सम्वत् २०७४ का साम्वत्सरिक राशिफल एवं कुछ अन्य खास
बातें :-----
सम्वत्
२०७४ का नया पञ्चांग २९ मार्च २०१७ से लागू होने वाला है, जो आगामी १७ मार्च २०१८ तक जारी रहेगा। आंग्ल नववर्ष
(कैलेन्डर इयर) प्रारम्भ होने के बाद कई बन्धुओं ने आग्रह किया था राशिफल पोस्टिंग
के लिये, किन्तु पुराने सम्पर्की बन्धु जानते हैं कि मैं साम्वत्सरिक राशिफल पोस्ट
करता हूँ। हर वर्ष की भांति इस बार भी वार्षिक (साम्वत्सरिक) राशिफल प्रस्तुत किया
जा रहा है। किन्तु इससे पूर्व नये सम्वत् के सम्बन्ध में कुछ खास बातें जानने
योग्य हैं, जिन्हें यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ।
वर्ष के प्रारम्भ में साधारण नामक
सम्वत्सर रहेगा, किन्तु ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी शुक्रवार, दिनांक १९ मई २०१७ को (गया
समयानुसार) दिन में ११बजकर ३९ मिनट से विरोधकृत नामक सम्वत्सर का प्रवेश हो जायेगा, परन्तु वर्ष
पर्यन्त संकल्पादि में साधारण नामक सम्वत्सर का ही प्रयोग करना चाहिए, क्यों
कि नियम है कि वर्षप्रवेश में जो नामधारी है, वही आगे भी संकल्पित होना चाहिए। ऐसा
प्रायः हर वर्ष ही होता है।
अभी
हाल में ही कुछ बन्धुओं ने जिज्ञासा प्रकट की थी कि ये सम्वत का नाम निर्धारण किस आधार पर होता है। प्रसंगवश यहां सम्वत-नाम-वोध हेतु ज्योतिषीय
सिद्धान्त की भी चर्चा कर दे रहा हूँ।
सम्वत्सर
आनयन विधिः-
हमारे
यहां वर्ष(काल)-गणना की अनेक रीतियां हैं। अनेक प्रकार भी हैं। विक्रमी सम्वत,शक सम्वत, श्रीकृष्ण सम्वत,फसली,
हिजरी, बंगीय,ईस्वीसन् इत्यादि। ज्योतिषीय गणना में विक्रमी सम्वत और शक सम्वत की
विशेष मान्यता है। ये विक्रमी संवत की गणना महाराज विक्रमादित्य के राज्यारोहण से
की जाती है। विक्रमादित्य के राज्याभिषेक के १३५ वर्षों बाद शालिवाहन नामक राजा
हुए, जिन्होंने शकसम्वत चलाया। यानी कि शक सम्वत जानने के लिए विक्रम सम्वत में से
१३५घटाना चाहिए,तदनुसार शक सम्वत में १३५
वर्ष जोड़ने से विक्रमाब्द की जानकारी हो जायेगी। सर्वाधिक प्रचलित इस विक्रमाब्द
के क्रमशः प्रभवादि ६०
नाम दिये गये हैं। यानी प्रत्येक सम्वसर का एक अपना नाम होता है और इन क्रमिक
नामों की पुनरावृति प्रत्येक साठ वर्षों पर होती रहेगी। अब प्रश्न है कि कैसे जाना
जाय कि वर्तमान सम्वत् का क्या नाम होना चाहिए। इसके लिए मुख्यतया दो सूत्र कहे
गये हैं-
१.
