नाड्योपचारतन्त्रम्(The Origin of Accupressure)

गतांश से आगे...

                            सप्तदश अध्याय
                            सामर्थ्य और सीमा

नाड्योपचार पद्धति के सम्बन्ध में अब तक के विविध अध्यायों में दिए गये विवरण के आधार पर स्पष्ट रुप से कहा जा सकता है कि यह एक अत्युत्तम निरापद चिकित्सा-पद्धति है, जिसका उपयोग निःशंक रुप से आबालवृद्ध,पुरुष-स्त्री,साक्षर-निरक्षर सभी कर सकते हैं। सबको लाभ ही मिलेगा। आधि हो या व्याधि,नवीन हो या जीर्ण,जटिल हो या सरल,सभी स्थितियों में यह पद्धति कारगर है।
यह काफी समर्थ है हर प्रकार के रोग-निवारण में, साथ ही रोग-प्रतिरोधन में भी। किन्तु इसका भी खास दायरा है,सीमा है।
अस्थि-भग्न को जोड़ देने का दावेदार एक्युप्रेशर विशेषज्ञ उपहास का ही पात्र होगा। टूटी हड्डी जोड़वाने के लिए कोई रोगी उसके पास जायेगा भी नहीं। किन्तु इसका यह मतलब भी नहीं है कि हड्डी को जोड़ने में एक्युप्रेशर उपचार का कोई योगदान ही नहीं है। अन्य उपचार एवं औषध-सेवन के साथ-साथ अस्थिसंस्थान पर काम करने वाले प्रतिबिम्ब केन्द्रों को नियमित रुप से उपचारित किया जाय तो त्वरित लाभ अवश्य होगा,इसमें जरा भी संदेह नहीं। इसी भांति अन्य ऐसी व्याधियां,जिसमें औषधि मात्र से काम चलने को नहीं है,वरन शल्य चिकित्सा की आवश्यकता है,वैसी स्थिति में भी अन्यान्य उपचारों के साथ नाड्योपचार का प्रयोग करना उचित ही कहा जायेगा। हर हाल में यह पद्धति सहायक ही सिद्ध होगी। वैसे एक व्यक्ति ने दावा किया था कि वे कैंसर को भी ठीक कर सकते हैं,किन्तु मेरे अनुभव में आज तक ऐसा मामला नहीं आया है। हां,इतना जरुर कह सकता हूँ कि कैंसर और एड्स जैसे घातक बीमारियों में भी इसे सहयोगी चिकित्सा के रुप में प्रयोग किया जा सकता है। सुख प्रसव में इस पद्धति को कई बार आजमाया है मैंने,और आशातीत सफलता भी मिली है।

पद्धति के सम्बन्ध में प्राचीन साहित्य लुप्त प्राय हैं। नवीन वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा इसके पुनर्जागरण का प्रयास सतत जारी है। आशा है आने वाले समय में मानव जाति के कल्याण के लिए नयी चेतना का संदेश ले आयेगा,जिसके फलस्वरुप नाड्योपचार पद्धति के सामर्थ्य और सीमा का विस्तार हो सकेगा। अस्तु।
क्रमशः...

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