शाकद्वीपीयब्राह्मणःलघुशोधःपुण्यार्कमगदीपिका-- उनीसवां भाग

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शाकद्वीपीयब्राह्मणःलघुशोधःपुण्यार्कमगदीपिका का  उनीसवां भाग

                         (तेरहवें अध्याय का दूसरा भाग)



पुनः मूल विषय(शक-शाक सम्बन्ध) पर आते हैं—
शक शब्द का एक अर्थ होता है दिनों की गणना। इस प्रकार दिनादि की गणना करके वार्षिक पञ्चाङ्ग बनाने में दक्ष शाकद्वीपी ही माने गए हैं। गणित में १ का चिह्न कुश है। १-१ को जोड़ कर निर्दिष्ट विन्दु से दिन संख्या (अहर्गण) निकाली जाती है, वह कुशों का समूह होने से शक कहलाता है। सौर-वर्ष-मास द्वारा दिन गणना में सुविधा होती है, अतः गणना के लिये जो सौर वर्ष की पद्धति प्रयुक्त होती है उसे शक कहते हैं। कमलाकर भट्ट ने गणना के लिये शालिवाहन शक तथा निर्णय सिन्धु में पर्व निर्णय के लिये विक्रम सम्वत् का व्यवहार किया है। शालिवाहन से पूर्व ब्रह्मगुप्त तथा विष्णुमिश्र ने ६१२ ई.पू.( ऐसा भी प्रमाण मिलता है कि ये वराहमिहिर के नाम से विख्यात थे। हालाकि इससे नामोपाधि की पुनरावृति हो रही है और काल संशय भी हो रहा है।), चाप-शक का व्यवहार किया है। पर्व निर्णय के लिये सौर- चान्द्र वर्षों का समन्वय होता है तथा इसके अनुसार समाज चलता है, अतः इसे सम्वत्सर कहते हैं। सम्वत्सर तीन प्रकार के हैं- सृष्टि, कलि और विक्रम- क्योंकि इन कालों में आचार संहिता बनी थी। अलबरूनी के अनुसार मध्य एशिया की किसी भी शक जाति ने अपना कैलेण्डर शुरु नहीं किया था (क्रोनोलौजी औफ एन्शियेन्ट नेशन्स)। वे ईरान या सुमेर के वर्षों का प्रयोग करते थे। यह भारत की किसी भी पुस्तक या इतिहास पढ़ने से बिल्कुल स्पष्ट है। यदि शक आक्रमणकारियों द्वारा वर्ष आरम्भ होता तो उनका नाश करने वाले विक्रम और शालिवाहन ने शक वर्ष भी समाप्त कर दिया होता। स्वयं शालिवाहन शक नहीं चलाते। शकों का अधिकार केवल उत्तर पश्चिम भाग में कुछ समय के लिये था। उनका शक होने पर इसका व्यवहार कम्बोडिया या फिलीपीन (लुगुना) के लेखों में नहीं होता या भारत के ही दक्षिण में नहीं होता। अक्षांश-देशान्तर गणना या स्वास्थ्य के लिये सूर्य का दर्शन किया जाता है, अतः शाकद्वीपी ब्राह्मण सूर्य पूजा करते थे।
शाक का एक अर्थ वनस्पति भी होता है। इनसे चिकित्सा करने वाला शाकद्वीपी है। सुख्यात है कि शाकद्वीपी ब्राह्मण तन्त्र,ज्योतिष के साथ-साथ आयुर्वेद के भी ज्ञाता हैं। किन्तु इस भ्रम में न रहें कि शाकद्वीपियों ने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से साम्ब का उपचार किया था, और प्रसिद्धि पायी थी। वस्तुतः सूर्यांश मगों को ख्याति और सम्मान मिला सूर्योपासना और सूर्यतन्त्र के चमत्कार से। वैसे तो सर्वविद थे, किन्तु सूर्यतन्त्र इनकी क्रियाओं के मूल में था।