शाकेन्द्रकालःपृथगाकृतिघ्नः,शशांकनंदाश्वियुगैःसमेतः। शराद्रिवस्विंदुहतःसलब्धःषष्ट्याप्तशेषे
प्रभवादयोष्टौ।। अर्थात प्रभवादि षष्ठी सम्वत्सरों में कौन सा सम्वत्सर चल रहा
है,जानने के लिए ज्ञात शालीवाहन शक को दो स्थानों पर अलग-अलग लिखेंगे। अब एक जगह
की शकसंख्या में २२ से गुणा करेंगे, और प्राप्त गुणनफल में ४२९१ को जोड़कर,फिर उस
योगफल में १८७५ से भाजित करेंगे। इससे प्राप्त लब्धि को दूसरी जगह लिखे गए शक संख्या
में जोड़ देंगे। इससे प्राप्त योगफल यदि ६० के भीतर हो तो क्रमशः गणना
करके प्राप्त उस नाम को ग्रहण करेंगे, और यदि साठ से अधिक हो तो साठ घटा कर शेष से
संवत क्रमांक का निर्धारण करेंगे।
२.इस
सम्बन्ध में दूसरा सूत्र और भी सरल है- शाकंरामाक्षि संयोज्यं षष्ठि
भागेनहर्यते । शेषंसंवत्सरंज्ञेयंलब्धंतत्परिवर्तकम्।। अर्थात सम्वत नाम ज्ञात करने के लिए शालिवाहन शक को २३
में जोड़ने से जो अंक प्राप्त हो, उसमें ६० का भाग देने से,जो शेष रहे
उसको ही सम्वत्सर जाने। उसमें एक जोड़ने से वर्तमान सम्वतसर होता है।
अब
यहां प्रसंगवश सम्वत्सर के नाम गिनाये जा रहे हैं-
प्रभवो
विभवः शुक्लःप्रमोदोथ प्रजापतिः । अंगिरा श्रीमुखो भावो युवा धाता तथैव च ।।
ईश्वरो
बहुधान्यश्च प्रमाथी विक्रमो वृषः । चित्रभानुः सुभानुश्च तारणः पार्थिवोऽव्यय ।।
सर्वजित् सर्वधारी च विरोधी
विकृतिः खरः। नंदनो विजयश्चैव जयो मन्मथदुर्मुखौः।।
हेमलम्बी बिलम्बी च विकारी
शर्वरी प्लवः। शुभकृच्छोभनः क्रोधी विश्वावसुपराभवौ।।
प्लवंगः कीलकः सौम्यः
साधारणो विरोधकृत्। परिधावी प्रमादी च आनन्दो राक्षसो नलः।।
पिंगलः कालयुक्तश्च
सिद्धार्थी रौद्र दुर्मुती। दुम्दुभी रुधिरोद्गारी रक्ताक्षी क्रोधनः क्षयः।।
१.
प्रभव
२.
विभव
३.
शुक्ल
४.
प्रमोद
५.
प्रजापति
६.
अंगिरा
७.
श्रीमुख
८.
भाव
९.
युवा
१०. धाता
११. ईश्वर
१२. बहुधान्य
१३. प्रभावी
१४. विक्रम
१५. वृष
१६. चित्रभानु
१७. सुभानु
१८. तारण
१९. पार्थिव
२०. व्यय
२१. सर्वजित
२२. सर्वधारी
२३. विरोधी
२४. विकृति
२५. खर
२६. नन्दन
२७. विजय
२८. जय
२९. मन्मथ
३०. दुर्मुख
३१. हेमलम्बी
३२. विलम्बी
३३. विकारी
३४. शार्वरी
३५. प्लव
३६. शुभकृत
३७. शोभन
३८. क्रोधी
३९. विश्वावसु
४०. पराभव
४१. प्लवंग
४२. कीलक
४३. सौम्य
४४. साधारण
४५. विरोधकृत्
४६. परिधावी
४७. प्रमादी
४८. आनन्द
४९. राक्षस
५०. नल
५१. पिंगल
५२. कालयुक्त
५३. सिद्धार्थ
५४. रौद्र
५५. दुर्मति
५६. दुदुंभी
५७. रुधिरोद्रारी
५८. रक्ताक्षी
५९. क्रोधन
६०. क्षय
इस सम्वत् २०७४ के प्रवेश के साथ-साथ कलियुग का
५११८ वर्ष व्यतीत हो जायेगा। प्रत्येक सम्वत्सर के
एक राजा और मन्त्री हुआ करते हैं, जिनके स्वभावानुसार प्रजाजन सुख-दुःखादि भोग करती
है। इस बार के राजा बुध हैं और मन्त्री गुरु । राजा
का मंत्री के प्रति समता भाव है,किन्तु मंत्री का राजा के प्रति शत्रुभाव है ग्रहमैत्री
चक्रानुसार। फलतः उच्चशासकों के बीच आपसी मतभेद की स्थिति बनी रहने की सम्भावना
है। सामान्यतया देश में विकास कार्य प्रगति पर रहेगा,फिर भी समय-समय पर प्रजाजन
किंचित कारणों से आक्रोशित भी होती रह सकती है। जगल्लग्नानुसार लग्नेश शनि आयभाव
में विद्यमान हैं,अतः वैश्विक उन्नति तो होगी किन्तु राहु-मंगल दृष्टिसंयोग वश कुछ
