नाड्योपचारतन्त्रम्(The Origin Of Accupressure)

गतांश से आगे...
नाड्योपचारतन्त्रम्....

                           नवम अध्याय
                                         
                          विन्दु-विनिश्चय
    नाड्योपचार तन्त्र (एक्यूप्रेशर पद्धति) में शक्ति-संचार-पथ (meridians) पर यत्र-तत्र स्थित तथा सहायक शक्ति-संचार-पथ (Sub-meridians) एवं उनके अन्तिम छोरों (तलवे-तलहथी) पर एकत्र रुप से स्थित प्रतिबिम्ब केन्द्रों (Reflex centre) का काफी महत्त्व है,क्यों कि ये ही वे वटन हैं,जिनपर दबाव देकर असंतुलित ऋणात्मक और धनात्मक (यिन और यांग) कायगत विद्युत बलों को संतुलित किया जाता है। इन विन्दुओं का महत्त्व ठीक वैसा ही है जैसे कोई कमरा विभिन्न प्रकार के विद्युत चालित उपकरणों से सुसज्जित हो,मगर उन उपकरणों को चालित करने वाले वटनों(स्विच) की जानकारी हमें न हो,तो उन उपकरणों का कोई लाभ हमें न मिल सकेगा। अतः इन वटनों की सही और सूक्ष्म जानकारी अत्यावश्यक है।
          एक्यूप्रेशर – प्रतिबिम्ब केन्द्रों का चायनिज नाम सुबो है, जो विभिन्न जिन्ग (मेरीडियन) पर यहां-वहां वड़े ही व्यवस्थित रुप से फैले हुये हैं—किसी महानगर के पथों पर यहां-वहां स्थित चिकित्सकों के केन्द्रों की तरह। अब एक रोगी को चिकित्सक के पास पहुंचने के लिए चिकित्सक का नाम और पता जानना जितना जरुरी है,उसी प्रकार यहां भी शरीर रुपी महानगर के पथों-उपपथों की सर्वप्रथम जानकारी,और तब उन पथों पर स्थित केन्द्रों का सही ज्ञान(परिचय और पहचान) भी आवश्यक है।
             शक्ति-संचार-पथों (meridians) की सही जानकारी के लिए पुस्तक के पूर्व अध्याय में दिये गये चित्रांक 6 से 19 तक निर्दिष्ट रेखाओं का बारबार अवलोकन-मनन अति आवश्यक है, साथ ही आगे दसवें अध्याय में वर्णित विभिन्न चित्रों का भी। हालाकि इन विभिन्न चित्रों के अवलोकन, मनन, स्मरण से ही काम पूरा नहीं हो जायेगा। इन चित्रों से प्राप्त होगा सिर्फ सैद्धान्तिक ज्ञान,जबकि मुख्य रुप से आवश्यक है व्यावहारिक ज्ञान। इसके लिए पहले अपने ही शरीर पर जांच-परख करके,अभ्यास करना सर्वोचित होगा। दिये गये चित्रों के अनुसार शक्ति-संचार-पथों (meridians) की रेखाओं (line of meridians) को देखते हुए अपनी अंगुली फिराकर उसकी सही स्थिति का अंदाजा लगाया जाना चाहिए- प्रारम्भ में तो यह काल्पनिक रुप से ही करना होगा,फिर धीरे-धीरे स्पष्ट होता जायेगा। करीब करीब सभी मेरीडियनों को अपने शरीर पर ही टटोल कर अनुभव किया जा सकता है। जिन अंगों (चेहरा,कान,आँख आदि) को प्रत्यक्ष देखना सम्भव नहीं,उनके लिए दर्पण का सहारा लेना श्रेयस्कर होगा। आगे इसी विधि से,अन्य व्यक्ति के शरीर पर भी अनुभव किया जा सकता है- उससे संवाद करके। सभी मेरिडियनों को भली भांति समझ लेने के बाद शक्ति-संचार-रेखा      ( मेरिडियन लाइन्स ) पर स्थित विभिन्न केन्द्रों को भी उसी भांति समझने का अभ्यास करना चाहिए। तलवे,तलहथी,उदर-प्रदेश, चेहरा, आदि कुछ बड़े आकार के विन्दु-समूह हैं,इन पर चित्रानुसार अंगुली फिरा कर खासखास विन्दुओं की पहचान की जानी चाहिए।
        इतने के वावजूद कुछ और भी महत्त्वपूर्ण बातें समझने को शेष रह जाती हैं। डॉ.केथ केनियन कहते हैं- The Chinese have discovered that there exists over one thousand points on fourteen meridian or lines going up and down the body. यानी चीनी विशेषज्ञों ने लगभग एक हजार विन्दुओं की खोज की है,पूरे शरीर के चौदहों मेरीडिनों पर,किन्तु समस्या ये है कि इन हजारों विन्दुओं को मानव शरीर पर सही-सही खोजा कैसे जाये?