शक शब्द के कुछ और भी प्रायोगिक अर्थ भी होते हैं। प्रसंगवश जरा उन पर भी एक नजर डाल लें—
१. शक- शकाः सचन्ते समवायेन वर्तनो शक्नुवन्ति इति वा। (I) मधुकक्षिका, छत्ता, (II) मधु, समवाय बना कर रहने वाला शक्तिशाली पुरुष। सोमाय कुलुङ्गऽआर ण्योजो नकुलं शका ते पौष्णां क्रोष्टा, मायोरिन्द्रस्य गौरमृगं पिद्वो न्यङ्कुकक्कटस्ते- नुमत्यै प्रतिश्रुत्कायै चक्रवाक्॥ (वाजसनेयि २४/३२, तैत्तिरीय संहिता ५/५/१२/१, मैत्रायणी संहिता ३/१४/१३ या १७५/३)
२. शकधूमशकस्य शकृतः सम्बन्धी धूम यस्मिन् अग्नौ स शकधूमः अग्निः। तद् अभेदात् ब्राह्मणस्य अभिधीयते ।- (१) अपनी शक्ति से सबको कंपाने वाला - धुआं उड़ा दे (२) सायण के मत से वह अग्नि शकधूम है,जिसमें शकृत् (गोबर से बना गोइठा) सम्बन्धी धूम हो । (३) अग्नि के समान तेजस्वी या अग्निहोत्र करनेवाला ब्राह्मण (शाकद्वीपी ब्राह्मण) शकधूमं नक्षत्राणि यद् राजानम् अकुर्वत...(अथर्ववेद ६/१२८/१)
३. शकधूमजः - (I) शक्तिमान्, तामसः, (II) बड़बड़ाने वाला-  खलजाः शकधूमजा (अथर्व वेद ८/६/१५)
४. शकन्- (१) मल,विष्ठा— विलोहितो अधिष्ठानात् शक्नो विन्दति गोपतिम् (अथर्व १२/४/४) (२) लीद,शक्ति,अधिक सामर्थ्य— अश्वस्य त्या वृष्णः शक्ना धूपयामि देवयजने पृथिव्याः (वाजसनेयि यजु ३७/९,शतपथब्राह्मण १४/१/२/२०) स इच्छक्ना संज्ञायते (अथर्व २०/१२९/१२)
५. शकपूत- (१) शकपूत नामक एक वैदिक ऋषि, (२) शक्ति से अभिषिक्त पुरुष— अस्मिन् स्वे तच्छक्तिपूत एनः (ऋक् १०/१३२/५)
६.शकमय— शक्तिमान्- शकमयं धूममारादपश्यम् (ऋक् १/१६४/४३, अथर्व ९/१०/२५)
७. शकम्भर- शक्ति को धारण करने वाला बलवान् मनुष्य शकम्भरस्य मुष्टिहा (अथर्व ५/२२/४), दुर्गासप्तशती अध्याय ११ में शाकम्भरी देवी का एक अवतार वर्णन है। कहा जाता है कि जिस समय सैकड़ों वर्ष तक की अनावृष्टि हुयी थी (पश्चिमोत्तर भारत में २७०० से २६०० ई.पू. में सरस्वती सूख गयी, इस अवसर पर काशिराज का पार्श्वनाथ रूप में संन्यास २६३४ ई.पू.— उस समय लोगों को अन्न देने के लिये शाकम्भरी भगवती का अवतार हुआ, जिसने शाक से लोगों का भरण किया। चाहमान राजा इनके भक्त माने जाते हैं, इनका मूल स्थान कई व्यक्ति राजस्थान में मानते हैं। उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के निकट शिवालिक पहाड़ी के तिमली में शाकम्भरी मन्दिर है। शाकम्भरी का भी अपभ्रंश सहारन हो सकता है।
