेली में तार को टिकाये हुए रखें। इस प्रयोग से दोनों को जल का कम्पन अनुभव होगा।ध्यातव्य है कि पूर्व में किये गये तीनों प्रयोगों के बाद का यह प्रयोग है।


 आगे दो चित्रों में साधित नारियल-गोला,और ताम्र-यन्त्र को दर्शाया गया है-



क्रमशः......



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