सच पूछा जाय तो विन्दुओं की स्थिति का किंचित सामान्य अनुभव चौदह मेरीडियनों और दस खंडों(Zone) के सहयोग से प्राप्त हो जाता है। जरुरत है- गहराई पूर्वक उनके सही स्थान को जानने की,और इसे खोजने का सही तरीका है,एक्यूप्रेशर का मूल मन्त्र,याने जहां दुःखे,वहां दबायें। चित्र के अनुसार,अनुभव के आधार पर टटोल कर,उस विन्दु के आसपास के क्षेत्र में दबाव डालें। जिस स्थान पर कुछ विशेष प्रकार का(सामान्य दबाव से भिन्न- किंचित कष्टप्रद दबाव(दर्द)अनुभव हो,उसे ही निश्चित विन्दु (रुग्ण केन्द्र) समझना चाहिए। यहां इस बात की शंका हो सकती है कि कहीं दूसरा स्विच तो नहीं दब रहा है,जिसके लिए कुछ महत्त्वपूर्ण नियम ध्यान में रखने का है-- 
1)    अन्य(गलत)केन्द्र पर दबाव पड़ने से भी किसी तरह का नुकसान(side effect) नहीं है।
2)    विन्दु वही दुःखेगा,जिसके दुःखने की जरुरत है,यानी जिसे हम ढूढ़ रहे हैं। किन्तु एक बिलकुल स्वस्थ शरीर में ढूढ़ने में कठिनाई हो सकती है,परन्तु इसके लिए चिन्ता की बात नहीं है। थोड़े अभ्यास के बाद यह समस्या स्वयमेव दूर हो जायेगी।
विन्दु-विनिश्चय क्रम में दूसरी महत्त्वपूर्ण बात ये है कि शरीर में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विन्दु-समूह तो तलवे और तलहथी में स्थित हैं। इनका क्षेत्र भी पर्याप्त बड़ा है,जैसा कि आगे दिये जा रहे चित्रों से स्पष्ट है- प्रत्येक अवयव का क्षेत्र भी सुविधा के लिए घेर कर दिखलाया गया है, जो करीब दो मीलीमीटर से लेकर दो सेन्टीमीटर तक का है। अब इस विस्तृत क्षेत्र में वेदना-युक्त खास विन्दु(स्थल) को ढूढ़ निकालना है,जो लगभग मटर के दाने सदृश आकार वाला होता है, कभी-कभी इससे बड़ा भी। इसकी जांच खास तरह के उपलब्ध उपकरण (जिम्मी, प्रेशरटूल,चट्टु आदि) द्वारा दबाव देकर वड़ी आसानी से हो सकती है, किन्तु कभी-कभी ऐसा भी होता है  कि प्रभावित(रोग-ग्रस्त)अवयव से सम्बन्धित पूरा क्षेत्र वेदना-युक्त पाया जाता है, उदाहरणतया पेट-दर्द की स्थिति में आमाशय या आँतों का पूरा-पूरा क्षेत्र (2-3सें.मी.) दबाव डालने पर विशेष वेदना-युक्त पाया जाता है। ऐसी स्थिति में निशंक रुप से पूरे क्षेत्र पर दाब उपचार करना चाहिये। हाँ,कभी-कभी खास कर नये अभ्यासी चिकित्सक के लिए समस्या खड़ी हो जाती है,जब दर्द की अनुभूति अंगों के निर्दिष्ट क्षेत्र-मध्य न होकर,सीमावर्ती क्षेत्र में पायी जाती है। जैसे- तलवे या हथेली में बड़ी आंत और आमाशय की सीमा मिल रही है,जैसा कि आगे चित्रांक 22-1 व 23-1 में दर्शाया गया है, इस सीमाक्षेत्र पर यदि दबाव डालने पर विशेष वेदना-संकेत मिले तो यह निश्चय करना कठिन हो जायेगा कि वास्तविक वीमारी आंत में है,या आमाशय में,किन्तु सच पूछा जाय तो यह समस्या भी प्रारम्भिक अभ्यासियों की है। पुराने अभ्यासी और शरीर क्रिया विज्ञान के जानकार व्यक्तियों के लिए यह समस्या नहीं है। क्यों कि उसे यह ज्ञात है कि शरीर में आमाशय और बड़ीआंत की सीमा भी इसी प्रकार मिलती है,और एक व्याधि की स्थिति में दूसरा भी प्रभावित हो ही जाता है।
