शाकद्वीपीयब्राह्मणःलघुशोधःपुण्यार्कमगदीपिकाःउनतीसवां भाग

गतांश से आगे...

पन्द्रहवें अध्याय का तीसरा भाग--

३.अशौच मुण्डन— अशौच कई प्रकार के होते हैं, जिनमें जननाशौच और मरणाशौच प्रधान है। शवगमन, प्रसूतिगृहगमनादि भी अशौच में आता है। अलग-अलग अशौचों में मुण्डन का समय (अवधि) भिन्न-भिन्न निर्धारित किया गया है शास्त्रों में। जननाशौच (घर में बच्चे का जन्म) में नौवें दिन और मरणाशौच में दसवें दिन सांगोपांग मुण्डन अति आवश्यक है। ध्यातव्य है पितृजीवी श्मश्रु(मूंछ)का मुंडन न करावें। तथा सभी के लिए नियम है कि अशौच निवार्णार्थ मुण्डन में पार्श्व और कच्छ(गुप्तांगों के बाल)का छेदन न करे (पार्श्वकच्छ विवर्जयेत्...गरुड़पुराण) अशौच मुण्डन के लिए सपिण्ड और सप्तकुल के आधार पर सीमा निर्धारित की गयी है।
   यहां मगबन्धुओं से वस इतना ही आग्रह है कि स्वयं को संस्कृत रखने के लिए अशौच जनित मुण्डन संस्कार का यथासम्भव पालन अवश्य करें। ध्यान रखें- मुण्डन सम्पूर्ण मुण्डन होता है। दाढ़ी बनवा लेना,केश थोड़ा छंटवा लेना अशौच मुण्डन नहीं है।  मुण्डनोपान्त यज्ञोपवीत परिवर्तन भी अनिवार्य है।

.श्राद्धीय भोजन परित्याग — सच पूछा जाये तो किसी भी प्रकार के यज्ञीय भोजन से परहेज करना चाहिए। इस बात का सदा स्मरण रखें कि यज्ञीय भोजन करके यज्ञकर्ता के शुभाशुभ कर्मों का भागीदार बनना पड़ता है । उसमें भी किसी व्यक्ति के मृत्योपरान्त कराया जाने वाला श्राद्धीय भोजन तो बिलकुल ही त्याज्य है; क्यों कि मृतप्राणी और श्राद्धकर्ता दोनों के कर्मफल का समावेश होता है उसमें। पितृमेलन के पश्चात् के ब्राह्मणभोजन की तुलना में वार्षिकी श्राद्ध निमित्त भोजन न्यून दोषयुक्त है। अन्य कालों में किया गया—तीर्थश्राद्ध, गया- श्राद्धादि जनित भोजन क्रमशः न्यून-न्यून दोषपूर्ण हैं। पौरोहित्य कर्म में रत मगों को भी इन सब बातों का ध्यान रखना चाहिए। सच पूछें तो प्रायश्चित गायत्री-क्रिया उन्हीं के लिए निर्धारित किया गया है। शौकिया या लापरवाही पूर्वक नियम की अवहेलना प्रायश्चित के दायरे में कदापि नहीं आ सकता। (इस सम्बन्ध में पूर्व अध्याय में भी थोड़ी चर्चा हो चुकी है)

     अतः सूर्यांशों को ऊर्जस्वित रहना है यदि तो इनका पालन करना होगा, भले ही सामाजिक तौर पर थोड़ी असामाजिकता झलके। ध्यातव्य है कि सगोत्र, सपिण्ड (विशेष कर तीन पीढ़ी तक) का श्राद्धीय (और यज्ञीय) भोजन कदापि त्याज्य नहीं है। वो तो पूर्वज का प्रसाद है। आशीर्वाद है। उसे हर हालत में ग्रहण करना ही चाहिए।
क्रमशः...

Comments