नाड्योपचारतन्त्रम् The Origin of Accupressure

गतांश से आगे...नाड्योपचारतन्त्रम्  The Origin of Accupressure का चौथा भाग--

                                                                तृतीय अध्याय
                                                    विशेष परिचय
          पूर्व अध्याय में ऐतिहासिक परिचय के क्रम में नाड्योपचार(शिरादाबःएक्यूप्रेशर) चिकित्सा पद्धति के बारे में काफी कुछ परिचय मिल चुका है। अब इस परिचित विषय को ही जरा समीप से निहारें,ताकि परिचय और अधिक घनिष्ट हो जाय।
            आधुनिक एक्यूप्रेशर का प्राचीन भारतीय नाम नाड्योपचारतन्त्रम्,और उसके थोड़े ही बाद का एक नाम – शिरादाब, नामानुरुप लक्षण-युक्त है। शरीर के विभिन्न शिराओं(एवं धमनियों) में गमन करते हुए प्राणमय रक्त-कोशों को कतिपय कारणों से अपने मार्ग में किंचित अवरोध का सामना करना पड़ता है,जिसे दूर करने के लिए विशिष्ट स्थान पर विशिष्ट विधि से दबाव दिया जाता है- यही है शिरादाब । अवरोध जनित विसंगति ही व्याधि के रुप में लक्षित होती है,अतः उसे दाब-उपचार द्वारा दूर किया जाता है,जिसके परिणामतः रोग का निवारण होता है।
            इसके दूसरे रुप- शिरावेध- एक्युपंचर की भी यही व्याख्या होगी- अवरोध-संकेत देने वाली शिरा का विशेष प्रकार की सूई से वेधन करके रोग-निवारण करने की पद्धति को एक्युपंक्चर कहा गया। महर्षि सुश्रुत ने अपने ग्रन्थ सुश्रुतसंहिता में शिरागत दूषित (अवरुद्ध) रक्त को मोक्षण-विधान से निष्कासित करने का निर्देश दिया है।
            ध्यातव्य है कि शिरा और धमनी पूरे शरीर में व्याप्त है। अतः यथावश्यक स्थान पर
उक्त (दाब या वेध)क्रिया सम्पन्न की जायगी- यही स्पष्ट होता है ऊपर की व्याख्या से। किन्तु बाद के विद्वान पूरे शरीर को एक साथ ग्रहण न करके,सुविधानुकूल अलग-अलग हिस्से में बांट दिये।
            फ्रान्सीसी विशेषज्ञ डॉ.नोजियर ने सम्पूर्ण शरीर के वजाय सिर्फ कान को ही महत्त्वपूर्ण मानते हुए एक्यूप्रेशर का नया नामकरण कर दिया- Auricular Therapy अर्थात् कान के विभिन्न केन्द्रों पर दबाव या वेधन करके रोग-निवारण करने वाली पद्धति। उनके नये नामकरण के पीछे भी कुछ रहस्य है। आंखिर शेष शरीर को छोड़ कर उन्होंने सिर्फ कान को ही क्यों लिया अपनी चिकित्सा में ? क्या कान इतना महत्त्वपूर्ण है या कि पूरे शरीर का प्रतिनिधित्व करता है- इन प्रश्नों का उत्तर इस पुस्तक में यथास्थान दिया जायेगा ।
            फ्रांस के ही एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ डॉ.रेनिवार्डियल ने प्रारम्भ में तो डॉ.नोजियर के सिद्धान्तों पर ही चलना उचित समझा,किन्तु बाद में अपने अनुभव के आधार पर निश्चय किया कि कान के केन्द्र काफी सक्रिय और महत्त्वपूर्ण हैं,साथ ही यह भी दावा किया कि सूक्ष्म और नाज़ुक विन्दुओं का वेधन कदापि उचित नहीं है। उपचार का पूरा पूरा लाभ  सम्यक् रीति से दबाव देने मात्र से भी मिल सकता है, और यही क्रिया शरीर के अन्य भागों में भी की जानी चाहिए।
            इस प्रकार डॉ.वार्डियल के सिफारिश से एक्युपंचर के वजाय एक्यूप्रेशर विधि से ही उपचार की प्रक्रिया को अधिक बल मिला,और आगे चलकर यही विधि अधिक लोकप्रिय होगयी,क्यों कि अपेक्षाकृत यह अधिक निरापद और नगण्य कष्टप्रद साबित हुयी।
