लोकतन्त्र का ECG
रिपोर्ट
काफ़ी
मश़क्कत के बाद किसी तरह हाथ लगा । दरअसल कोई देने को राज़ी ही नहीं हो रहा था ।
कहता था कि ये आम आदमी के लिए नहीं है । गोपनीय शाखा के भी खासमखास वाले फाइल में
छिपा कर रखा गया है इसे ।
किसी सच को उगलवाने के लिए बहुत बार
झूठ का सहारा लेना पड़ता है । हमारे यहां खाकी और काली वर्दी वाले इस कला में खास
माहिर हैं । हालाकि साक्षरता अभियान के परिणाम स्वरुप आजकल ज्यादातर लोग इस कला
में निपुण हो गये हैं । यही कारण है कि झूठ बोलने वालों को भी विशेष सावधान रहना
पड़ रहा है आजकल ।
मैंने भी एक झूठ का सहारा लिया । कहना
पड़ा कि वो जो इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ है न, उसके असली वाले रिपोर्ट का बिलकुल
असली वाला फोटोकॉपी कहीं से जुगाड़ हो गया है । वस ज़रुरत है जरा मिलान कर लेने की,
कि कॉपी ऑरीजिनल वाले का ही है या कहीं इसमें भी घपला हुआ है, जैसा कि हमारे यहां
में आये दिन हर जगह होते रहता है । वो वालू में सिमेन्ट वाला घपला हो कि कंक्रीट
में कोलतार वाला, वो वोफोर्स वाला मामला हो कि टूजी वाला, चारा वाला मामला हो कि
कोयला वाला, सब के सब ‘व्यापमं’
की तरह व्याप्त हैं हमारे नायाब लोकतन्त्र में ।
फोटोकॉपी वाली बात कहते ही वो चट राज़ी हो गया
और बिलकुल ऑरीजिनल वाला रिपोर्ट कार्ड दिखला दिया । एक ‘
बोगदा ’
की शर्त पर असालतन रुप से फाइल सुपुर्द करते हुए , ये चेतावनी भी दिया कि इसे
डिसक्लोज़ मत करना, क्योंकि ध्यान रहे- 2019 अब ज्यादा दूर नहीं है । ये असली
हालात का पता चल जाये जनता को यदि तो बड़ी फज़िहत होगी ।
फिर धीरे से मेरे कान में मुंह सटा कर
बोला उस भले मानस ने कि पूरी उम्मीद है कि बहुत जल्दी ही एकदम खतरनाक वाला हार्डअटैक आ सकता है ।
मैं उस बेवकूफ़ कर्मचारी के होशियार
सी लगने वाली चेतावनी को अनसुना करते हुए, चट अपना काम किया और फट वहां से दफा हो
गया ।
रिपोर्ट फाइल काफी मोटी थी । देश ही
नहीं परदेश के भी विशेषज्ञों की राय और टिप्पणी टैग थी उस ECG
के साथ । सबने लगभग एक सी राय ज़ाहिर की थी— हृदय के चारो वाल्व लगभग नाकामयाब हो
गए हैं । एक खास टिप्पणी और लगी हुयी थी – एक वाल्ब तो वाईवर्थ ही डैमेज़ था । और
उसी का नतीजा है कि धीरे-धीरे बाकी के भी तीन खराब होते चले गए । पहले ने दूसरे पर
अटैक किया जिसका ख़ामियाज़ा तीसरे को भुगतना पड़ा और फिर चौथा भी सरेन्डर कर दिया
आहिस्ते-आहिस्ते । तीसरे की हालत तो ऐसी है कि टॉयलेट-वाथरुम जैसा हो गया है । हर
समय दरवाजा खुला रखना पड़ता है । न जाने कब किसको शू-शू की तलब हो जाये या कि वोमिट
वरदास्त न हो रहा हो । ऐसे में देर-सबेर दरवाजा खटखटाने से बेहतर है कि विदाउट
नोकिंट ऐंट्री मिल जाये । एक्सट्रा प्रेशर भी जरुरी नहीं ।
जैसा कि अभी हाल में भी सबने
