गतांश से आगे...
(नोट- पिछले पोस्ट से सम्बन्धित एक चित्र को यहां पहले देख लें,फिर आगे के प्रसंग पर जायें)
नौवें अध्याय का शेषांश..
चीनी
एक्यूप्रेशर विशेषज्ञों ने इसके लिए बड़ा ही युक्ति-संगत माप-प्रणाली निश्चित की
है। इस सम्बन्ध में डॉ.केथ केनियन कहते हैं- Chinese
called this measurement a ‘TSUN’ the distance between two points on the middle
finger is completely bent- अर्थात
हाथ की मध्यमा अंगुली को मध्य एवं अग्र पोरुये से मोड़ने पर,बीच के मुड़े हुए भाग
को ‘सुन’ या ‘चुन’ कहा गया है।
इस द्वारी विन्दु की भांति ही अन्य
विन्दुओं के स्थान का भी निश्चय करना उचित है। एक्यूप्रेशर उपचार क्रम में प्रतिबिम्ब
केन्द्रों की सही पहचान हेतु कुछ और भी ध्यान देने योग्य बातें हैं। यथा-
१. रोगग्रस्त (प्रभावित) विन्दु अत्यन्त
संवेदनशील होता है,अर्थात आसपास के क्षेत्रों की तुलना में उस स्थल पर वेदना अधिक
होगी- यह सर्वोत्तम पहचान है।
२. रोग का प्रभाव यदि कम हो तो प्रारम्भ
में संवेदनशीलता भी कम ही होगी,किन्तु लागातार कुछ देर उपचार करते रहने पर,सही
वेदना का आभास होने लगेगा। अतः यदि अन्यान्य तरीकों से रोग का सही निदान हो जाय,परन्तु
विन्दु-विनिश्चय में कठिनाई हो रही हो,तो अवयव (रोग) से सम्बन्धित उस महत्वपूर्ण
किन्तु अपेक्षाकृत कम संवेदनशील विन्दु पर भी अधिक बार दबाव देकर जांच अवश्य कर
लेनी चाहिए।
३. रोग-प्रभावित विन्दु का क्षेत्र आसपास
के क्षेत्र की तुलना में कुछ भिन्नता युक्त अवश्य पाया जाता है,अर्थात संवेदनशीलता
की भिन्नता के अतिरिक्त,वर्ण-भिन्नता,उष्मा-भिन्नता,आदि विशेष लक्षण-युक्त होगा। यथा- रोग प्रभावित विन्दु लाली,सफेदी या
पीलापन युक्त हो सकता है,तथा अंगुली से स्पर्श करने मात्र से,उक्त स्थान अन्य
स्थान की अपेक्षा कुछ अधिक गर्म भी मालूम पड़ सकता है।
४. रोग-ग्रस्त विन्दु की किंचित आकार
भिन्नता भी भासित होती है। जैसे- प्रभावित विन्दु हल्का सूजन,खुरदरापन,या फुंसी
युक्त पाया जा सकता है। यह लक्षण कान या चेहरे के प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर विशेष
रुप से पाया जा सकता है।
५. ताप-भिन्नता तो प्रभावित विन्दु का
स्वाभाविक लक्षण है,किन्तु कभी कभी उष्ण के वजाय शीत भी अनुभव हो सकता है। हालाकि
ऐसा बहुत कम ही पाया जाता है।
६. अत्याधुनिक एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ
विन्दु-विनिश्चय हेतु विशेष प्रकार के विद्युत उपकरण का भी व्यवहार करने लगे हैं।
उनकी ऐसी मान्यता है कि रोग-प्रभावित प्रतिबिम्ब केन्द्र अति सामान्य विद्युत तरंग
से ही उत्तेजित हो जाता है,जब कि अप्रभावित विन्दु में यह बात नहीं पायी जाती।
वहां अधिक प्रवाह(वोल्ट)सहने की क्षमता होती है।
७. जीर्ण व्याधि( chronic disease) की स्थिति में विन्दु की
संवेदनशीलता बढ़ने के बजाय घट जाती है,किन्तु बारम्बार के उपचार से यथास्थिति पर आ
जाती है।
इन सभी
लक्षणों और नियमों के सहारे आसानी से प्रतिबिम्ब केन्द्रों को परखा जा सकता
है।अस्तु।
क्रमशः....
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