            एक्यूप्रेशर चिकित्सा-पद्धति की  अमेरिकन संज्ञा- प्रतिबिम्ब विज्ञान(Reflexology) का तात्पर्य है- शरीर के विभिन्न विशिष्ट केन्द्रों पर दबाव देकर उपचार करने वाली पद्धति। इस सम्बन्ध में कहा गया है कि Any pain or disease reflects on these points that is why this science is called Reflexology.
            जापानी नाम शिआत्सु(SHIATSU)उपचार-प्रक्रिया पर आधारित नामकरण है। जापानी भाषा में SHI का अर्थ होता है अंगुली,और ATSU का अर्थ होता है दबाव। इस प्रकार शिआत्सु का अर्थ हुआ नियत स्थान पर अंगुली द्वारा दबाव देकर रोगों का उपचार करने वाली पद्धति।
            नाड्योपचारतन्त्रम् का सर्वाधिक प्रचलित नाम शिरादाब यानी एक्यूप्रेशर का निर्माण लैटिन शब्दावली से हुआ है। ACCUPRESSURE  शब्द दो शब्दों के संयोग से बना है-  Acus + Pressure यहां एक्युस का अर्थ है सूई (niddle)और प्रेशर (pressure) यानी दबाव, अर्थात् सूइयों द्वारा दबाव डालकर रोग-निवारण करने वाली पद्धति। किन्तु ध्यान देने की बात है कि इस शाब्दिक अर्थ में बिलकुल अनर्थ हो रहा है,क्यों कि सूई एक नुकीली वस्तु है, जिसे सिर्फ चुभायी जा सकती है। इससे दबाव देना कदापि सम्भव नहीं। तथा सूई चुभाने वाली जो चिकित्सा पद्धति है, उसका नाम है एक्युपंचर( Acupuncture ) है। अतः एक्यूप्रेशर के व्यावहारिक अर्थ पर जरा विचार कर लेना आवश्यक प्रतीत हो रहा है।
            प्रचलित नामकरण पर विचार करने से न्यायसंगत यह प्रतीत होता है कि पहले एक्युपंक्चर ही जन-प्रकाश में आया होगा,और फिर उसके प्रतिप्रभावों (side effect) और दोषों का परिणाम ये हुआ कि उपचार-प्रक्रिया में किंचित सुधार करना पड़ा होगा,अर्थात् चुभन क्रिया के वजाय दाब प्रक्रिया का प्रचलन हुआ; किन्तु पूर्व में लोक-चर्चित हो चुका नाम-खण्ड ही पुनः आगे भी जारी रह गया। इस पर किसी का ध्यान ही शायद नहीं गया। संशोधित उपचार विधि की सफलता और लोकप्रियता ने पंक्चर के स्थान पर प्रेशर तो कर दिया,किन्तु नाम का प्रथम खण्ड एक्यू पूर्ववत ही बना रह गया। और इस प्रकार नया नाम बना एक्युप्रेशर(Acupressure) जो गम्भीरता से बिचारने पर सैधान्तिक रुप से गलत लग रहा है। वस्तुतः इस शब्द में बहुत ही थोड़ा सा अक्षर भेद है- एक्युपंक्चर में A के बाद सिर्फ एक ही  C  होना चाहिए,जबकि एक्यूप्रेशर में A के बाद  CC होना चाहिए। तदनुसार देवनागरी में भी एक्युपंक्चर और एक्यूप्रेशर शब्दों में य में लगी उकार की मात्रा क्रमशः ह्रस्व और दीर्घ हो जायगी,और इस प्रकार शुद्ध शब्द बनेगा- एक्युपंक्चर(Acupuncture) और एक्यूप्रेशर ( Accupressure )
            एक्यू (Accu) का अर्थ होता है बाहर निकालना। चुंकि इस उपचार विधि में शिरा (धमनी) गत अवरोध को बाहर निकालने की प्रक्रिया अपनायी जाती है,अतः एक्यू (Accu) शब्द ही उचित जंचता है। सूई (niddle) का अर्थ बोधक शब्द Acu (एक्यु) कदापि नहीं होना चाहिए,जहां उपचार दबाव विधि से किया जा रहा हो।

            उपर्युक्त दो प्रकार के उलझनात्मक शब्दजाल से कहीं अधिक उचित प्रतीत होता है कि चाहे उपचार दबाव देकर किया जाय,अथवा वेधन करके,दोनों जगह शब्द Accu ही हो, अर्थात् Accupressure  तथा Accupuncture क्यों कि उपचार की दोनों विधियों में परिणामी क्रिया एक ही हो रही है- अवरोध हटाना,यानी कुछ न कुछ बाहर किया जा रहा है। अस्तु।


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