भूयश्च शतवार्षिक्यामनावृष्ट्यामनम्भसि । मुनिभिः संस्तुता भूमौ सम्भवाम्ययोनिजा ॥ ततः शतेन नेत्राणां निरीक्षिष्यामि यन्मुनीन् । कीर्तयिष्यन्ति मनुजाः शताक्षीमिति मां ततः॥ ततोऽहमखिलं लोकमात्मदेह समुद्भवैः । भरिष्यामि सुराः शाकैरावृष्टेः प्राणधारकैः॥ शाकम्भरीति विख्यातिं तदा यास्यामहं भुवि ॥ तत्रैव च वधिष्यामि दुर्गमाख्यं महासुरम् ॥ (दुर्गासप्तशती-अ.११) (यहां शक = साग, अन्न)
८. शकल्य- शरीर के रग-रग में व्याप्त होकर कंपाने वाला ज्वर- शकल्येषि यदि वा ते जनित्रम् (अथर्व १/२५/२)
९. शकबलि- शक्तिशाली पुरुष- अथर्व (२०/१३१/१३)
१०. शका- मक्खी- इहो शकेव पुष्यत (अथर्व ३/१४/३)
११. शक्राः (द्विवचन) – (i) शक्तिमान् स्त्री-पुरुष, (ii) अश्विद्वय अर्वाञ्चा यानं रथ्येव शक्रा (ऋक् २/३९/३)
१२. शक्रः,शक्राः - (१) शक्तिशाली आत्मा, (२) इन्द्र, (३) शक्तिशाली राजा यच्छक्र वाचमारुहन् (अथर्व २०/४९/१) अपाप शक्रस्ततनुष्टिमूहति (ऋक् ५/३४/३) शक्रः = शक्तिशाली या शत + क्रतु का संक्षेप । जो १०० अश्वमेध यज्ञ करे वह इन्द्र होता है। वर्ष क्रम से यज्ञ होते हैं, अतः इसे सम्वत्सर भी कहा है। जिसने १०० वर्ष तक प्रजापालन रूपी यज्ञ किया  (यथा—वाजपेय यज्ञ,राजसूय यज्ञ,अश्वमेध यज्ञ इत्यादि) वह इन्द्र है। १४ मुख्य इन्द्रों के नाम पुराणों में वर्णित हैं,जिन्होंने १००-१०० वर्ष शासन किये। इन्द्र पूर्वदिशा का लोकपाल कहा गया है। इनका एक नाम पाकशासन भी है, जो ब्रह्मा द्वारा दिया गया है।  पश्चिम में इन्द्र ने पाक दैत्यों का दमन किया था, अतः तभी से उनका नाम पाकशासन पड़ा । ध्यातव्य है कि यहां पाक शब्द वर्तमान प्रचलित- पवित्र अर्थ में प्रयुक्त नहीं हुआ है। जहां उन्होंने शक्ति प्रदर्शित की वह शक्र (सक्खर) है। वहां इसी नाम की हक्कर नदी है।
इस प्रकार हम पाते हैं कि शक शब्द जाति, द्वीप, ब्राह्मण, वर्ष आदि अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है ।
राजस्थान के राजपूतों ने भारत की रक्षा के लिए सबसे ज्यादा संघर्ष किया तो उनको शक और हूणों का वंशज सिद्ध करने के लिए कर्नल टाड ने अधिकांश मूल अभिलेख जला कर राजस्थान का एक नया इतिहास ही लिख डाला। इसी प्रकार अंग्रेज बेचैन थे कि शाकद्वीपी ब्राह्मणों ने कभी विदेशी आक्रमणकारियों का साथ क्यों नहीं दिया। अतः इनको विदेशी सिद्ध करने के लिए व्यापक जालसाजी हुयी उनके द्वारा । ज्ञातव्य है कि सभी शक जातियां मध्य एशिया तथा दक्षिण यूरोप की थीं।
           पुनः स्मरण दिलाना आवश्यक प्रतीत होता है कि शक मूलतः जम्बूद्वीप के वासी हैं और शाक शाकद्वीप के । अतः शकों को शाक समझने की भूल न की जाये। 

क्रमशः..


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