        उपर्युक्त विन्दु-विनिश्चय का तरीका तो सिर्फ सर्वप्रमुख केन्द्र समूह (तलवे-तलहथी) हेतु अपनाया जा सकता है,अन्य भागों में स्थित प्रितिबिम्ब-केन्द्रों की बात इससे कुछ भिन्न है, और वह भिन्नता भी एक जैसी नहीं है- कहीं आकार की भिन्नता है,तो कहीं क्षेत्र की। अतः इस सम्बन्ध में पहले कुछ विद्वानों की राय जान ली जाय।
   डॉ.केथकेनियन कायगत सुबो(स्विच)की मर्यादा(सीमा)निश्चित करते हुये कहते हैं कि- The Accupressure site is a circle about one centimeter or three eight of an inch in diameter . अर्थात 1से.मी. या  ईंच व्यास की परिधि वाला स्विच (केन्द्र) शरीर के विभिन्न भागों में पाया जाता है। डॉ.गाला का भी यही मत है, किन्तु थोड़े भेद सहित- अर्थात इनके कथनानुसार क्षेत्र गोल के वजाय चौकोर है। विस्तार उतना ही माना है इन्होंने भी। प्रसिद्ध साधक गुरुदेव मणिभाईजी इस विषय पर मौन हैं,क्यों कि उनके अनुसार तो पहले ही मूल मन्त्र फूंका जा चुका है- जहां दुःखे वहीं दबायें । ऐसा इसलिये कहा उन्होंने,क्यों कि विन्दु-क्षेत्र की मर्यादा(सीमा)पूरे शरीर में अनिश्चित है,और सिर्फ शरीर के विभिन्न अंग ही नहीं, बल्कि भिन्न भिन्न लोगों में भी व्यक्ति के आकार,कद,काठी आदि के आधार पर काफी भिन्नता भासित होती है। अतः इस झमेले से मुक्त रहने का सुझाव दिया है उन्होंने , सभी एक्यूप्रेशर चिकित्सकों को।
           उपर्युक्त सभी मत अपने स्थान पर सही हैं। वस्तुतः शरीर के मुख्य बड़े भागों (हाथ,पैर,पीठ, पेट आदि) में शक्ति-संचार-पथों पर स्थित विन्दुओं का आकार पूर्व निर्दिष्ट क्रम से समझना चाहिये, यानी बड़े क्षेत्र में करीब मटर के आकार सदृश गोलाकार क्षेत्र है प्रत्येक प्रतिबिम्ब केन्द्र का। ध्यान रहे इस सीमा में तलवे-तलहथी नहीं आते। इनका आकार पीठ,पेट की तुलना में काफी छोटा जरुर है,किन्तु जोनों का अन्तिम भाग होने के कारण शरीर के सभी मुख्य अंगों से सम्बन्धित प्रतिबिम्ब केन्द्र यहाँ  मौजूद हैं,और काफी सक्रिय होने के कारण अति महत्त्वपूर्ण भी। इतने महत्त्वपूर्ण कि Reflexology नामक स्वतन्त्र चिकित्सा-धारा चल पड़ी, और कतिपय विशेषज्ञ इसे एक्यूप्रेशर से बिलकुल अलग पद्धति करार दे दिए। किन्तु बात ऐसी है नहीं। इस सम्बन्ध में पूर्व अध्यायों में स्पष्ट किया जा चुका है। जैसा कि इनकी स्वयं में आकार-भिन्नता है,तलवे-तलहथी में बड़े और छोटे अलग-अलग आकारों में क्षेत्र हैं। शरीर विज्ञान (Anatomy) के अनुसार विचार और परीक्षण किया जाय,तो हम पाते हैं