राष्ट्रों में आन्तरिक उथल-पुथल की स्थिति भी बनी रहेगी। भारत का वैश्विक वर्चश्व निरंतर बढ़ता रहेगा।
कृषि,उद्योग,तकनीकि आदि का विकास होगा। कुल मिलाकर भारत की स्थिति क्रमिक रुप से
सुदृढ़ होगी।
अब
यहां आगे क्रमशः मेषादि बारहों राशि के जातकों के लिए संक्षिप्त राशिफल प्रस्तुत
किया जा रहा है। आमतौर पर सीधे
अपनी राशि जानकर फल देख लेने की परम्परा है; किन्तु इस सम्बन्ध में मैंने पिछली
बार भी कहा था,पुनः स्मरण दिला रहा हूँ— फल-विचार सिर्फ राशि से न करके, लग्न से
भी करें। जैसे- मेरी राशि कुम्भ है और लग्न सिंह। सटीक फल विचार के लिए
राशिफल-विवरण में दिए गये दोनों फलों का विचार करके निश्चय करना चाहिए। मान लिया
कुम्भ राशि का फल उत्तम है,किन्तु सिंह लग्न का फल प्रतिकूल है। ऐसी स्थिति में
निश्चयात्मक परिणाम मध्यम होगा ।
दूसरी
बात ध्यान देने योग्य यह है कि आपके नाम का प्रभाव भी सामान्य जीवन में काफी हद तक
पड़ता है। हमारे यहां विधिवत नामकरण-संस्कार की परम्परा थी। नाम सार्थक हुआ करते
थे, उनका निहितार्थ हुआ करता था; किन्तु अब तो इंगलैंड-अमेरिका के कुत्ते-विल्लयों
का नाम हम अपने बेटे-बेटियों का रखकर गौरवान्वित होते हैं। नियमतः नाम के
प्रथमाक्षर की राशि के फल का भी विचार कर लेना चाहिए। इस प्रकार त्रिकोणीय दृष्टि
से राशिफल-विचार करना सर्वोचित है।
एक और,सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य,जिसे लोग
प्रायः नजरअंदाज कर देते हैं— व्योम-मण्डल में सत्ताइस नक्षत्र और बारह राशियों के
परिक्रमा-पथ पर विचरण करते हुए सूर्यादि नवग्रह(ध्यातव्य है कि अरुण, वरुण, यम को
प्राचीन भारतीय ज्योतिष में स्थान नहीं है) भूमण्डलीय समस्त पद-पदार्थों को
प्रभावित(नियन्त्रित)कर रहे हैं। विश्व की आबादी सात अरब से भी अधिक की है। इन्हें
मात्र बारह भागों में विभाजित करके किसी ठोस फलविचार / निर्णय पर पहुँचना कितना
बचकाना(नादानी)हो सकता है? सिर्फ राशि वा लग्न के आधार पर मनुष्य मात्र को बांट
देना क्या सही और समुचित नियम हो सकता है? आपका उत्तर भी ‘कादापि नहीं’ ही होगा।
आर्थिक,सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, शारीरिक,मानसिक आदि कई मापदण्ड होंगे इन्हें
प्रभावित करने हेतु। इसके साथ ही अलग-अलग व्यक्तियों के जन्मकालिक ग्रहों की
स्थिति,तथा वर्तमान(गोचर)स्थिति आदि कई बातों पर किसी व्यक्ति का वर्तमान और
भविष्य आधृत होता है। राशि तो मात्र जन्मकालिक चन्द्रमा की स्थिति को ईंगित करता
है,और लग्न जन्मकालिक कक्षों (भावों)की सांख्यिकी मात्र है। अतः फलविचार कितना
सार्थक-कितना निरर्थक हो सकता है,आप स्वयं समझ सकते हैं। पुनः यह कहना आवश्यक नहीं
रह जाता कि राशिफल के आधार पर अपने जीवन को आशा-निराशा,प्रसन्नता-अप्रसन्नता के
झूले में हिचकोले खाने से बचावें,और अपना तात्कालिक कर्म यथोचित रीति से करने का
प्रयास करें। अस्तु।
सुविधा
के लिए ‘अबकहा चक्र-सारणी’ भी राशिफल के साथ प्रस्तुत है। इससे उन लोगों को भी लाभ
होगा, जिन्हें अपनी राशि और जन्म-समय आदि की सही जानकारी नहीं है।
विक्रम सम्वत् २०७४,शकाब्द १९३९,खृष्टाब्द २०१७-१८
{२९ मार्च २०१७ से १७ मार्च २०१८ } तक का राशिफल
बारह राशियों का क्रमानुसार फल-विचार
३.मिथुन राशि- (का,की,कु,घ,ङ,छ,के,को,हा)- मिथुन राशि वालों के लिए यह संवत्सर अपेक्षाकृत