देखा-सुना-जाना कि रात डेढ़ बजे से भोर के पौने चार बजे तक वासरुम के सभी सफाई
कर्मचारी व्यस्त रहे । दरअसल एक दक्षिण भारतीय ज्योतिषी ने ऐलान कर दिया था कि
अगले पन्द्रह दिनों तक हो सकता है कि सूर्योदय हो ही नहीं । हालाकि बहुत पहले किसी
और युग में भी एक बार ऐसा हो चुका है - एक सती ने सूर्य को ही चाइलेंज कर दिया था
। सतियाँ तो प्रायः कुछ अनहोनी ही करती रही हैं पहले भी और अब भी । शुद्ध गृहस्थी
वालियों में भले ही वो ताकत आज न हो, किन्तु किसी ‘
बार से ट्रन्च ’
होकर आयी तथाकथिक साध्वी की ताकत का अन्दाज़ा भला मेरे जैसा अदना आदमी क्या लगा
पायेगा ! वैसे भी भारतीयों का भोलापन , सीधापन, निरालापन या कि मूर्खपना जग ज़ाहिर
है ।
रिपोर्ट फाइल में एक न्यूट्रिशियन का
भी रिपोर्ट अटैच था, जिसमें लिखा हुआ था कि लोकतन्त्र के सेहत के लिए शुरु से ही
कुछ खास नियम-संयम का ध्यान रखा गया है, बिलकुल स्वास्थ्य रक्षक भिषकाचार्य
बाग्भट्ट के अन्दाज़ में, भले की काम किया गया हो सुश्रुत वाला । शरीर का आकार
बेहिसाब बड़ा है, इसलिए वजन हल्का करने के ख्याल से दोनों हाथों को विना ना-नुकुर
अलग कर देना जरुरी है । सुरक्षित भविष्य के ख्याल से इसे तत्काल निपटा भी डाला गया
।
पथ्य-परहेज के तौर पर कुछ और भी नियम-निर्देश
मिले उस फाइल में – आजीवन दो-चार तरह के
लाइफ सेविंग ड्रग्स का इस्तेमाल भी बिलकुल जरुरी कहा गया है । धर्मनिरपेक्षता की कभी न समझ आने वाली परिभाषा
को बार-बार नये-नये तरीके से समझाते रहने की कोशिश करनी है । क्यों कि यही वो असली
वाला फार्मूला है जिसे पुराने आका जाते-जाते चेताते गए हैं । धर्म रहे न रहे, धार्मिकता रहनी चाहिए, तभी तो
धार्मिक उन्माद बना रह सकेगा । उन्माद फीका पड़ता हो यदि तो बीच-बीच में कुछ न कुछ
प्रबन्ध करते रहना चाहिए । और इसके लिए चौथा
वाल्व अकेले ही बिलकुल सक्षम है । उसकी कर्तव्यनिष्ठा पर जरा भी सन्देह करना गुनाह
जैसा है ।
ऐसी कुछ और बातें अगले अनुच्छेद में
भी लिखी गयी थी—
भोजन,वस्त्र,आवास,शिक्षा-अशिक्षा,स्वास्थ-अस्वास्थ
से लेकर डिग्री और नौकरी भी बे-दाम मुहैया कराते रहना बहुत जरुरी है । किसी छोटी-बड़ी
दुर्घटना के बाद तत्काल खेद व्यक्त करने में जरा भी देर नहीं होनी चाहिए । आँखों
का पानी तो पहले ही सूख-मर गया है, अतः इसके लिए लिक्विड अमृतधारा का प्रयोग करते
रहना चाहिए ।
मुआवज़ा भी जरुर घोषित कर देना
चाहिए । क्यों कि मरने के बाद के भी बहुत तरह के खर्चे होते हैं । और आजीवन जब मुफ्तखोरी
में गुजरा है, फिर मरणोत्तर जीवन में घर का आटा क्यों गीला किया जाये ।
और सबसे अन्त में बिलकुल बोल्ड
फॉन्ट में लिखा हुआ था— ये ऑल टाइम-एनी टाइम वारन्टी वाला लोकतन्त्र दिया है हमने
। जब भी नापसन्द हो, न्यू वर्जन ऑटोअपडेट एवेलेबल है । वस क्लिक करने भर की बात है
।
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