नाड्योपचारतन्त्रम्( The Origin of Accupressure)


 गतांश से आगे..
 दशवें अध्याय का शेशांष...


(5)चेहरा— नाड्योपचार विधि में तलवे,तलहथी,मेरुदण्ड और कान के बाद सक्रियता और वरीयता क्रम में पांचवां स्थान चेहरे का है। अपने आप में यह भी बड़ा विचित्र केन्द्र-समूह है। पूर्व वर्णित अन्य चार केन्द्र समूहों की तरह इसे पूर्णतया स्वतन्त्र दर्जा तो नहीं दिया जा सकता,किन्तु कई मामलों में इसका अजूबापन झलकता है। कहने को तो चेहरे को एक प्रतिबिम्ब केन्द्र समूह कहा गया है यानी अपने पूरे क्षेत्र-विस्तार के भीतर अन्य कई केन्द्र समूहों को समेटे हुए है। यही कारण है कि चेहरे का महत्त्व एक्यूप्रेशरीय विचार से काफी अधिक है। अध्ययन-मनन और व्यवहार के विचार से इस प्रमुख समूह को चार उप-समूहों में बांटा जा सकता है, जो अग्र वर्णित हैः-
            (क)वाह्य पटल—चित्रांक 28  इस उप समूह में चेहरे का सिर्फ बाहरी आवरण है, जिसमें ललाट,दोनों गाल,ठुड्डी,नाक,होठ,अधर,गर्दन के ऊपरी भाग तथा सिर आदि आते हैं। मुखमण्डल का वाह्यपटल एक प्रकार से दूरदर्शन का पर्दा है,जिस पर शारीरिक और मानसिक स्थितियों (मनोभावों ) का प्रतिबिम्ब समयानुसार अनवरत प्रायः उभरता रहता है। आवश्यकता है प्रतिबिम्ब की इस भाषा को समझने की, और गहराई से परखकर उपयोग करने की। क्षेत्रफल(विस्तार) की दृष्टि से यह वाह्य पटल प्रतिबिम्ब केन्द्र समूह काफी विस्तृत है। तदनुसार बड़ी आसानी से (कान की तुलना में ) इस पर पाये जाने वाले केन्द्रों का निश्चय (जाँच-परख) किया जा सकता है। इस उपसमूह के अधिकांश केन्द्रों का आकार प्रायः मटर के
दाने सदृश घेरेदार है,कुछ केन्द्र काफी छोटे आकार (सरसो जैसा) वाले भी हैं।
विनिश्चय की दृष्टि से सरल होते हुए भी व्यवहार की दृष्टि से विशेष सावधानी अपेक्षित है चेहरे के केन्द्रों पर। इसका मुख्य कारण है कि चेहरे की त्वचा शरीर के अन्य भागों की तुलना में अधिक सुकुमार (कोमल,नाजुक) है। अतः किसी भी प्रकार के दाब-उपकरण (प्रेशरटूल) का प्रयोग यहां सर्वथा वर्जित है। इस समूह के लिए सर्वोत्तम विधि अंगुलियों द्वारा दबाव देना ही है। वैसे आधुनिक उपकरण भी बहुत तरह के आ गये हैं,किन्तु मैं कभी भी  उपकरणों का हिमायती नहीं रहा हूँ। यानी कि नाड्योपचार को उपकरणों के बन्धन से मुक्त ही रखा जाना चाहिए,ताकि आमजन (गरीबों) तक चिकित्सा सुलभ हो। दिखावटी (बनावटी) आधुनिक उपकरणों के चकाचौंध ने इस पद्धति को भी हाईप्रोफाइल ट्रीटमेन्ट बना दिया है। अतः जहांतक हो सके इससे बचें। अंगुली के दबाव में भी ध्यान रखना जरुरी है कि सब जगह एक सा दबाव नहीं दिया जाना चाहिए। निदान/चिकित्सा जहांतक हो सके हल्के दबाव से ही होनी चाहिए। वैसे अपवाद स्वरुप कुछ केन्द्र ऐसे भी हैं इस पटल पर,जहां काफी अधिक दबाव दिया जा सकता है,और दिया जाना भी चाहिए,अन्यथा वहां उपचार फलदायी नहीं होगा। यथा उक्त चित्रांक 28 के क्रमांक 1,33,35 आदि ऐसे केन्द्र हैं,जिन पर पांच से दस पॉन्ड तक का दबाव दिया जाना चाहिए। इससे कम में काम नहीं चलता औसत आयु और शारीरिक गठन वाले लोगों को। किन्तु यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि इससे अधिक दबाव भी न दिया जाय। अन्यथा तदस्थित कोशिकाओं को क्षति पहुंच सकती है। रोगी के उम्र,और शारीरिक स्थिति का विचार भी अवश्य करना चाहिए। पुरुष-स्त्री-बच्चे में दबाव का अन्तर कदापि एक तरह का नहीं हो सकता—यह भी ध्यातव्य है।
            वाह्य पटल उपसमूह पर मुख्य रुप से 66 प्रतिबिम्ब केन्द्र विशेष रुप  से सक्रिय और उपयोगी पाये गये हैं,जिन्हें आगे चित्रांक 28 में स्पष्ट किया गया है। उक्त क्रमांकों से सम्बन्धित अवयवादि परिचय (उपयोग) तालिका यहां सहयोगार्थ प्रस्तुत हैः-
क्रमांक-------अवयवादि सम्बन्ध
1)    शिरोशूल,चक्कर,बेहोशी,नकसीर आदि
2)    पेड़ू,गर्भाशय(Pelvic&Uterus)
3)    स्नायुमंडल (Nervous system)
4)    प्रजनन अंग(Reproductry System)
5)  शिरोशूल,स्नायुमंडल(Migrain,Nervous system)
6)    स्मरण शक्ति,स्नायुसंस्थान(Nervous system)
7)    दृष्टि-विकार(विशेषकर दोहरी दृष्टि)
8)    नजला-जुकाम
9)    आमाशय(Stomach)
10) सायटिका(Sciatica)
11) सायटिका(Sciatica)
12) आँख(Eye)
13) श्वांस(दमा)(Asthma)
14) आमाशय(Stomach)
15) श्वांस(दमा) (Asthma)
16) यकृत(Liver)
17) रक्तसंचरण-संस्थान(Circulatory System)
18) गलगण्ड(Goiter)
19) अनिद्रा(
20) प्लीहा(Spleen)
21) पक्षाघात(Paralysis)
22) दांत(उपर)
23) फेफड़े का दांया भाग
24) दांत(निचला)
25) फेफड़े का दायां भाग
26) कामोत्तेजक (Sex stimulation)
27) आँख
28) उदर (Abdomen)
29) श्वास,कास,खांसी(Asthma,Caugh & cold)
30) उदर(Abdomen)
31) आँख
32) कामोत्तेजक(Sex stimulation)
33) कब्जियत,एवं स्त्रियों के रजोदोष
34)  फेफड़े का बायां भाग
35) दांत(ऊपर)
36) फेफड़े का बायां भाग
37) दांत(निचला)
38) पक्षाघात
39) अनिद्रा
40) रक्तसंचरणसंस्थान(Circulatory System)
41) गलगण्ड
42) श्वांस(Asthma)
43) प्लीहा(Spleen)
44) हृदय(Heart)
45) सायटिका (Sciatica)
46) आँख
47) सायटिका(Sciatica)
48) नाक
49) पित्ताशय(Gallbladder)
50) गर्दे(Kidney)
51) बड़ीआँत (Large Intestine)
52) छोटीआंत(Small Intestine)
53) नाक
54) प्लीहा(Spleen)
55) अग्न्याशय
56) कांख(Armpit)
57) नाक
58) छोटीआँत(Small Intestine)
59) बड़ीआंत(Large Intestine)
60) गुर्दे(Kidney)
61) आँख
62) आँख
63) स्नायुसंस्थान(Nervous system)
64) आमाशय(Stomach)
65) स्नायुसंस्थान(Nervous system)
66) पित्ताशय(Gallbladder)