शुभदायक रहेगा। आर्थिक,सामाजिक,पारिवारिक,व्यावसायिक कार्यों में पूर्व की अपेक्षा
अनुकूलता प्रतीत होगी। फलतः मान-सम्मान,ख्याति पर भी अनुकूल प्रभाव लक्षित होगा।
सुख-सुविधा के संसाधनों की बढ़ोत्तरी होगी। फलतः इन पर व्यय होना स्वाभाविक है।
फिर भी आय-व्यय का संतुलन प्रायः बना रहेगा। भूमि,भवन,वाहन,विविध निर्माण कार्य
आदि का भी सुन्दर संयोग प्रतीत हो रहा है। बाल-बच्चों के लिए प्रगति सूचक संकेत
हैं। वर्ष के उत्तरार्द्ध में भाइयों को शारीरिक कष्ट हो सकता है। सप्तम भाव के
प्रभावित होने के कारण पति/पत्नी के लिए वर्ष के मध्य में शारीरिक पीड़ा,चोट-चपेट,ऑपरेशन आदि की
आशंका है। (यानी मिथुन राशि वाले पुरुष की स्त्री प्रभावित होगी,एवं स्त्री का पति)।
विरोधियों की समस्या का भी सामना करना पड़
सकता है। पहला,पांचवां एवं नौवां महीना किंचित विशेष कष्टप्रद हो सकता है। (महीने
की गणना हिन्दी रीति से करें) । कटहल का पका हुआ फल मौसम में उपलब्ध हो तो एक-दो बार अवश्य खा लें। कटहल
की पत्तियों पर लड्डुगोपाल की मूर्ति को स्थापित कर नित्य पूजन करें। आशातीत लाभ
होगा। जन्मकुण्डली के अनुसार महादशा एवं अन्तर्दशापतियों की शान्ति के लिए जप-हवन
आदि नियमित करना/कराना चाहिए। ताकि विशेष लाभ हो सके। अस्तु।
४.कर्क राशि - (ही,हू,हे,हो,डा,डी,डू,डे,डो)- कर्क राशि के जातकों के लिए यह संवत् सामान्य
शुभदायक रहेगा। व्यापार में लाभ तथा भूमि सम्बन्धी कार्यों में सफलता की आशा है।
स्त्री को शारीरिक पीड़ा हो सकती है। चोट-चपेट के साथ छोटे-मोटे ऑपरेशन की आशंका
है। व्यावसायिक यात्रायें प्रायः सफल होंगी। नौकरी पेशा लोगों के लिए भी यह वर्ष
उत्तम रहेगा। वर्ष के प्रारम्भ में शत्रुपक्ष की प्रबलता दीखेगी,किन्तु क्रमशः
उत्तरार्द्ध में विजय-लाभ लब्ध होगा। पहले से रुग्ण चले आ रहे कर्कराशि वालों के
स्वास्थ्य में सुधार होगा। अन्य विविध रुके हुए कार्यों में गतिशीलता आयेगी। लेन-देन
में सावधानी वरतनी चाहिए। वर्ष के उत्तरार्द्ध में भूमि-विवाद का सामना भी करना
पड़ सकता है। वर्ष का दूसरा,छट्ठा और दसवां महीना किंचित कष्टदायक हो सकता है।
पलाश के चार बीज लाल कपड़े में वेष्ठित(बांध कर) ताबीज की तरह धारण करें। पलास की
लकड़ी और गोघृत से सोमवार की रात्रि में विधिवत हवन करें। इन उपचारों से बड़ी
शान्ति मिलेगी,और सामयिक संकटों का निवारण होगा। सम्प्रति जारी उभयदशा पतिग्रहों की
शान्ति पर भी ध्यान देना चाहिए। अस्तु।
५.सिंह राशि - (मा,मी,मू,मे,मो,टा,टी,टू,टे)- सिंह राशि वालों के लिए यह संवत्सर सामान्य
शुभदायक रहेगा। वात-व्याधि,उदरशूल आदि शारीरिक कष्ट झेलने पड़ सकते हैं। स्त्री का
स्वास्थ्य प्रतिकूल रह सकता है। तदनुसार सिंहराशि वाली स्त्री के पति का स्वास्थ्य
प्रभावित रहेगा। जिसमें खास कर निम्नांगों की समस्या हो सकती है। सुख-सुविधा के
संसाधनों पर व्ययाधिक्य की स्थिति बनी रहेगी,जिसके कारण किंचित सुखद चिंता बनी
रहेगी। वर्षान्त तक पूर्व नियोजित कार्यों में आशातीत सफलता मिलने के आसार हैं।
विरोधियों से सन्धिवार्ता सफल हो सकती है। नौकरी पेशा लोगों की उन्नति की आशा है। वर्ष
का तीसरा,आठवां और बारहवां महीना किंचित कष्टकारक हो सकता है। अच्छा होगा कि इन
महीनों में कोई नयी योजना पर अमल न करें। विविध कष्टों के निवारण के लिए शिव एवं
