नाड्योपचारतन्त्रम्ःThe Origin Of Accupressure)

गतांश से आगे...

चौथे अध्याय का तीसरा भाग....

      उपर्युक्त शक्ति संचार पथों में प्रधान दो नियंत्रक एवं संचालक संचार पथों के अतिरिक्त शेष बारह संचार पथों के सम्बन्ध में एक अति महत्वपूर्ण बात ये है कि सामान्य तौर पर निरन्तर आवाध गति से इनमें प्राण-शक्ति(चेतना) का प्रवाह जारी रहता है- यह सत्य है, फिर भी योगशास्त्रियों ने देश-काल-पात्र का विचार प्रायः प्रत्येक कार्य में करने का विधान किया है। शरीरान्तर्गत शक्ति-संचार-पथ भी कालनियमों से आबद्ध है। सभी नाडियों में शक्ति-संचार हर पल जारी अवश्य रहता है,फिर भी संचार की गति एक समान नहीं होती। अहोरात्र (रात-दिन के चौबीस घंटे) में किसी खास समय में किसी खास पथ में शक्ति-प्रवाह अधिकतम हो जाता है,तो किसी खास पथ में शक्ति-प्रवाह न्यूनतम भी हो जाता है। यह न्यूनाधिक गति-क्रिया एक विशिष्ठ क्रम में कालवद्ध (नियमवद्ध) है। सभी शक्ति संचार पथ (नियंत्रक-संचालक को छोड़कर) को अहोरात्र के दो-दो घंटे मिले हैं,अर्थात उस नियत काल में उस नियत पथ पर शक्ति प्रवाह अधिकतम होगा,और जब अधिकतम होना निश्चित हो गया, तो  स्वाभाविक है कि इसकी विपरीत (न्यूनतम) स्थिति भी अवश्य आयेगी। ध्यातव्य है कि अधिकतम स्थिति के ठीक बारह घंटे बाद न्यूनतम स्थिति आ जाती है, क्यों कि सारा विभाजन दिन-रात के चौबीस घंटों के बीच बारह शक्ति-संचार-पथों का हुआ है। उदाहरणतया कह सकते हैं कि रात्रि एक बजे से तीन बजे तक यकृत-संचार-पथ(Liver Meridian) में शक्ति-प्रवाह अधिकतम रहेगा,और ठीक इसके विपरीत काल- बारह घंटे बाद यानी दिन के एक बजे से तीन बजे तक यकृतसंचारपथ(Liver Meridian) में शक्ति-प्रवाह न्यूनतम हो जायेगा। विद्वानों का विचार है कि जिस समय जिस संचार पथ में शक्ति-प्रवाह अधिकतम रहेगा,उस काल में ही उस पथ से सम्बन्धित अवयवों (अंगों) की बाधा (रोग) उग्र रहने की आशंका रहती है,और ठीक इसके विपरीत काल (न्यूनतम) की स्थिति में बाधायें भी न्यूनतम हो सकती हैं,या होंगी। इस स्थिति को चित्रांक २० में स्पष्ट किया गया है,जो कि ठीक कायगत प्राकृतिक घड़ी की तरह है। पाश्चात्य विद्वानों ने इसे Organ Clock कहा है। किसी भी व्याधि के उपचार के समय, तत्सम्बन्धित शक्ति-संचार-पथ के न्यूनाधिक काल को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए। ऐसा करने से चिकित्सा करने में विशेष सुविधा होगी।