कि तुलनात्मक रुप से इनका क्षेत्र वैसा ही है,जैसा कि अंगों का अपना क्षेत्र(विस्तार),यानी शरीर में जो अंग बड़ा है,उसे तलवे और हथेली में भी बड़ा क्षेत्र मिला है,एवं छोटे अंग को कम स्थान मिला है। हलांकि इस नियम का किंचित अपवाद भी यहीं मौजूद है। यथा- आंख और कान छोटा अंग है,किन्तु हथेली और तलवे पर तुलनात्मक दृष्टि से अधिक स्थान मिला है। जांघ, बांह, कंधा आदि बड़े अंग हैं, किन्तु इसके प्रतिबिम्ब केन्द्र को अपेक्षाकृत कम स्थान मिला है। शारीरिक वनावट और स्थिति पर गौर किया जाय तो और अधिक स्पष्ट होगा। यथा- बड़ीआंत छोटीआंत को चारो ओर से घेरे हुए है, इस कारण तलवे और तलहथी में इन्हें इसी प्रकार का घेरेदार स्थान प्राप्त है। पीयूषग्रन्थि (Pituitary gland), चेतनाग्रन्थि (Pinal gland) , ललाट आदि शरीर के उर्ध्व भाग में स्थित हैं, अतः उन्हें तलवे-तलहथी के ऊपरी भाग में यथास्थान रखा गया है प्रकृति द्वारा। इस सम्बन्ध में एक और अति महत्त्वपूर्ण बात ध्यान देने योग्य है ,जो खास तलवे और तलहथी के प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर लागू होता है । जैसा कि जोन विभाजन के क्रम में पूर्व अध्याय में स्पष्ट किया गया है- जो अंग शरीर के जिस भाग (बायां-दायां) में स्थित है,उसका प्रतिबिम्ब केन्द्र भी उसी भाग में है। यथा- हृदय शरीर के वामपार्श्व में है,अतः उसका प्रतिबिम्ब केन्द्र भी सिर्फ बायीं हथेली में एवं बायें तलवे में ही है। इसी भांति अन्य अंगों को भी समझना चाहिए।
         कान के प्रतिबिम्ब केन्द्र बड़े नाजुक और अति संवेदनशील होते हैं।  योगशास्त्र के अनुसार कान पूरे मानव शरीर का प्रतिनिधित्व करता है। गौर से देखा जाय तो कान की वनावट गर्भगत बालक के काफी समतुल्य होता है।  फलतः आकार में अपेक्षाकृत बहुत छोटा होते हुए भी शरीर के सभी अंगों और बीमारियों से सम्बन्धित प्रतिबिम्ब केन्द्र कान पर मौजूद हैं। आकार छोटा और प्रतिबिम्ब केन्द्र अति सघन होने का नतीजा है कि बड़े से अंग का प्रतिनिधित्व,कान का छोटा सा अंश ही कर पाता है। यही कारण है कि कान पर अधिक से अधिक सरसो के बड़े दाने जैसा ही कोई प्रतिबिम्ब केन्द्र का क्षेत्र मिल पाता है ,किन्तु दो केन्द्रों के बीच की दूरी इतनी अवश्य रहती है कि उसे कुशल एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ आसानी से पहचान सकता है,और सरलता से दाब उपचार भी कर लेता है। सही विन्दु की पहचान हो जाने पर सुविधा से उसे उपचारित किया जा सकता है और समीपवर्ती विन्दु पर दबाव पड़ने की चिन्ता भी नहीं रहती।