हनुमद् आराधना शान्तिदायक होगा। वट वृक्ष का वरोह(ऊपर से नीचे की ओर लटकती जड़ें) जल
में घिस कर तिलक लगायें। वरोह का छोटा टुकड़ा ताबीज में भर कर धारण करना भी
लाभदायक होगा। जन्मकुण्डली के अनुसार महादशा एवं अन्तर्दशापतियों की शान्ति के लिए
जप-हवन आदि नियमित करना/कराना चाहिए। ताकि विशेष लाभ हो सके। अस्तु।
६.कन्या राशि- (टो,पा,पी,पू,ष,ण,ठ,पे,पो)- कन्या राशि वालों के लिए यह संवत्सर सामान्य शुभाशुभ रहेगा।
ध्यातव्य है कि शनि की लघुकल्याणी(अढ़ैया) का प्रभाव शुरु हो गया है, इसके
फलस्वरुप व्यर्थ की चिन्ता,भागदौड़,परेशानी,आर्थिक रुप से किंचित क्षति,पारिवारिक
कलह-विवाद,मित्रों से वैर आदि का सामना करना पड़ सकता है। बाल-बच्चों को शारीरिक
कष्ट हो सकता है। अध्ययन-अध्यापन में विविध वाधायें आ सकती हैं। नेत्र-पीड़ा हो
सकती है। अन्य संघातिक स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है। दाम्पत्य जीवन किंचित
कटुतापूर्ण रह सकता है। प्रवासी जीवन व्यतीत हो सकता है। किसी सगे-सम्बन्धी का
वियोग हो सकता है। वर्ष के पूर्वार्द्ध की
अपेक्षा उत्तरार्द्ध अधिक कष्टप्रद हो सकता है। व्यापार में स्वल्प लाभ के आसार
हैं। धार्मिक कार्यों में वाधायुक्त सफलता मिल सकती है। वर्ष के तीसरे,सातवें और
ग्यारवें महीने अधिक प्रतिकूल हो सकते हैं,अतः इन महीनों में कोई नयी योजना न
बनायें। शनि की आराधना यथा सम्भव करना लाभदायक होगा। आम के कच्चे और पके फलों को
ब्राह्मण,भिखारियों और आत्मीय जनों में बांट कर सबसे अन्त में स्वयं भी खा लें।
अद्भुत लाभ होगा। सम्भव हो तो आम के वृक्ष में नियमित जल डालें। यह भी आपके लिए
लाभदायक होगा। जन्मकुण्डली के अनुसार महादशा एवं अन्तर्दशापतियों की शान्ति के लिए
जप-हवन आदि नियमित करना/कराना चाहिए। ताकि विशेष लाभ हो सके। अस्तु।
७.तुला राशि- (रा,री,रु,रे,रो,ता,ती,तू,ते)- तुला राशि वालों के लिए यह सम्वत् सामान्य शुभदायक रहेगा। ज्येष्ठ
महीने के शुक्ल पक्ष के पूर्वार्द्ध से मानसिक,शारीरिक,आर्थिक कष्ट झेलने पड़ सकते
हैं। चोट-चपेट की भी आशंका बनी रहेगी। स्वास्थ्य जनित वाधाओं के कारण प्रगति के
कार्यों में भी रुकावटें आयेंगी। भाई-बन्धुओं को भी कष्ट झेलना पड़ सकता है। वाहन
दुर्घटना की आशंका है। वाहन मालिकों को विशेष सावधानी वरतनी चाहिए। वाहन चोरी का
भी योग दीख रहा है। सन्तान पक्ष से निराशा होगी। उनके अनुकूल कार्य वाधित होंगे।
पारिवारिक कलह,तनाव की स्थिति बनी रह सकती है। नौकरी पेशा लोगों को तथा व्यापारी
वर्ग को लाभ मिलने की सम्भावना है। माता-पिता की योजनायें असफल हो सकती हैं। वर्ष
के तीसरे,छठे और दसवें महीने किंचित कष्टप्रद होंगे, अतः इन महीनों में कोई नयी
योजना न बनायें। मौलश्री(बकुल) के पुष्प
उपलब्ध हों तो उन्हें भगवान विष्णु (राम, कृष्णादि किसी विग्रह) पर अर्पित करें।
मौलश्री की छाल को चूर्ण बनाकर ताबीज में भरकर धारण करें। विशेष लाभ होगा। जन्मकुण्डली
के अनुसार महादशा एवं अन्तर्दशापतियों की शान्ति के लिए जप-हवन आदि नियमित करना/कराना चाहिए। ताकि विशेष लाभ हो
सके। अस्तु।
८.वृश्चिक राशि- (तो,ना,नी,नू,ने,नो,या,यी,यू)- वृश्चिक राशि वालों के लिए यह वर्ष प्रायः कष्ट और चिन्तायुक्त ही रहने की आशंका है।
हालाकि लम्बे समय से चली आ रही शनि की
