नाड्योपचारतन्त्रम्-The Origin of Accupressure

नाड्योपचारतन्त्रम्-The Origin of Accupressure

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प्रिय बन्धुओं,
जैसा कि आप जान चुके हैं कि बाबा उपद्रवीनाथ का चिट्ठा कब का पूरा हो चुका है। इसके सभी अंश फेशबुकपेज पर पोस्ट भी किये जा चुके हैं। साइट और ब्लॉग पर भी पोस्ट हो चुका है।
रचना श्रृंखला की अगली कड़ी है- नाड्योपचारतन्त्रम्। वस्तुतः ये नयी रचना नहीं है। इसका मूल रचना काल तो सन् 1985-87 है। फिलहाल इसका डिजिटलाइजेशन भर हो रहा है। आपमें बहुतों को यह भी ज्ञात होगा कि इसका पहला भाग शिरादाबःएक्यूप्रेशर नाम से सन् 1998 में ही चौखम्बासंस्कृतसिरीज,वाराणसी से प्रकाशित हो चुका है,और फिलहाल विश्व के वीसियों देशों में इसके विविध वर्जन उपलब्ध हैं। नाड्योपचारतन्त्रम् के लिए भी चौखम्बा से ही बात हुयी थी,किन्तु उनके प्रकाशन का जो रवैया है,वो मुझे पसन्द नहीं। जिस रुप में प्रकाशक लेखकों को खरीद लेते हैं,उस रुप में बिकने से तो बेहतर है,बिन बिके ही रह जाना। पैसा बहुत कुछ है इस आर्थिक युग में,किन्तु पैसे से सुकून नहीं खरीदा जा सकता। आज जो सुख और सुकून आपके प्यार भरे टेलीफोनिक कॉल और ईमेल से मिलते हैं,वो शायद कोई प्रकाशक नहीं दे पायेगा। अतः अब सारी रचनाओं को शनैःशनैः कम्प्यूटराइज्ड करके विविध साइटों पर ही उपलब्ध करा रहा हूँ,पिछले तीन-चार वर्षों से। आशा है आपका स्नेह सदा इसी भांति मिलता रहेगा।
शिरादाब नामक प्रथम खंड में ही मैंने स्पष्ट प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि विश्वस्रुत एक्यूप्रेशर कुछ नया नहीं,बल्कि योग और आयुर्वेद का ही एक छिटका हुआ हिस्सा है। इस नये नाड्योपचारतन्त्रम् के कलेवर में भी इसी का विस्तृत रुप आपको मिलेगा। यौगिक नाडियों से परिचय कराते हुए उन्हें संतुलित,व्यवस्थित करने का तरीका सुझाया जायेगा। आमजनों के लिए इसका उपयोग सीधे स्वास्थ्य-रक्षण हेतु करना सुलभ होगा,साथ ही साधकों के लिए भी अति उपयोगी हो सकता है- ऐसा मेरा विश्वास है। अन्तःशरीरसंरचना और क्रियाविधि के बारे में बाबा के चिट्ठे में भी काफी कुछ स्पष्ट किया गया है। वैसे कहा जा सकता है कि उसकी ही अगली कड़ी है ये- नाड्योपचारतन्त्रम्। हालाकि वृत्त में आरम्भ और अन्त होता ही कहां है ! आगे-पीछे का सवाल ही कहां है ?
साधुवाद। मंगलकामना।
11-4-16



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