मौन-साधना का
दिन
माघ महीने की
अमावश्या को मौनी अमावश्या के नाम से जाना जाता है। मौनी अमावश्या बीत गया। वह
प्रवेशिका है मौन-साधना की। मुख्य साधना तो उसके बाद की है –पंचमी तिथि का
अहोरात्र।
परम्परा है कि सरस्वती
पूजा के दिन ज्ञानेश्वरीदेवी की स्थापना-पूजा की जाती है। लेखनी-पुस्तकादि को
विश्राम दिया जाना चाहिए,यानी पढ़ना-लिखना वर्जित। यह वाह्य प्रतीक है, एक संकेत
मात्र । सरस्वती का सम्बन्ध सिर्फ कलम-किताब भरसे ही थोड़े जो है,ये तो- त्वयैतत्
धार्यते विश्वं त्वयैतत्श्रृज्यते जगत्,त्वयैतत् पाल्यते देवी त्वमत्स्यन्ते च
सर्वदा से विभूषित हैं। समस्त कलायें,विद्यायें,शिल्प,ज्ञान-विज्ञान,प्रकृति
इन्हीं से प्रभावित है। सर्शसि सन्ति अस्यामिति सरस्वति । श्रीमद्देवीभागवत
के वचन हैं- सर्व प्राणिषु द्रव्येषु शोभारुपा मनोहरा...। वस्तुतः ये
प्रकृतिस्वरुपा हैं। प्रकृति यानी सौन्दर्य का दूसरा नाम । तभी तो ऋतुराज वसंत की
पावन पञ्चमी को चुना अपना प्राकट्य-दिवस,जब वसुधा सौन्दर्यमय होती है। कोमल किसलय
के साथ-साथ रंग-बिरंगी फूलों से धरा पटी पड़ी होती है। जरा ठीक से इसे समझें तो कह
सकते हैं कि निराकार ब्रह्मस्वरुपा सरस्वती परब्रह्म की नादरुपा हैं- नाद यानि
ध्वनि...क्वणन। इस नाद में ही सबकुछ समाया हुआ है। वर्ण इनका ही स्थूल शरीर है, जिसे
और भी स्थूल होने पर वाणी का स्वरुप प्रकट होता है। सरस्वती का एक नाम वागीश्वरी
भी है- वाक् (वाणी) की अधिष्ठात्री। तन्त्र ग्रन्थों में वाणी के कई स्वरुप(स्तर)कहे
गये हैं- परा,पश्यन्ति,मध्यमा और वैखरी। हम जो बोलते हैं- प्रखर रुप से
शब्दोच्चारण करते हैं- वह वाणी का वैखरी रुप है। वैखरी से परा की ओर की वाग्यात्रा
का प्रयास और क्रिया– वागीश्वरी की असली उपासना है।
प्रायः हमसभी
काम-बेकाम,समय-असमय वाणी का दुरुपयोग अधिक करते हैं,और सदुपयोग कम । शारीरिक ऊर्जा
का बहुत बड़ा भाग इसमें नित्य और व्यर्थ व्यय होता है। इसकी रक्षा करके, हम अपनी
ऊर्जा बचा सकते हैं,जिसका प्रयोग अन्य उपयोगी कार्यों के लिए किया जा सकता है। संयमित
वाणी मन्त्रवत कार्य करता है। इसकी साधना का शुभारम्भ करने के लिए कुछखास तिथियां
कहीं गयी हैं,जिनमें एक है वसंत पंचमी। प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर, यथासम्भव
आसन,प्राणायाम,संध्यावन्दन करके,मानसिक संकल्प लिया जा सकता है- मौन-साधना का। जी
हां मौन...चुप नहीं। मौन और चुप में काफी अन्तर है। मौन में विचारों पर नियन्त्रण
का अभ्यास(प्रयास)किया जाता है,और चुप तो केवल प्रखर शब्दोच्चारण का अवरोध मात्र है,जो
‘सायास’ अरुद्ध किये जाने के
कारण और भी तीव्र होकर चित्त पर घातक प्रहार करने लगता है। प्रायः देखते हैं कि जो
लोग मौन साधते हैं,वे इशारों का प्रयोग करने लगते हैं, लेखनी का प्रयोग करने लगते
हैं- ऐसे मौन से तो बेहतर होता कि वे मौन साधते ही नहीं। मौन,अन्तर्यात्रा की
बुनियाद है। न कोई मन्त्र,न कोई क्रियाविशेष,बस आते-जाते सांस का निरीक्षण करते
हुए इसका सतत अभ्यास किया जा सकता है। फिर इसका कोई न समय होता है,न स्थान,न
शारीरिक स्थिति,न शौचाचार की वंदिश...यानी इच्छानुसार या अनवरत जारी रखा जा सकता
है। कुछ दिनों तक इसे साध कर देखा जाय,फिर स्वाद कैसा लगा, ये तो आप बतायेंगे। हरि
ऊँ तत्सत्।
वसंतपंचमी का
भ्रम- प्रायः व्रत-त्योहारों के निर्णय में आमलोग
भ्रमित हो जाते हैं। निर्णय का मूल आधार- पंचांग स्वयं में भ्रामक है,फिर आमलोगों
का भ्रम क्या दूर करेगा। बाजार में बीसियों पंचांग हैं,और बनिये की दुकान की तरह
सबके सामान की क्वॉयलीटि भी अलग-अलग है। व्रत-त्योहारों के निर्णय में मूल बात
ध्यान देने की ये है कि प्रत्येक व्रत-त्योहार का नियम एक नहीं होता। कहीं तिथि की
प्रधानता होती है,तो कहीं काल की,कहीं नक्षत्र,योग,करण आदि की। हां,जो तिथि-प्रधान
पर्व हैं,उनमें उस तिथि को मान्यता दी जानी चाहिए जिसे सूर्य का बल प्राप्त हो,यानि
सूर्योदय काल में जो तिथि हो,जिसे उदयातिथि भी कहा जाता है। तिथि के साथ-साथ काल
प्रधान पर्वों में सूर्य का बल गौण होजाता है,और काल बल हावी होता है,जैसे
कृष्णजन्माष्टमी का त्योहार तब मनायेंगे जब अर्द्धरात्रि में अष्टमीतिथि मिले,साथ
ही नक्षत्र भी मिल जाय तो सोने में सुगंध। रामनवमी का पर्व मनाने के लिए
मध्याह्नकाल में नवमीतिथि का होना अनिवार्य है। अनन्तचतुर्दशी भी मध्याह्न बली ही
कहा गया है। एकादशी व्रत में पूर्वविद्धा यानी दशमीमिश्रित वर्जित है,भले ही
पूरेपूरे द्वादशी क्यों न ग्रहण करना पड़े।
इस बार माघशुक्ल
पंचमी वसंतपंचमी,सरस्वतीपूजा को लेकर लोग भ्रमित हैं। क्यों कि पंचमी तिथि शुक्र
और शनि दोनों दिन है। गयानगर समयानुसार शुक्रवार को दिन में १२.३४ से लेकर शनिवार दिन में १०.०८ तक पंचमी तिथि का
भोगकाल है। स्पष्ट है कि शुक्रवार को सूर्यबल नहीं मिल रहा है पंचमी तिथि को,अतः
शनिवार ही ग्रहण करना उचित है। क्यों कि सरस्वतीपूजा के लिए कालबल महत्त्वपूर्ण
नहीं है,तिथिबल ही है,जो शनिवार को मिल रहा है,शुक्रवार को नहीं।अस्तु।
Comments
Post a Comment