साढ़ेसाती का उतरता हुआ दौर अब प्रारम्भ हो चुका है,इस कारण पहले की अपेक्षा काफी
राहत महसूस होगी। लम्बित कार्यों और स्थितियों में यत्किंचित सुधार प्रतीत होगा।
फिर भी आर्थिक कष्ट, पारिवारिक अशान्ति,कलल, विवाद, मित्रवैर, प्रियजन वियोग,भाईयों
को चोट-चपेट,दुर्घटना आदि की आशंका बनी रह सकती है। किन्तु इन सबके बावजूद सामाजिक
प्रतिष्ठा के साथ साथ प्रभावशाली कार्यों को करने का अवसर भी मिलेगा,जिससे
सुख-शान्ति मिलेगी। माता-पिता को शारीरिक कष्ट झेलना पड़ सकता है। भूमि, भवन, वाहन
आदि से सम्बन्धित कार्यों में धन-व्यय होगा, जिससे अर्थभार के चलते मानसिक तनाव बन
सकता है। बाल-बच्चों का स्वास्थ्य प्रायः अनुकूल रहेगा। अध्ययन-अध्यापन में किंचित
बाधायें आ सकती हैं। दाम्पत्य जीवन प्रायः सुखमय होना चाहिए। व्यापार और नौकरी
पेशा वालों को स्वल्प लाभ के आसार हैं। कार्यक्षेत्र में परिवर्तन वा स्थानान्तरण
का भी योग दीख रहा है। वर्ष का पहला,पांचवां और नौवां महीना किंचित कष्टकर हो सकता
है। ध्यातव्य है कि मास-गणना हिन्दी रीति से करें- चैत्रादिक्रम से। इन महीनों में
कोई नयी योजना पर कार्यान्वयन न करें। शनि की साढ़ेसाती का समुचित शमन करके उचित
लाभ प्राप्ति हेतु शनि की यथोचित आराधना- जप,हवन,पाठ आदि करते रहना चाहिए। इस बात
का ध्यान रखें कि जिनकी जन्म कुंडली में शनि उच्च के होकर शुभस्थानों में बैठें
हों उन्हें शनि की शान्ति हेतु हनुमान जी की आराधना नहीं करनी चाहिए,वल्कि सीधे
शनि की आराधना ही श्रेयस्कर है। ध्यातव्य
है कि वर्ष के अन्दर शनि की वक्री-मार्गी गति
परिवर्तन के कारण साढ़ेसाती का प्रभाव किंचित बढ़ेगा और घटेगा भी,किन्तु इससे
विशेष चिन्ता नहीं करनी चाहिए। अपना सामान्य प्रयास जारी रखें। शान्ति-लाभ होगा। खैर
की लकड़ी और घी से मंगलवार को दोपहर में यथोचित हवन करें। पान यदि खाते हों तो
कत्था अधिक खायें। इन उपचारों से यथोचित लाभ मिलेगा। तात्कालिक
महादशा, अन्तर्दशादि के ग्रहों का उपचार भी साथ साथ अवश्य करना चाहिए,ताकि विशेष
लाभ हो।
अस्तु।
९.धनु राशि - (ये,यो,भा,भी,भू,ध,फ,ढ,भे)- धनु राशि वालों के लिए यह संवत्सर प्रायः कष्ट और चिन्ताओं से घिरा हो
सकता है। शनि के संचरण से साढ़ेसाती का प्रभाव जारी रहेगा, क्यों कि शनि का मध्य
पाद इस राशि पर आरुढ़ हो चुका है। वर्ष के अन्दर इनका वक्री-मार्गी संचरण भी
होगा,जिसके कारण परेशानियां कमोवेश होती प्रतीत होंगी। फिर भी कुल मिलाकर शनि का
गहरा दुष्प्रभाव बना ही रहेगा। निरर्थक दौड़धूप,मानसिक तनाव, परेशानी, सन्ताप, उद्विग्नता,आर्थिक-शारीरिक क्लेश आदि प्रायः
वर्ष पर्यन्त झेलने पड़ेंगे। विशेष कर उदर व्याधि की आशंका है। वर्ष के प्रारम्भ
में चोट-चपेट भी लग सकता है। भाइयों को भी शारीरिक पीड़ा हो सकती है। माता-पिता का
स्वास्थ्य भी प्रतिकूल रह सकता है। अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में किंचित प्रगति
के आसार हैं। किसी निकट सम्बन्धी का वियोग भी झेलना पड़ सकता है। व्यापारिक
कार्यों में भी अवरोध प्रतीत हो रहा है। शनि की साढ़ेसाती का समुचित शमन करके उचित
लाभ प्राप्ति हेतु शनि की यथोचित आराधना- जप,हवन,पाठ आदि करते रहना चाहिए।
ध्यातव्य है कि वर्ष के अन्दर शनि की
वक्री-मार्गी गति परिवर्तन के कारण साढ़ेसाती का प्रभाव किंचित बढ़ेगा और
