शाकद्वीपीयब्राह्मणःलघुशोधःपुण्यार्कमगदीपिका- पचीसवां भाग

गतांश से आगे...

चौदहवें अध्याय का चौथा भाग...

प्रश्नांक ५.  साम्ब को रोगमुक्ति क्या आयुर्वेदिक उपचार से मिली?


            प्रायः लोग ये जानते हैं, और ऐसा ही कह कर स्वयं को गौरवान्वित करते हैं कि साम्ब को रोगमुक्ति दिलाया शाकद्वीपियों ने। आरोग्य प्राप्ति हेतु सूर्योपासना से अच्छा और क्या हो सकता है ! किन्तु यह उपासना साम्ब ने स्वयं की। सूर्योपासना में किसी सहायकीय भूमिका की आश्यकता नहीं पड़ी उन्हें। वस्तुतः साम्ब तो सूर्योपासना करके स्वयं रोगमुक्त (कुष्ठरोग) हो चुके थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य ने दर्शन दिया। रोगमुक्त किया और यह आदेश दिया कि तुम मेरी प्रतिमा स्थापित करो। इस सम्बन्ध में साम्बपुराण में वृहत् चर्चा है। अन्य पुराणों में भी यत्किंचित प्रसंग मिलते हैं इस विषय के । आगे, प्रतिमा-स्थापन क्रम में पुण्याह वाचनादि कर्म के काफी बाद यानी जब प्रतिमा में सूर्यतेज अवतरित होने की स्थिति आयी, तब स्थापन यज्ञ में लगे हुए जम्बूद्वीपीय विप्र तेज-रश्मि-उष्मा से विकल होकर भाग खड़े हुए। और ऐसी विकट परिस्थिति में पुनः नारद का संकेत (सुझावादेश) मिला शाकद्वीप से मग-साधकों को लिवा लाने का । ऐसा भी पौराणिक प्रसंग मिलता है कि स्वयं सूर्य ने ही साम्ब को आदेश दिया कि सूर्यांश दिव्यजन्मा सूर्योपासक को बुला कर स्थापना कराओ,जो कि एकमात्र शाकद्वीप में ही उपलब्ध हैं। मूलतः सर्वविद्या निष्णात शाकद्वीपीय सिर्फ सूर्योपासक ही नहीं, प्रत्युत सूर्यतन्त्र-साधक हैं । और इसी रुप में इनकी पहचान होनी चाहिए।
क्रमशः... 

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