शाकद्वीपीयब्राह्मणःलघुशोधःपुण्यार्कमगदीपिका- तेइसवां भाग

गतांश से आगे...

चौदहवें अध्याय का दूसरा भाग--

प्रश्नांक — यदि ये कहें कि पुर के अनुसार कुलदेवता/देवी का निर्धारण हुआ है, फिर एक ही पुर-गोत्र में विभिन्न परम्परा क्यों?
            इसके कई कारण हो सकते हैं। यथा—
1.परिवेश परिवर्तन – पारिवारिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, भौगोलिक, प्राकृतिक आदि अनेक कारणों से समयानुसार लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर स्थायी या अस्थायी रुप से बसना पड़ा। स्वाभाविक है कि इसका प्रभाव व्यक्ति की उपासना पर भी पड़ेगा । कभी-कभी ऐसा भी हुआ है कि स्थान तो पूर्ववत ही रहा, किन्तु सारी विधि-व्यवस्था चरमरा गयी। लम्बें इतिहास में झांकें तो हम पाते हैं कि भारतवर्ष की सीमा बहुत सिकुड़ी है। दुनिया का सर्वाधिक आधुनिक और विकसित कहा जाने वाला अमेरिका हमारे भारतवर्ष की तुलना में बिलकुल बच्चा जैसा है। अभी इसकी उमर ही कितनी हुयी है ! महज कुछ शतक ही तो । थोड़ा और पीछे जायें, तो पाते हैं कि सनातन धर्म की एकछत्रता थी - पृथ्वी के बहुत बड़े हिस्से पर। या कहें, एकमात्र धर्म था सर्वत्र(सातों द्वीपों में)जो सनातन धर्म के नाम से अभिहित था। सनातन का अर्थ ही होता है- सदा विद्यमान रहने वाला ।  सृष्टि के बहुत बाद में, समयानुसार कई-कई धर्म और सम्प्रदाय पैदा होते गए । धर्मान्तरण भी काफी जोर-शोर से हुआ । आततायियों और धर्मांधों से प्राण रक्षा के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ा । इस प्रकार, सनातनियों की संख्या और उनका क्षेत्र घटता गया बहुत तेजी से। मग भी इसके शिकार हुए- इसमें कोई संशय नहीं।

2.कुल परिवर्तन— प्रायः लोग अपना कुल-गोत्र(मूलस्थान) छोड़कर किसी कुटुम्बी (ससुराल,ननिहाल या अन्य)के यहां जा बसते हैं। उस नये कुल में उन्हें सम्पत्ति मिल जाती है। स्वाभाविक है कि सम्पत्ति के साथ-साथ उस कुल के देवता की सेवा भी तो करनी ही होती है न। अब उस व्यक्ति के सामने समस्या आती है कि किस कुल के देवता की पूजा करे- अपना या प्राप्त नया ? ऐसे में पुरनाम-गोत्र तो उसका पुराना ही रह जाता है,किन्तु देवता सम्बन्धी सभी बातें बदल जाती हैं।

3.अज्ञान—  अधिकांश लोगों को पता ही नहीं होता कि उनके कुलदेवता कौन हैं, उनकी आकृति कैसी है, पूजा-विधान क्या है? इत्यादि।

4.प्रलोभन— किसी के द्वारा दिया गया प्रलोभन या स्वयं में जागा प्रलोभन भी मूल साधना से दूर घसीट ले गया। विशुद्ध सात्त्विक साधक सूर्योपासक भी मदिरा-मांस का व्यवहार करने लगे- वाममार्गीय तथाकथित चमत्कारों के चक्कर में पड़ कर।
5. स्मृतिलोप—कालान्तर में स्मृति लोप भी कारण बना । पुरानी पीढ़ी ने नयी पीढ़ी को अपना अनुभव-ज्ञान साझा नहीं किया समय पर।

               इनके अतिरिक्त अन्य कारण भी हो सकते हैं।
क्रमशः...

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