पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-179

गतांश से आगे...
अध्याय तीस,भाग तीन

(४)श्वांस-प्रयोग-  यह प्रयोग उच्चकोटि के साधकों द्वारा ही सफल सिद्ध हो सकता है।ध्यानयोग-क्रिया के अच्छे अभ्यासी बडी सहजता पूर्वक इस विधि से जलपरीक्षण कर सकते हैं,भले ही वे पेशेवर रुप में अपने ज्ञान का उपयोग करना न चाहें।

    प्रयोग बहुत सरल है।शुभ समय में,विशेष कर प्रातःकाल भूखण्ड पर जायें। पूर्व प्रयोगों की तरह ही यहाँ भी ईशानकोण से ही भूखण्ड में प्रवेश करें। ईशान-सीमा पर थोड़ा ठहर कर,गहरी श्वांस भरें,और धीरे-धीरे अग्नि कोण की ओर बढ़ें। आँखें,शाम्भवी मुद्रा में हों,चित्त एकाग्र। इसी भांति,पुनः अग्निकोण पर पहुँच कर भी श्वांस भरें,और नैर्ऋत्य की ओर वढ़ें। अब, पुनः नैर्ऋत्य से वायु की ओर,और वायु से ईशान की ओर। पुनः ईशान से मध्य की ओर होते हुए नैर्ऋत्य तक जायें,और पुनः वापस आकर,वायु से अग्नि की ओर। इस प्रकार भूखण्ड पर भ्रमण करते हुए, प्रयोग-कर्ता को जहाँ-तहाँ विशेष जल-कम्पन की अनुभूति होगी। अपने अनुभव और विवेक से, उन सभी अनुभूत कम्पनों का विश्लेषण कर अपेक्षाकृत अधिक कम्पन वाले भूभाग का चयन करें। ऐसे साधक बड़ी सहजता पूर्वक जल का स्वाद और गहराई आदि का भी ज्ञान कर ले सकते हैं।अपने आप में यह प्रयोग सर्वाधिक सरल और सटीक है।अस्तु।

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