चित्रांक 28 क से सम्बन्धित उक्त तालिका में हम देखते हैं कि कुछ केन्द्रों का सीधा अवयव (अंग) सम्बन्ध स्पष्ट है,किन्तु कुछ केन्द्रों के अंग की चर्चा न होकर सीधे व्याधि का नाम दिया हुआ है। किन्तु इसमें उलझन की बात नहीं है। जैसा कि अन्यान्य प्रतिबिम्ब केन्द्र समूहों(वोर्डों)में भी ऐसी बात पायी जाती है, उसी भांति यहां भी समझना चाहिए। व्याधि सम्बन्ध का मतलब है कि उक्त केन्द्र पर उपचार करने से तत्सम्बन्धित व्याधि का निवारण होगा। तत्व्याधि में प्रत्यक्ष वा परोक्ष रुपसे जो जो अंग जिम्मेवार(प्रभावित) होंगे,उन सब पर उक्त केन्द्र का प्रभाव पड़ेगा। वस्तुतः इस रहस्य को समझने हेतु शरीरक्रियाविज्ञान का भी गहन ज्ञान अपेक्षित है। यानी कि सिर्फ नाड्योपचार तन्त्र को पढ़-जान लेने से कोई विशेषज्ञ नहीं बन जा सकता। हां,सामान्य चिकित्सा करने का अधिकारी कहा जा सकता है।

चेहरे के वाह्य पटल पर और भी कई प्रतिबिम्ब-केन्द्र हैं,जिसे स्पष्ट किया गया है। पाश्चात्य एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ द्वारा निर्दिष्ट तालिका जो कि चित्रांक 28 ख में द्रष्टव्य है। ध्यातव्य है कि चित्रांक 28 क-ख  में कुछ केन्द्रों की पूर्ण समानता है। अतः उन्हें यथावत उचित ही समझना चाहिए। मात्र सुविधा और जानकारी के लिए चित्रांक 28 ख को भी प्रस्तुत कर दिया गया है,ताकि यदि किसी के जानकारी में मात्र एक ही सूची है,और अचानक कहीं दूसरी सूची भी दिखे ,तो वह भ्रमित न हो जाये,कि कौन सही,कौन गलत है। सच पूछा जाय तो दोनों सही हैं। यहां अलग से दूसरे चित्रांक की सूची नहीं दी जा रही है,क्यों कि चित्र में ही अंगादि नाम कथित है, और अन्य चित्रों की तरह यहां क्रमांक का क्रम भी नहीं है।

क्रमशः...





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