नाड्योपचारतन्त्रम्ःThe Origin Of Accupressure

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नाड्योपचारतन्त्रम्ःThe Origin Of Accupressure का छठा भाग

चौथे अध्याय का दूसरा भाग
(क)ऊपर जाने वाले छः ऋणात्मक संचार पथ(यिनजिंग)(Negative Meridians)-चित्रांक  6 से 11तक--

(ख) नीचे आने वाले धनात्मक संचार पथ(यांगजिंग)(Positive Meridians)-चित्रांक 12 से 17 तक(यहां भी वही बात है,यानी लकीरे सिर्फ एक भाग में ही दिखलाई गयी हैं)



 अब एक खास बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि नाड्योपचार चिकित्सा पद्धति के आधार- स्तम्भ उक्त संचार पथों(Meridian) के कार्यकारी बारह मार्गों (नाड़ियों) के
अतिरिक्त दो अति प्रधान कार्य-नियंत्रक नाड़ियां और भी हैं,जो तीसरे उपखण्ड में पूर्व क्रम में दर्शायी गयी हैं-
(ग)संतुलनात्मक प्रवाह पथ( Balancing Meridian)-
1. विनिश्चय अथवा शासक प्रवाह पथ (Governing Vessel Meridian)
2. धारणा प्रवाह पथ (Conception Vessel Meridian)
संतुलनात्मक प्रवाह पथ के ये दोनों उपखण्ड पथ यथानाम तथा गुणबोधक हैं। खंड एवं खंड में  वर्णित ऋण और धन (यिंग और यांग) संचार पथों पर नियंत्रण हेतु आवश्यक विनिश्चय का कार्य पूर्ण शासनाधिकार पूर्वक करके, प्रथम अर्थात्  गवर्निंग वेसल मेरेडियन अपने सहयोगी (द्वितीय) कन्सेप्शन वेसल मेरेडियन को संकेतात्मक आदेश देता है, और धारणा संचार पथ (द्वितीय) उस शासनात्मक आदेश को धारण करके अन्य संचार पथों (मेरेडियनों) पर लागू करता है। इस प्रकार दोनों के सहयोग से शेष बारह संचार पथों (मेरेडियनों) में अनवरत शक्ति-प्रवाह प्रवाहित होते रहता है।
            ध्यातव्य है कि  ये दोनों नाडियां अन्य बारह नाडियों की तरह जोड़ियों में यानी शरीर के बाम-दक्षिण भागों में अवस्थित नहीं होती,बल्कि ये दोनों मिलकर स्वयं में एक जोड़ी बनती है,फिर भी चुंकि दोनों अलग-अलग अपना महत्त्व रखती है,इस कारण प्रधान नाडियों में इन्हें स्वतन्त्र रुप से अलग-अलग नाम दिया गया है।
            कुछ आधुनिक एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ इन दोनों नाडियों के कार्य को देखते हुए,इन दोनों को एक में ही समाहित करने की अनुसंशा करते हैं,फलतः उनकी गणना-क्रम में शक्ति-संचार-पथों की संख्या १२+ १=१३ ही होती है।
            प्राचीन योगशास्त्रियों में भी कुछ ऐसी ही मान्यता है। उनके अनुसार नाड़ियों का प्रधान शासक तो सुषुम्णा ही है। उसके वाम और दक्षिण भाग में रहने वाली इडा और पिंगला वस्तुतः एक दूसरे की सहयोगी नाड़ियां ही हैं,और दोनों मिलकर तीसरी यानी प्रथम (सर्वप्रधान- सुषुम्णा)को सहयोग देती हैं। किन्तु इसके पश्चात् भी सूक्ष्म विचार किया जाय तो स्पष्ट होता है कि ये दोनों नाड़ियां इडा-पिंगला दो भिन्न तत्त्वों(जल और अग्नि) से सम्बन्ध रखती हैं, अतः दो विपरीत गुणधर्मी नाडियों का एकत्व कैसे सम्भव हो सकता है?
            अतः मुख्य रुप से ऊपर वर्णित चौदह संचार पथ ही सर्वमान्य सिद्ध होता है।
            अब इनके बारे में कुछ और बातों को जानने-समझने का प्रयास किया जाय- संतुलनात्मक संचार पथ के दो उपपथों का गमन स्थल भी अपने आप में किंचित विचित्रता लिए हुये है। अन्य संचार पथों की तरह न तो इनका सीधा सम्बन्ध किसी अवयव विशेष से है,और न ऋणात्मक और धनात्मक प्रवाह से ही ।फलतः ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर आने-जाने जैसा प्रश्न भी नहीं है। फिर भी इनकी स्थिति अपने आप में बड़ी महत्त्वपूर्ण है।
            योगशास्त्रों में हाथ-पैर को मुख्य शरीर की शाखा माना गया है, क्यों कि मूल शरीर तो उपस्थ-मूल से ब्रह्मरन्ध्र पर्यन्त ही है। शासक एवं धारणा प्रवाह पथ की अवस्थिति इस मूल शरीर में ही है। ब्रह्मरन्ध्र से उपस्थ-मूल तक के भाग को अग्र एवं पृष्ठ के रुप में विभाजित किया जाय,तो इन दोनों शासक (नियंत्रक) पथों की स्थिति स्पष्ट हो सकती है। अर्थात इनकी वास्तविक स्थिति मूल शरीर में ही है- मध्यरेखा पर क्रमशः पीछे और आगे की ओर। चित्रांक १८-१९  में इनकी स्थिति को स्पष्ट किया गया है। इसमें ध्यान देने वाली बात है कि सुविधा के लिए चित्रांक १८ को एक और उपभाग में रखना पड़ा है,जिसमें चेहरे के अगले भाग के विन्दु स्पष्ट किये हैं।




सामान्य तौर पर चिकित्सा-काल में इन दोनों का उपयोग अन्य संचार पथों ( meridians ) की तरह ही किया जाता है,किन्तु इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये दोनों दोहरी भूमिका निभाते हैं,अर्थात एक ओर तो शेष बारह संचार पथों का नियन्त्रण करते हैं,और दूसरी ओर कई विशिष्ट व्याधियों में स्वतन्त्रता पूर्वक अन्य संचार पथों(मेरेडियनों)की भांति कार्य भी करते हैं। व्यावहारिक चिकित्सा क्रम में कभी कभी ऐसा भी होता है कि कोई व्यक्ति किसी भी उपयुक्त (विहित) केन्द्र पर सही तरीके से उपचार देने पर भी स्वस्थ नहीं होता, किन्तु इन नियन्त्रक धाराओं पर उपचार करते ही शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ कर लेता है।
क्रमशः....

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