          यही बात आँखों के प्रतिबिम्ब केन्द्रों की भी है। यहाँ के क्षेत्र कानों की तरह ही हैं,किन्तु संख्या में पर्याप्त अन्तर है,साथ ही अवयव समूह का भी झमेला नहीं है। एक बात विशेष ध्यान रखने योग्य है कि चुंकि आँख अति नजुक अंग है,इस कारण दबाव बहुत ही सावधानी से देना पड़ता है,तथा किसी भी दाब उपकरण का प्रयोग सर्वथा वर्जित है। हां,कुछ विशेष खास उपकरण- comb cleaner  जैसे गुच्छेदार छोटे नोकों वाले उपकरण के व्यवहार करने का सुझाव देते हैं। इस लघु उपकरण से कोई खतरा नहीं है,और दबाव भी बड़ी सुविधा पूर्वक एक साथ कई आवश्यक विन्दुओं पर पड़ जाता है, जिसके फलस्वरुप उपचार-प्रक्रिया उबाऊ के बजाय सुखद हो जाती है।
         चेहरे पर स्थित प्रतिबिम्ब केन्द्रों का सामान्य आकार गोलमिर्च के समान है। चेहरे के आकार की तुलना में विन्दुओं की संख्या भी न तो कान की तरह अति है,और न हथेली की तरह न्यून। उपकरणों का व्यवहार यहां भी वर्जित है। दबाव तर्जनी अंगुली से देना सर्वोत्तम माना गया है। ललाट पर स्थित दो-तीन केन्द्र अपेक्षाकृत कुछ बड़े आकार वाले हैं। इनका क्षेत्र बड़े आकार के मटर जैसे हैं, जहाँ दाब उपचार हाथ के अंगूठे से करना उत्तम है।
      जीभ पर भी काफी अधिक संख्या में प्रतिबिम्ब केन्द्र हैं,जिनमें कुछ काफी बड़े (मटर सदृश, कुछ गोलमिर्च जैसे) हैं, शेष शहतूत के पके फल पर उभरे दानों की तरह होते हैं। इन अतिसूक्ष्म केन्द्रों का अंगानुसार अलग-अलग विश्लेषण और पहचान न तो आवश्यक है,और न स्वतन्त्र रुप से उपयोगी। इनमें अधिकांश सिर्फ एक ही तन्त्र- पाचनतन्त्र(Digestive System) से सम्बन्ध रखते हैं, अतः इनका उपयोग एकत्र रुप से ही उपचारित करने में होना चाहिए। दातुन करने के बाद, दातुन की जीभी से जीभ को रगड़ कर साफ करना- इस पाचनतन्त्र उपचार प्रक्रिया का ही अंग है,जिसे सामान्य दिनचर्या में इस कदर शामिल कर लिया गया है कि अलग से कुछ करने की आवश्यकता नहीं होती। नारी जननांगों से सम्बन्धित कुछ खास केन्द्र भी जीभ पर हैं,जिन पर खास समय में खास विधि से दबाव देने का नियम है। जीभ के बिलकुल अगले हिस्से में(बिलकुल नोक पर)एक गोलकीनुमा केन्द्र है, जिसे कामकेन्द्र कहना अतिशयोक्ति न होगी। सम्भोग के समय स्त्रियां यदि अपने दांतों से इस भाग पर आहिस्ते से दबाव डालें,तो उनके कामतुष्टि में अप्रत्याशित वृद्धि होती है। सुप्तकामेच्छावृति वाली स्त्रियों को नियम से (चौबीस घंटे में चार-पांच बार) इस तरह का प्रयोग करना चाहिए। इससे काफी लाभ मिलेगा। प्रसव-वेदना के समय इस केन्द्र पर उसी विधि से दबाव देकर,सुखप्रसव का लाभ भी पाया जा सकता है।  पुरुषों में इस विन्दु पर प्रयोग का तरीका बिलकुल भिन्न है। उन्हें अपनी जीभ के अग्रभाग को उल्टा मोड़कर,दबाव देना चाहिए।
