नाड्योपचारतन्त्रम्( The Origin of Accupressure)

गतांश से आगे...

दसवें अध्याय का शेषांश...



         मेरुदण्ड के विशिष्ट परिचय के पश्चात, पृष्ठभाग पर कुछ और भी प्रतिबिम्ब-केन्द्र शेष रह जाते हैं,जिनका ज्ञान आवश्यक है। अतः इनके बारे में आगे खंड ख में प्रस्तुत किया जा रहा है—


(ख) शेष पृष्ठभाग-   प्रतिबिम्ब-केन्द्र-समूहों के वरीयता क्रम में आने वाले स्विचवोर्डों में तीसरे स्थान पर है—पृष्ठभाग,जिसे सुविधा और प्राथमिकता के तौर पर दो उपखंडों में बाटा गया है। उस उपखंड का ही दूसरा खंड है—शेष पृष्ठ भाग। इसे दिये गये चित्रांक 26 क-ख में स्पष्ट किया गया है। यूंतो पूरे पृष्ठभाग पर अनेक प्रतिबिम्ब-केन्द्र हैं,किन्तु उनमें कुछ ही ऐसे हैं,जो विशेष प्रयोग में आते हैं। अतः सिर्फ उन्हीं अति व्यावहारिक (उपयोगी)केन्द्रों को ही यहां दर्शाया गया है। इन केन्द्रों का उपयोग खास-खास वीमारियों के निवारण हेतु किया जाता है,जैसा कि चित्र के साथ संलग्न सूची में स्पष्ट किया गया है।  इन पर भी उपचार मरुदण्डीय विधि से ही किया जाना चाहिए।,क्यों कि वास्तव में ये भी उसी समूह के सहयोगी हैं,अतः वे सारी बातें यहां भी लागू होती हैं ।

         ऊपर दिये गये चित्रों में हम देख रहे हैं कि क में क्रमांक 1 से 21 तक अंक दिये हुए हैं,जब कि ख में सिर्फ वहुत से विन्दु ही दर्शाये गये हैं कटिप्रदेश से लेकर नीचे टखनों तक। चित्रांक 26 ख के विन्दु विशेष कर कटिशूल,लम्बर,सैक्रम और स्लिपडिस्क सम्बन्धी रोगों में प्रयुक्त होते हैं। अतः इनकी अलग सूची नहीं दी जा रही है,जबकि 26क की प्रयोग-सूची निम्नांकित है—



(1)  कटिकशेरुका
(2)  आँख
(3)  आँख
(4)  प्रजननांग(यौनशक्ति)
(5)  दायां पैर
(6)  आँख
(7)  कान
(8)  सिर,बांह
(9)  बायां पैर
(10)    हृदय
(11)    हाथ(समूचा)
(12)    मूत्राशय,शैय्यामूत्र
(13)    आँख(भेंगी)
(14)    त्रिक(सैक्रम)
(15)    गला
(16)    दायां पैर
(17)    बायां पैर
(18)    हृदय
(19)    जंघा,स्नायुसंस्थान
(20)    गृध्रसी(सायटिका)
(21)    वेरीकॉमवेन्स


      उक्त सूची में क्रमांक 4,12,13,14,21 के सम्बन्ध में पुनः कुछ स्पष्टी आवश्यक है— क्रमांक 4 यूं तो समस्त प्रजननांगों से सम्बन्ध रखता है,किन्तु खास कर यौनशक्ति बढ़ाने में इसका विशेष योगदान है। क्रमांक 12 खासकर उन बालकों या वृद्धों में प्रयोग करेंगे,जिन्हें अकसरहां सोए हुए में पेशाब हो जाता हो। इसके लिए हलेली प्रसंग में चित्रांक 23-9 का भी अवलोकन करना चाहिए।
         क्रमांक 13 खासकर वैसे रोगी पर प्रयोग करेंगे,जिनकी दोनों आंखें दो दिशाओं में प्रतीत होती हैं (उन्हें ही भेंगी आँख कहते हैं।) डॉ. आजकल ऐसे आँखों का इलाज ऑपरेशन द्वारा करते हैं। क्रमांक 14 पूरे त्रिकास्थि से सम्बन्धित रोगों में प्रयुक्त है। तथा क्रमांक 21 एक खास तरह की नस की बीमारी में प्रयोग करना होता है- विशेषकर पैर के नस ऐसे लगने लगते हैं मानों रस्सी लिपटी हो,यानी विकृत होकर,काफी मोटे हो जाते हैं,और इनमें दर्द और ऐंठन भी होने लगता है। अन्य चिकित्सा पद्धति के लिए यह एक जटिल रोग की श्रेणी में आता है।

क्रमशः...    

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