घटेगा भी, किन्तु इससे विशेष चिन्ता नहीं करनी चाहिए। अपना सामान्य प्रयास जारी
रखें। शान्ति-लाभ अवश्य होगा। सन्तान सुख
का सुखद योग दीख रहा है। वर्ष का चौथा,आठवां और बारहवां महीना किंचित कष्टकारक हो
सकता है। अच्छा होगा कि इन महीनों में कोई नयी कार्य-योजना न बनायें। हल्दी का तिलक (स्त्रियों के लिए पीला सिन्दूर का व्यवहार) लाभदायक होगा। अपने
प्रिय देवता की आराधना करते रहें। विशेष कष्ट का निवारण अवश्य होगा। पीपल की लकड़ी
और घी से प्रत्येक गुरुवार को यथोचित होम किया करें।
इससे काफी राहत मिलेगी। जन्म कुंडली के तात्कालिक महादशा,अन्तर्दशादि के ग्रहों का
उपचार भी साथ साथ अवश्य करना चाहिए,ताकि विशेष लाभ हो। अस्तु।
१०.मकर राशि- (भो,जा,जी,खी,खू,खे,खो,गा,गी)- मकर राशि वालों के लिए यह संवत्सर प्रायः कष्ट और चिन्ताओं से घिरा हो सकता
है। शनि के संचरण से साढ़ेसाती का प्रभाव जारी रहेगा, क्यों कि शनि का अग्र पाद इस
राशि पर आरुढ़ हो चुका है। इस प्रकार मकर राशि वालों का शिरोभाग शनि के चपेट में
आगया है। वर्ष के अन्दर इनका वक्री-मार्गी संचरण भी होगा, जिसके कारण परेशानियां
कमोवेश होती प्रतीत होंगी। फिर भी कुल मिलाकर शनि का गहरा दुष्प्रभाव बना ही
रहेगा। निरर्थक दौड़धूप,मानसिक तनाव,परेशानी, सन्ताप, उद्विग्नता, आर्थिक-शारीरिक
क्लेश आदि प्रायः वर्ष पर्यन्त झेलने पड़ेंगे। विशेषकर मानसिक संताप अधिक झेलना
पड़ सकता है। किसी बात में अनिर्णय की स्थिति बनी रह सकती है। हालाकि कोई निर्णय
बहुत सोच-विचार कर और अनुभवियों की राय से ही करनी चाहिए। क्यों कि शनि के प्रभाव
से गलत निर्णय(गलत कदम)की अधिक आशंका है। शारीरिक व्याधि- विशेष कर उदर व्याधि की
आशंका है। पाचनतन्त्र की विशेष समस्या हो सकती है। गले और गर्दन सम्बन्धी समस्या
भी सता सकती है। हड्डियों की समस्या भी सता सकती है। न्यायालय सम्बन्धी कार्यों में अकारण घसीटे जा सकते हैं। पूर्व से चले आ रहे विवादों(न्यायिक मामलों) में
प्रतिकूल स्थिति झलक रही है। व्यर्थ के खर्चे अधिक होंगे,जिनके कारण तनाव बना
रहेगा। भूमि विवाद में भी उलझना पड़ सकता है।
साझेदारी के कार्यों में सोच-समझकर कदम बढ़ाना चाहिए, अन्यथा नुकसान और
झगड़े खड़े होंगे। इस वर्ष में कोई नया कार्य तो कदापि न करें। विशेष कर वर्ष का
तीसरा, सातवां और ग्यारहवां महीना तो विशेष विचारणीय है। शनि की साढ़ेसाती
का समुचित शमन करके उचित लाभ प्राप्ति हेतु शनि की यथोचित आराधना- जप, हवन,पाठ आदि
करते रहना चाहिए। ध्यातव्य है कि वर्ष के अन्दर शनि की वक्री-मार्गी गति परिवर्तन के कारण साढ़ेसाती
का प्रभाव किंचित बढ़ेगा और घटेगा भी, किन्तु इससे विशेष चिन्ता नहीं करनी चाहिए।
अपना सामान्य प्रयास जारी रखें। शान्ति-लाभ अवश्य होगा। माता-पिता
को धार्मिक कार्य करने का अवसर मिलना चाहिए- ऐसा प्रतीत होता है। शीशम(विशेष कर
काला शीशम) के फूल शीशे के पात्र में भर कर घर में सुविधानुसार किसी ऐसे स्थान
पर रखे दें जहां नित्य उन पर दृष्टि पड़
सके। सड़ने से पहले उसे विसर्जित कर दूसरा फूल रख दें। अद्भुत लाभ होगा। तात्कालिक
महादशा,अन्तर्दशादि के ग्रहों का उपचार भी साथ साथ अवश्य करना चाहिए, ताकि विशेष
लाभ हो। अस्तु।
११.कुम्भ राशि- (गू,गे,गो,सा,सी,सू,से,सो,दा)- कुम्भ राशि वालों के लिए यह सम्वत्सर सामान्य रहने की आशा