            तलवे-तलहथी,कान,आँख,जीभ आदि की तुलना में सिर का उपरी भाग,जो सदा बालों से ढका रहता है,कई बड़े-छोटे प्रतिबिम्ब केन्द्रों का समूह है। इनमें अधिकांश पित्ताशय एवं यकृत से  सम्बन्धित हैं। वैसे,सिर के असंख्य बालों की जड़ (प्रत्येक) में पित्ताशय को उत्तेजित करने वाले अतिसूक्ष्म केन्द्र मौजूद हैं,जो खासकर बालों की रक्षा का कार्य करते हैं। इन सभी केन्द्रों पर सामूहिक तौर पर मालिश के क्रम में उपचार किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त गोल नोकों वाले विशेष प्रकार की कंघी से दबाव देकर भी इन सभी केन्द्रों को उपचारित किया जा सकता है। सिर पर कुछ खास केन्द्र मटर के आकार वाले भी हैं,जिन पर अंगुली से आसानी से दबाव दिया जा सकता है। यहां अन्य किसी उपकरण का व्यवहार विहित नहीं है।
         नाड्योपचार (एक्यूप्रेशर) केन्द्रों के विनिश्चय क्रम में पूर्व में दिये गये चित्रों का अवलोकन,तथा स्थान और क्षेत्र सम्बन्धी दिये गये विभिन्न संकेतों के बावजूद,तलवे-तलहथी के अतिरिक्त भागों पर स्थित प्रतिबिम्ब केन्द्रों की सही परख बड़ी ही उलझन वाली होती है। फलतः नये अभ्यासी काफी परेशानी अनुभव कर सकते हैं। जैसे यदि कहा जाय कि अमुख केन्द्र घुटने से चार अंगुल नीचे है,या कहें कि कुहनी के मोड़ से दो अंगुल ऊपर कंधे के दर्द सम्बन्धी एक केन्द्र है। अब,विचारणीय ये है कि दूरी की ये माप- दो अंगुल,या दो सें.मी. जैसा पैमाना क्या अर्थ रखता है? क्या प्रत्येक व्यक्ति के लिए यही पैमाना अनुकूल होगा,या नापेगा कौन- चिकित्सक या कि रोगी स्वयं? कोई लम्बा है,कोई नाटा,कोई मोटा है,कोई दुबला,कोई बच्चा है,कोई सयाना। ऐसी स्थिति में स्थान बोधक संकेत को सही कैसे समझा जाय- यह एक अहम सवाल है-  एक्यूप्रेशर के नये अभ्यासियों के लिए।

            इस सम्बन्ध में कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि ईंच या सें.मी.जैसा पैमाना तो नाड्योपचार में होना ही नहीं चाहिए। हां, अंगुली की नाप चल सकती है। इसके लिए उपचारकर्ता अपनी अंगुली से नाप कर,विन्दु-विनिश्चय करने के वजाय,रोगी की अंगुली से ही नाप कराये,तो अधिक अच्छा होगा। यही उचित भी प्रतीत होता है। क्यों कि रोगी की अंगुली आनुपातिक दृष्टि से सुव्यवस्थित नाप बतलायेगी। माप-परख का यह तरीका काफी हद तक सही, मान्य और सुविधाजनक कहा जा सकता है। फिर भी इसे सर्वमान्य सिद्धान्त कहना अनुचित ही होगा। इस प्रणाली को स्पष्ट करने के लिए आगे प्रस्तुत है

चित्रांक 21-घ

चीनी एक्यूप्रेशर विशेषज्ञों ने इसके लिए बड़ा ही युक्ति-संगत माप-प्रणाली निश्चित की है। इस सम्बन्ध में डॉ.केथ केनियन कहते हैं- Chinese called this measurement a ‘TSUN’ the distance between two points on the middle finger is completely bent- अर्थात हाथ की मध्यमा अंगुली को मध्य एवं अग्र पोरुये से मोड़ने पर,बीच के मुड़े हुए भाग को सुन या चुन कहा गया है। 
क्रमशः...



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