उप संचार पथ- जैसा कि पूर्व में भी चर्चा की जा चुकी है, १२ और कुल १४ मुख्य शक्ति संचार पथों के अतिरिक्त कुछ उपसंचार-पथ भी हैं,जिन्हें सह संचार पथ या सहायक संचार पथ या शाखा संचार पथ (Sub meridian or branch meridian or Subsidiary meridian) कहा जाता है। ऐसे उपसंचार-पथ करीब-करीब सभी मुख्य संचार पथों के हैं,जो कि अति सूक्ष्म है,तथा मूल कार्य मुख्य पथ से ही सम्पन्न हो जाता है,अतः इन पर विशेष ध्यान देना आवश्यक प्रतीत नहीं होता, किन्तु हाँ,कभी कभी मुख्य पथ के अतिरिक्त समीपवर्ती क्षेत्र में चेतनावरोध का संकेत मिले तो, निर्द्वन्द्व रुप से वहां उपचार किया जाना चाहिए,इसमें कोई हानि नहीं है,बल्कि लाभ ही है।
चेतना-प्रवाह-पथ-काल-बोधक-तालिका
क्रमांक
अधिकतम प्रवाह   काल
संचार-पथ
Meridian Lines
सम्बन्धित व्याधि
1.
प्रातः 1 से 3 बजे तक
यकृतसंचारपथ
Liver
पाचनतन्त्र की सभी व्याधियां
2.
प्रातः 3 से 5 बजे तक
फुफ्फुससंचारपथ
Lungs
दमा,खांसी,न्यूमोनियां
3.
प्रातः 5 से 7 बजे तक
बड़ीआंतसंचारपथ
Large intestine
कब्ज,दस्त,उदरशूल
4.
प्रातः 7 से 9 बजे तक
उदरसंचारपथ
Stomach
अम्लपित्त,गैस्ट्रिक
5.
प्रातः 9 से 11 बजे तक
प्लीहासंचारपथ
Spleen
व्रण,शोथ,प्लीहाविकार
6.
दोपहर 11से 1बजे तक
हृदयसंचारपथ
Heart
हृदय सम्बन्धी सभी व्याधियां
7.
अपराह्न 1 से 3 बजे तक
छोटीआंतसंचारपथ
Small intestine
उदरशूल,कब्ज आदि
8.
अपराह्न 3 से 5 बजे तक
मूत्राशयसंचारपथ
Urine bladder
मधुमेह,मूत्रविकारादि
9.
सायं 5 से 7 बजे तक
वृक्कसंचारपथ
Kidney
रक्तचाप,हृदयरोग,रक्त एवं मूत्र व्याधियां
10.
रात्रि 7 से 9 बजे तक
हृदयावरणसंचारपथ
Pericardium
हृदय सम्बन्धी व्याधियां
11.
रात्रि 9 से 11 बजे तक
उष्मासंचारपथ
T.Warmer
निम्नरक्तचाप,सुस्ती
12.
रात्रि 11 से 1 बजे तक
पित्ताशयसंचारपथ
Gallbladder
पित्ताश्मरी,कामला आदि
नोटः-1) ध्यातव्य है कि जिन दो घंटों में किसी चेतना प्रवाह पथ में प्रवाह अधिकतम होगा,
ठीक उसके विपरीत बारहवें घंटे में प्रवाह न्यूनतम होगा। ऐसा सभी पथों (meridian) के
साथ होगा।
2)यहां सारणी में संचार पथों का क्रम रात्रि 1 बजे से प्रारम्भ किया गया है,अतः क्रमांकों पर ध्यान न दें,क्यों कि पूर्व में कहे गये क्रमांकों से इसमें भेद स्वाभाविक है।
3.अवयवों से सीधा सम्बन्ध सिर्फ ऋणात्मक एवं धनात्मक (यिन एनं यांग) शक्ति संचार पथों को ही है। शेष दो नियंत्रक एवं संचालक संचार पथों में शक्ति संचार की न्यूनाधिकता का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसी कारण उक्त तालिका में सिर्फ बारह पथों की ही चर्चा की गयी है।
4.उक्त तालिका में संचार पथ से सम्बन्धित कुछ खास व्याधियों की ही संकेतात्मक चर्चा की गयी है। शरीर क्रिया विज्ञान एवं रोग निदान सिद्धान्त के अनुसार तत्सम्बन्धी अन्यान्य व्याधियों का उग्रकाल ज्ञात कर,चिकित्सा काल में व्यवहार करना चाहिए।
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क्रमशः जारी...
                                   
                                                            

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