है। परिवार में मांगलिक कार्य होने का शुभयोग प्रतीत हो रहा है। आर्थिक स्थिति
किंचित कमजोर हो सकती है। न्यायिक मामलों में व्यर्थ का धन व्यय हो सकता है।
माता-पिता को धार्मिक कार्य तीर्थयात्रादि का लाभ मिल सकता है। पत्नी/पति का स्वास्थ्य किंचित
बाधायुक्त रहने की आशंका है। मित्रों, कुटुम्बियों, भाइयों आदि से अकारण विरोध का
सामना करना पड़ सकता है। वर्ष को उत्तरार्द्ध में व्यापारिक कार्यों में प्रगति
होगी। पूर्व में फंसे हुए धन की प्राप्ति का संयोग भी प्रतीत हो रहा है। मनोवांछित पद-प्रतिष्ठा में व्यवधान आ सकता है।
आय की तुलना में व्ययाधिक्य के कारण मानसिक क्लेश हो सकता है। विद्यार्थी वर्ग को
समुचित लाभ होगा। परीक्षा में अच्छे अंक मिल सकते हैं। जमीन-जायदाद की समस्या सुलझ
सकती है। भूमि सम्बन्धी नयी योजना सफल हो सकती है। ध्यातव्य है कि वर्ष का
दूसरा,छठा और दसवां महीना किंचित कष्टप्रद है, अतः इन महीनों में कोई नयी योजना न
बनायें। सम्भव हो तो घर के पश्चिम दिशा में शमी का पौधा स्थापित करें और उसकी
पत्तियां भगवान भोलेनाथ को नित्य अर्पित करें। शमी का फूल उपलब्ध हो तो उसे भी शिवार्पण
करना चाहिए। शमी की लकड़ी और घी से शनिवार को संध्या समय हवन करने से विशेष लाभ
होगा। शिव की आराधना लाभदायक होगी। तात्कालिक
महादशा,अन्तर्दशादि के ग्रहों का उपचार भी साथ साथ अवश्य करना चाहिए,ताकि विशेष
लाभ हो। अस्तु।
१२.मीन राशि-(दी,दू,थ,झ,ञ,दे,दो,चा,ची) - मीन राशि वाले लोगों के लिए यह संवत्सर प्रायः शुभदायक
रहेगा। नवीन कार्यों का शुभारम्भ योग दीख रहा है। भाइयों की भी प्रगति का योग है।
दाम्पत्य जीवन प्रायः सुखमय होगा। सामाजिक
प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी होनी चाहिए। परिवार में शुभकार्यादि सम्पन्न होंगे। आय के
नये स्रोत बनेंगे। धन-धान्य का बाहुल्य तो रहेगा, किन्तु व्यय भार किंचित बना रह
सकता है। सम्वत्सर के मध्य में चोट-चपेट की आशंका है। शत्रु पक्ष पराजित होंगे।
साझेदारी के कार्यों में किंचित विवाद हो सकता है। नौकरी पेशा वाले लोगों के
स्थानान्तरण का योग दीखता है, किन्तु मनोनुकूल स्थान न मिलने की आशंका है, जिसके
कारण मानसिक क्षोभ बना रहेगा। हो सकता है परिवार से थोड़ा अलग भी रहना पड़े। वर्ष
का दूसरा, पांचवां और नौवां महीना किंचित कष्टप्रद होगा। अतः उन महीनों में कोई
नवीन कार्य की योजना न बनावें और न पहल करें। नित्य वटवृक्ष में जल डालना,परिक्रमा करना,तथा
वरोह वा वट-पत्र को तकिये में डाल कर सोने से अद्भुत लाभ होगा। तात्कालिक
महादशा,अन्तर्दशादि के ग्रहों का उपचार भी साथ साथ अवश्य करना चाहिए,ताकि विशेष
लाभ हो। अस्तु।
नोटः- 1) अपने जन्मांक चक्रानुसार वर्तमान में
जारी महादशा एवं अन्तर्दशा पतियों की शान्ति भी अवश्य करानी चाहिए, ताकि राशिफल के
दुष्प्रभावों से बचा जा सके और अच्छे प्रभावों का सम्यक् लाभ लिया जा सके।
2) सिद्ध नवग्रहयन्त्र या अन्य
आवश्यक यन्त्र आप चाहें तो मेरे यहां से मंगवा सकते हैं। इसके नित्य पूजन से समस्त
ग्रहों की शान्ति और प्रसन्नता प्राप्त होती है।
3) धारण करने हेतु विभिन्न राशियों के यन्त्र
भी अलग-अलग उपलब्ध हैं।
----(इत्यलम्)----
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