शाकद्वीपीयब्राह्मणःलघुशोधःपुण्यार्कमगदीपिकाःभाग उनचालीसवां

गतांश से आगे...
सत्रहवें अध्याय का चौथा भाग...

                               — : अथ सिद्धेश्वरी स्तोत्रम् :
सिद्धेश्वर्य्यैः नमस्तुभ्यं नमस्ते च शिवप्रिये ।
धूम्राक्ष्यै च विरुपायै घोरायै च नमो नमः ।।।।
पञ्चास्यायै शुभास्यायै चन्द्रास्यायै च वै नमः ।
वरदायै वराहायै कुर्मायै च पुनर्नमः ।।।।
नरवीरार्द्धदेहायै त्रिनेत्रायै नमो नमः ।
लीलालकशिखण्डायै विश्वायै च पुनर्नमः ।।।।
कव्यरुपायै हव्यायै रुद्रजाप्यै नमोनमः ।
मुण्डायै चण्डमुण्डायै दिग्वस्त्रायै नमोनमः ।।।।
गिरीशायै सुरेशायै विश्वेशायै च वै नमः ।
विरुपायै स्वरुपायै ईशान्यायै नमोनमः ।।।।
सिंहासनायै सिंहायै सोमायै सततं नमः ।
शाकद्वीप निवासायै शाकायै सततं नमः ।।।।
भक्ते शोभान्तरुपायै अथर्वणायै नमो नमः ।
ऋक् साम यजु रुपायै शाकद्वीप प्रिये नमः ।।।।
शाकद्वीप कुलोद्धार कारिण्यै च नमो नमः ।
शाकद्वीप प्रियायै च कुलदेव्यै नमो नमः ।।।।
अष्टादश कुल पूज्यायै सिद्धिदायै नमो नमः ।
सिद्धिदा श्रावणे मासे फाल्गुने सर्वकामिका ।।।।
पुष्पमालार्चिता देवी सर्वदा निश्चितं भवेत् ।। १०।।
                    ।।श्री सनतकुमारसंहितायां सिद्धेश्वरीस्तोत्रम् श्रीदेव्यार्पणमस्तु।।

(नोटः-मगबन्धु(अखिल)के परम्परा-संस्कार अंक में पं.रामानुज पाठक द्वारा प्रेषित उक्त स्तोत्र में किंचित पाठभेद है,जिन्हें ऊपर रेखांकित किया गया है। यथा—धूम्राग्रायै,पंचवास्यायै,भक्ते द्दीयान्तरुपायै)

       श्री साम्बपुराण में सूर्य-साम्ब संवाद क्रम में भी एक सिद्धेश्वरी स्तोत्र है,जिसे यहां उद्धृत कर रहा हूँ—     
।।श्रीसूर्य उवाच।।
श्रृणु साम्ब महाबाहो,सिद्धा स्तोत्रमनुत्तमम् ।
विरुद्धस्यासुरगुरौः पीडा शान्ति विधायकम् ।।।।
योगिनी सिद्धिदा सिद्धा मन्त्र सिद्धि स्वरुपिणी ।
तमसा सिद्धिरुपा च दया रुपा क्षमान्विता ।।।।
सिद्धिरुपा शान्तिरुपा मेधारुपा तपस्विनी ।
पद्महस्ता पद्मनेत्रा शुक्रमाता महेश्वरी ।।।।
वरदा धनदा धन्या राजदा सुखदायिनी ।
शरदा च रमा काली प्रज्ञासागररुपिणी ।।।।
सिद्धेश्वरी सिद्धि विद्या सिद्धि लक्ष्मी च पंकजाः ।
शुक्लवर्णा श्वेत वस्त्रा श्वेतमाल्यानुलेपना ।।।।
श्वेत पर्वत संकाशा सुश्वेतस्तनमण्डला ।
कर्पूरराशि मध्यस्या चन्द्रमण्डल वासिनी ।।।।
कृशरान्न प्रिया साध्वी त्रिमधुस्था प्रियम्बदा ।
कन्या शरीरगाराम विप्रदेह विचारिणी ।।।।
चित्रान्न हस्तासुभगा परमान्नप्रियातथा ।
दशा स्वरुपा नक्षत्रा रुपातर्यामिरुपिणी ।।।।
सिद्धेश्वरी सिद्धरुपा सिद्धिदा सिद्धिरुपिणी ।
इत्येत्कथितं वत्स सिद्धास्तोत्रमनुत्तमम् ।।।।
पठनात्पाठनात् वापि गो सहस्रफलं लभेद ।
ग्रहजन्यं दशाजन्यं चक्रजं भूत सम्भवम् ।।१०।।
पिशाचोरग गन्धर्व पूतनामातृ सम्भवम् ।
दोषं विनाशमायान्ति सत्यं सत्यं न संशयः ।।११।।
                   ।।इति श्री साम्बपुराणे सूर्यसाम्ब संवादे सिद्धेश्वरी स्तोत्रम् ।।


        गुरुजनों के सानिध्य और प्राप्त विभिन्न सूचनाओं के आधार पर यहां एक और कुल देवता/देवी स्थापन विधि अंकित कर रहा हूँ। ध्यातव्य है कि यह विधि नये स्थान में स्थापना हेतु है। किन्तु नित्य,नैमित्तिक,अर्द्धवार्षिक,वार्षिकादि पूजनों में भी किंचित परिवर्तित रुप में व्यवहृत हो सकता है। मुख्यतः इस पद्धति में उरवार पुर की कुलदेवी भगवती सिद्धेश्वरी को नामित किया गया है, किन्तु नाम-मन्त्र-भेद करके अन्य कुल के मग भी इस पद्धति का उपयोग कर सकते हैं।
क्कक्रमश..

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